हर जगह पानी, पीने को बूंद नहीं
प्रो. एन के सिंह
अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार
‘हर जगह पानी, फिर भी पीने को बूंद नहीं ’ यह पंक्तियां प्रतिष्ठित अंग्रेजी कवि कोलेरिज की कविता ‘एनशिएंट मरिनर’ की हैं, जैसा कि आज हम सामना कर रहे हैं। अधिकतर भारतीय राज्य वर्षा के पानी की वजह से बाढ़ग्रस्त हैं, लेकिन फिर भी 165 मिलियन भारतीयों को पीने का स्वच्छ पानी नसीब नहीं है। सरकार ने आगाह किया है कि 2020 तक भारत के 22 शहरों को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ेगा। जबकि मुश्किल से ही 10 प्रतिशत जल की आवश्यकता मानव के व्यक्तिगत उपभोग के लिए है और उद्योग तथा कृषि के लिए इससे ज्यादा आवश्यकता है। पानी मानव के अस्तित्व की जीवन रेखा है, जैसा कि दिखाया जा रहा है कि स्पेस मिशन लगातार पानी की खोज कर जीवन को बनाए रखने या ग्रह पर जिंदगी के होने की खोज कर रहे हैं।
हमारी पानी प्रबंधन की पुरानी व्यवस्था ने जल संरक्षण और जल के बु(मतापूर्ण प्रयोग के लिए काफी प्रयास किए थे। मुझे याद है, मेरे बचपन में मैंने देखा था पास की नदी से पानी की पाइपें लाई गई थीं, जिसे स्वैन बोला जाता था। दो बड़े जलाशयों में स्वच्छ जल संग्रहित किया जाता था, जिनसे लोग अपनी जरूरत के लिए इसका प्रयोग करते थे। हिमाचल का एक छोटा सा गांव, जहां पर स्वप्रबंधित समुदायों द्वारा जल व्यवस्था बनाई गई और एक सीढ़ीदार पैडू नामक कुआं बनाया गया, जिससे पानी लाने के लिए सीढ़ियों से उतर कर जाना पड़ता था। सरकार ने यह नहीं किया, परंतु लोग अपने प्रयत्नों और संसाधनों से यह कर चुके थे। गांव की कमेटी द्वारा तालाब अच्छी तरह से पोषित किए गए थे। हर घर में टैंकों द्वारा वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था थी। वहां कोई नल या सरकार द्वारा बनाए गए पानी के टैंक नहीं थे। मुझे स्वप्रबंधित प्रणालियों की व्यवस्था और अध्ययन के लिए योजना आयोग द्वारा 1990 में टास्क फोर्स का चेयरमैन नियुक्त किया गया। उस रिपोर्ट में हमने प्रभावशाली तरीके से यह लिखा था कि भारत की आजादी के बाद लोगों के सामर्थ्य में कमी आई है, जबकि राज्य के सामर्थ्य में बढ़ोतरी हुई है। इसका परिणाम यह हुआ कि अब नागरिक हर चीज के लिए राज्य की ओर देखते हैं, नई तरह का उभरा समाजवाद सरकार से सभी सुविधाएं चाहता है तथा हम राज्य व सरकार पर ज्यादा से ज्यादा आश्रित हुए हैं।
मैंने अपने गांव में स्वप्रबंधित व्यवस्था को कार्य करते देखा है। टास्क फोर्स ने पूरे देश का भ्रमण किया और पाया कि ग्रामीण आबादी में जहां भी ऐसे लोगों की भागीदारी थी, वहां बेहतर जल प्रबंधन था। गुजरात में हमने पाया कि किसानों ने सिंचाई कंपनियों का निर्माण किया और इनका भूजल वितरण या उचित रखरखाव के बाद नहरों द्वारा प्रबंधन किया गया। वास्तव में आयोग को दी रिपोर्ट में मैंने पानी की नहरों के जाल, तालाबों और जंगलों के बारे में बताया, जिन्हें समुदाय द्वारा सामूहिक तौर पर संभाला जा रहा था और सरकारी प्रबंधन इसके विपरीत दिखा। वास्तव में लोगों द्वारा प्रबंधित व्यवस्था सही तरीके से चल रही थी और बिना किसी अड़चन के, जबकि सरकार द्वारा संभाली जा रही नहरें और जंगल सही से नहीं संभाले जा रहे थे। हम उत्तर-पूर्व की व्यवस्था को देखकर बहुत प्रभावित हुए, जहां लोग कार्यकुशलता के साथ काम को संभाले हुए थे और सरकार को कोई हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं थी। जब इसके खिलाफ आवाज उठाई जा रही थी, इसे एक सपना कहा गया, मैं दिल्ली की एक बड़ी बस्ती तिगिरी की ऐसी ही व्यवस्था से परिचय करवाना चाहता हूं, जहां हमारे द्वारा स्थापित महिला समूहों ने शिक्षा और सफाई का कार्य संभाला, क्योंकि सरकार इनकी ओर ध्यान नहीं दे रही थी। जब हम गंदी बस्तियों में गए तो लोग हंसकर हमसे पूछते हैं कि क्या हम सरकार हैं, क्योंकि उन्होंने सोचा कि सरकार सिर्फ बेमतलब की बातें ही करती है।
हमने सबसे ज्यादा सहयोग के रूप में पीड़ित महिलाओं को आश्वस्त किया कि हम सामाजिक कार्यकर्ता हैं और उन्हें बस्तियों की समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रशिक्षित करेंगे। हमने सरकार या किसी अन्य से मदद न लेने का फैसला किया और सिर्फ अपनी सहायता की अनुमति दी। हमारा मिशन सरकार पर निर्भरता को रोकना था। हमने 30,000 की आबादी में प्रत्येक से केवल दस रुपए एकत्रित किए। हमने टैंट में एक स्कूल खोला। उन्होंने स्कूल का प्रबंधन अपनी शिक्षित महिलाओं द्वारा किया, जो सिखाती थीं और हमने उन्हें प्रशिक्षित किया। उन्होंने सफाई का काम किया, परिणामस्वरूप पानी का पुनर्चक्रण अच्छा हुआ और यह बरसात के मौसम में बच्चों की मौत का कारण नहीं बना।
यह प्रयोग इतना सफल रहा कि सरकार ने हमें और झुग्गियों के लिए काम करने को कहा, परंतु हमने विनम्रतापूर्वक मना करते हुए कहा कि यह सिर्फ हमारी रिपोर्ट का परमाणीकरण था और हम सरकार के लिए यह काम करने की इच्छा नहीं रखते। इस कहानी से पता चलता है कि जल एक महत्त्वपूर्ण और मूल्यवान मामला है, जिसका सरकार अकेले प्रबंधन नहीं कर सकती और जल संकट का सामना करने के लिए व्यापक स्तर पर सभी एजेंसियों की सहभागिता के साथ-साथ लोगों को साथ लेने की आवश्यकता है। पानी की एक-एक बूंद को संरक्षित, पुर्ननवींकरण करने तथा उसका न्यायसंगत प्रयोग करने की आवश्यकता है। इसके अलावा जल प्रबंधन का कार्यक्रम सफल बनाने के लिए ऐसी फसलें बोई जानी चाहिए जिसमें पानी का कम से कम उपयोग होता हो।