फूलों का उत्सव “फूलदेई“

UK Dinmaan

‘फूल देई, छम्मा देई,
जंतुके देला, उतुके सही,
देणी द्वार, भर भकार,

फूल देई प्रत्येक वर्ष चैत्र मास की संक्रांति को मनाया जाता है। यह चैत्र मास का प्रथम दिन माना जाता है। उत्तराखंड ही शायद देश में ऐसा प्रदेश होगा जहां पहाड़ के गांवो में ही ऐसा उत्सव मनाया जाता है जो ” फूलों का उत्सव ” है।

उत्तराखंड के पहाड़ों में इस वक्त अनेक प्रकार के सुंदर फूल खिलते हैं। पूरे पहाड़ का आंचल रंग-बिरंगे फूलों से सज जाता है। बसंत के इस मौसम में फ्योली, खुमानी, पुलम, आडू , बुरांश आदि के फूल हर कहीं खिले हुए नजर आ जाते हैं। जहां पहाड़ बुरांश के सुर्ख लाल चटक फूलों से सजे रहते हैं वही घर आंगन में लगे आडू, खुमानी के पेड़ों में फूल खिले रहते हैं।

चैत्र मास की संक्रांति के दिन या चैत्र माह के प्रथम दिन छोटे- छोटे बच्चे जंगलों या खेतों से फूल तोड़ कर लाते हैं। उन फूलों को एक टोकरी में या थाली में सजा कर सबसे पहले अपने देवी देवताओं को अर्पित करते हैं। उसके बाद बच्चे ” फूल संग्राद ” के अवसर पर गावों के हर घर की देहरी पर बुरांश, फ्योंली , आडू और न जाने कितने रंग बिरंगे फूल लेकर आते हैं और लोक गीत गाते हुए हर घर की देहरी ये फूल बिखेरते हैं।

फूल देई …. छम्मा देई ….
देणी द्वार…… भर भकार ….
फूल देई ….. छम्मा देई।

बदले में घर-घर से इन बच्चों को चावल, गुड़ ,भेंट या अन्य उपहार दिए जाते हैं। जिससे ये छोटे-छोटे बच्चे बहुत प्रसन्न होते हैं। इसी तरह गांव के हर दरवाजे का पूजन कर उपहार पाते हैं।

फूलों के उत्सव पर हर घर से मिले उपहार को बच्चे एकत्र करते हैं और अवकाश मिलने पर गांव के नजदीक खुले स्थान पर जहां पानी की धारा हो वहाँ पर फूलां के त्यौहार पर मिले उपहार को सभी बच्चों एकठ्ठा करते हैं और अपने अपने हाथो सें ” सांझा चूल्हा” बनाकर व्यंजन बनाते हैं इसे बच्चों की पिकनिक भी कह सकते हैं। जिसमे बच्चे ही आयोजक होते है और मेजबान भी।

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