दो माह के बच्चे को लेकर पैदल अपने गांव निकली सीता

एजेेन्सी

अबला तेरी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी।

कविता की यह लाइनें जैसै दिल्ली से अपने डेढ़ माह के बेटे को लेकर पैदल अपने घर निकली सीता के ही लिए ही लिखी हो। पिछले 5 दिन पहले दिल्ली से जालौन के लिए निकली बीती शाम झांसी पहुंची सीता तपती धूप में अपने डेढ़ माह के बच्चे को भी हाथों में लिए थी। जहां कोई वाहन मिलता था वह वाहन में बैठ जाती थी।

बाकी पूरी दूरी उसने पैदल यात्रा करते हुए ही गुजारी है। कलयुग में कोरोना कहर के चलते लागू लाॅकडाउन में सीता को सड़कों की धूल फांकते हुए अपने घर पहुंचने के लिए भटकना पड़ रहा है।

सीता और उसके डेढ़ माह के बच्चे का दोष यह है कि उसका पति विनोद अपनी जन्मभूमि जनपद जालौन के कदौरा को छोड़कर रोजगार की तलाश में दिल्ली में मजदूरी करने जा पहुंचा था।

वहीं 19 मार्च को उसकी पत्नी ने अपने दूसरे बच्चे आर्यन को जन्म दिया था। जबकि उसकी बड़ी बेटी दो वर्ष की आरोही भी इस दंश को झेल रही है। उसे विनोद के साथ दिल्ली में रह रही उसकी 12 वर्षीय भतीजी सृष्टि अपनी गोद में उठाए थी। डेढ़ माह का बच्चा आर्यन उसको आंचल से लगा कर और 2 वर्ष की बेटी आरोही को गोद में लिए भतीजी सृष्टि के साथ जा रही सीता ने बताया कि उसको जालौन के कदौरा गांव पहुंचना है। वह भी अपने पति के साथ दिल्ली में मजदूरी कर रही थी।

अब कोरोना महामारी का आतंक इतना बढ़ गया है कि उन्होंने घर आना ही बेहतर समझा।

डेढ़ महीने किया इंतजार
सीता ने बताया कि आर्यन जब पैदा हुआ तो उसके 3 दिन बाद ही 22 मार्च को पूरे देश में एक दिन बंद किया तो सब खुश थे कि शायद कोरोना भाग गया है। लेकिन दो दिन बाद ही 24 मार्च की रात को प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे देश में कोरोना वाॅयरस को हराने के लिए 21 दिन का लाॅकडाउन लगा दिया। तब भी हमने सोचा कि 21 दिन में कोरोना खत्म हो जाएगा और सब ठीक हो जाएगा। जब दूसरा और फिर लाॅकडाउन का तीसरा चरण लगा दिया गया।

लाॅकडाउन के पहले,दूसरे और अब तीसरे चरण के अन्त तक हमारे पास जो भी पैसा पास में था वह भी खत्म हो गया। तब डेढ़ माह के बच्चे को लेकर हम लोगों ने पैदल निकलना ही बेहतर समझा। उसने बताया कि हम लोग दिल्ली से पैदल ही चल दिए थे। जहां कोई बैठा लेता था वहां बैठ जाती थी। बाकी पैदल चलते रहे।

झांसी से कानपुर रोड पर बेटे को लेकर तपती धूप में जा रही सीता कहती है कि 19 मार्च को जन्मे आर्यन को 5 दिन से भीषण गर्मी से झेलनी पड़ रही है उसको तो पता ही नहीं था कि इस संसार में गरीबी गाली के बराबर है। गरीब का कोई होता ही नहीं है। गरीब के सिर्फ भगवान होते हैं।

विनोद से जब पूछा गया कि वह अपने परिवार के साथ ऑटो करके क्यों नहीं अपने गांव चला जाता है। इस पर उसका कहना था कि साहब हम गरीब लोग हैं। आटो वाले डेढ़ हजार रुपए से कम नहीं मांगेंगे। और हमारे पास इनको देने के लिए इतना पैसा है नहीं।

नहीं रोका किसी ने
हालांकि बीते रोज दोपहर बाद प्रेस नोट जारी करते हुए मण्डलायुक्त सुभाष चन्द्र शर्मा ने ऐलान किया था कि कोई पैदल नहीं जाएगा। पैदल जाने वालों को बस में बैठाकर उनके गंतव्य तक छोड़ा जाएगा। लेकिन पूरे रास्ते इनको किसी ने नहीं रोका था। यह चले जा रहे थे, चले जा रहे थे। झांसी स्थित यूपी-एमपी बाॅर्डर से यह करीब 25 किलोमीटर अंदर आ चुके थे और पैदल ही जालौन की ओर बढ़ रहे थे। यहां से इनका गांव करीब 160 किलोमीटर है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *