व्यंग्य : जय हो! ‘मच्छर तंत्र’ की
UK Dinmaan
सोहन सिंह रावत
हमेशा की तरह उन दोनों में एक दिन फिर ठन गई।
एक ने कहा तबाही का कौन-सा साजो सामान नहीं है मेरे पास? मिसाइल है, रॉकेट है, परमाणु बम है। बता तेरे पास ऐसा क्या है?‘
वह बोला, ‘बेटा, मेरे पास मच्छर है!
जी हां! आजकल हर जगह यही खेल तो चल रहा है “तेरे मच्छर, मेरे मच्छर”। किस के पास कितने मच्छर? आरोप-प्रत्यारोपों का दौरा जारी है कि किस के मच्छरों से डेंगू ज्यादा फैल रहा है, आदि आदि। इसी उधेड़ बुन में था कि एक मच्छर मेरे पास आया और जैस वह मुझे काटने लगा तो मेरे मुंह से अचानक निकल पड़ा-
‘साले मच्छर’ तू मुझे काटेगा। क्यों बे डेंगू फैलायेंगा? ऐसा कहते ही जैसे मैंने हाथ उठाया तो मच्छर तुरन्त बोला साहब! मैं तो आवारा किस्म घूमने वाला का ‘एडीज’ मच्छर हूँ। मेरे काटने से न डेंगू होता है न ही मलेरिया। सब चाल है साबह मुझे बदनाम करने की।
साहब मैं कोई बाहरी नहीं मैं भी यही का हूँ। मैं खून नहीं पियूंगा। तो जिंदा कैसे रहूंगा। खून पीना तो ‘मेरा जन्म सिद्ध अधिकार’ है। जिसके लिए मैं पैदा हुआ हूं यदि वही काम नहीं करुंगा तो फिर मेरे जीने का मकसद ही क्या।
लेकिन साहब! क्या आप लोगों को पता है कि आपका छोटा सा पड़ोसी देश श्रीलंका मलेरिया मुक्त है। आप इतने बडे देश होकर भी मलेरिया मुक्त क्यों नहीं हुए? इसके लिए दोषी मैं नहीं हूँ, आप लोग है साहब!
एक राज की बात बताऊं? साहब! असल में देश तो यह भी मलेरिया अथवा मच्छर जनित रोगों से अब तक मुक्त हो जाता, क्योंकि मैं भी अब यहां रहना नहीं चाहता हूँ।
लेकिन साहब! देश के ये सफेदपोश मच्छरों ऐसा करना ही नहीं चाहते। अपने फायदे के लिए इन सफेदपोश मच्छरों ने तो मुझे भी बांटा दिया है। डेंगू का सारा दोष मेरे सिर मढ़ कर ये सफेदपोश मच्छरों आपस में लड़ने-झगड़ने और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में ही व्यस्त हैं। पक्ष और विपक्ष के इस खेल में सफेदपोश मच्छर जहां मौज कर रहे है वही इसके द्वारा रचित इस खेल में हम भी अपनी थोड़ी बहुत मौज कर लेते है। उनकी इस राजनैतिक लड़ाई का मच्छर प्रजाति भी भरपूर फायदा उठाती है।
साहब यहां जनता की किसे पड़ी है वो तो सफेदपोश मच्छरों के बुने जाल में फंस जाती है। विपक्षी होने के कारण हम हर उस कार्रवाई (फांगिग) से बच जाते है जो आम जनता के फायदे के लिए होती है। बस साहब इसी बात का हम भी थोड़ा सा फायदा उठाते है क्योंकि हमारे लिए तो मानव सिर्फ लाचार मानव है और फिर “सबका खबू-खून चूसो” हमारा अभियान है।
साहब! मेरे काटने से इतना नहीं जितना इन सफेद्फोश मच्छरों के काटने से फर्क पड़ता है। यदि मेरे काटने से किसी मौत की सच्चाई अगर सामने भी आ गई तो जवाब में झट से आश्वासन का झुनझुना ये सफेद्फोश आपको पकड़ा देंगे और जनता बेचारी उस झुनझुने में उलझकर रह जायेगी।
साहब! हमें तो मालूम है हम तो लाचार मानवों का खून चूसकर उनके शरीर में डेंगू, मलेरिया, का ही जहर भर रहे है। लेकिन यहाँ तो ये सफेदपोश मच्छरों देश का खून चूस-चूसकर बदले में गरीबी, बेराजगारी, नशे और नफरत का जहर घोल कर आपकी नस-नस में भर रहे है उसका क्या। मेरी जिन्दगी तो कुछ ही दिनों की है। ये सफेदपोश मच्छरों तो जिन्दगी भर आपका खून चूसेंगे। अब बताओ साहब! मैं कहा दोषी हूँ। मैं तो एक मोहरा मात्र हूँ। हर बार मैं ही फंसता हूँ और बदनाम होता हूँ।
लेकिन साहब! इस सफेदपोश मच्छरों के मच्छर-मच्छर के राग-राग में मैं बहुत खुश हूं। सोचता हूं कि आप लोग लोकतंत्र नहीं बल्कि मच्छर तंत्र में जी रहे है।
तभी चटाक की आवाज से नींद खुली तो मेरे मुंह से निकला। जय हो मच्छर तंत्र की!