एक दूसरे पर अंगुली नहीं, जिम्मेदारी उठाइए जनाब!
कोरोना वाइरस पर जीत का दावा करते कहते आज हम ये कहां आ गये। अस्पताल में जगह नहीं, श्मशान में लाइनें लगी हुई है, ऑक्सीजन विदेश से मंगाई जा रही है। संक्रमण के और मरने वालों के आंकड़े कम होने का नाम नहीं ले रहे। इन हालातों में विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावार है। तो दूसरी तरफ सत्ता पक्ष आरोप लगा रहा है कि विपत्ति के इन हालातों में विपक्ष सरकार का साथ देने के बजाय राजनीति कर रहा है।
विपक्ष के आरोप तो ठीक है क्योंकि विपक्ष का काम है सरकार को घेरना और राजनीति करना। लेकिन जब सरकार की कार्यप्रणाली पर अपने ही सवाळ उठाने लगे तो क्या कहा जाय?
ऐसे में सवाल आम आदमी की दम तोड़ती उम्मीदें का है कि आखिर वो आस लगाये तो किससे?
जी हां बात हम उत्तराखण्ड प्रदेश सरकार नये बने कैबिनेट मंत्री की गणेश जोशी की। सैनिक कल्याण औद्योगिक विकास मंत्री गणेश जोशी ने पूर्व सरकार पर कोरोना संक्रमण रोकने की तैयारियों को लेकर जो बयान दिया जो सरकार के दावा की पोळ खोळ रहा है। उनका कहना था कि सरकार मस्त हो गई थी कि करोना खत्म हो गया किसी को पता नहीं था कैसी हालत हो जाएगी। गणेश जारी के निशाने पर सीधे-सीधे पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत थे। कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने सीधे-सीधे त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर की तंज कसा है।
ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत भी कहा चुुप रहते उन्होंने भी कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी पर पलटवार कर तंज कसते हुए कहा कि अभी वो अनुभवहीन हीन है। फिलहाल उन्हें अनुभव लेने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि गणेश जोशी उस विभाग की बात कर रहे है जो उनके पास है ही नहीं, यानी कि स्वास्थ्य मंत्रालय। त्रिवेन्द्र ने कहा कि मंत्रालय को समझने में सात-आठ माह का वक्त लगता है ऐसे में उनकी टिप्पणी कोई मायने नहीं है। साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री ने यह सफाई दी की उन्हाेंने गणेश जोशी के बयान को सुना ही नहीं, सुनने के बाद कुछ कहेंगे।
ऐसे में सवाळ तो चार साळा अनुभवी मुख्यमंत्री पर भी है कि जब उन्होने बयान सुना ही नहीं तो ऐसी प्रतिक्रिया दी क्यों? ऐसे में जाहिर सी बात है कि बिना किसी की बात सुने त्रिवेन्द्र ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए अपनी अनुभवहीनता का ही परिचय दिया है और कुछ नहीं।
त्रिवेन्द्र के इस बयान के मीडिया में आते ही उनके पुराने सिपहसालार जो कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा में रहे, वर्तमान में तीरथ सरकार के अनुभवी कैबिनेट मंत्री डॉ हरक सिंह रावत गणेश जोशी के बचाव में आ गए। उन्होंने आग में घी डालने का ही काम किया और गणेश जोशी के सुर से सुर मिलाते हुए त्रिवेन्द्र सरकार पर ही निशाना साधा। हरक यहां चुप नहीं हुए उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र को महामारी के दौरान टिपप्णी करने से बचने की ही सलाह भी दी डाली और कहां की यह वक्त लाशों पर राजनीति करने और किसी को नीचा दिखाने या टांग खींचने का नहीं है। ऐसे वक्त में भी राजनीति की जायेगी तो इससे बड़ी नीचता कुछ नहीं हो सकती ऐसा घृणित कार्य नहीं करना चाहिए।
यहां अनुभवी हरक सिंह रावत राजनीति न करने की नसीहत त्रिवेन्द्र को दे रहे है लेकिन गणेश जोशी के कन्धे पर बन्दूक रखकर सियासी निशाना त्रिवेन्द्र पर ही साध रहे है।
गणेश जोशी नये-नये कैबिनेट मंत्री बने है। पिछले चार साळों त्रिवेन्द्र टीम का हिस्सा बनने का सपना संजोये हुऐ त्रिवेन्द्र की परिक्रमा करते रहे लेकिन कप्तान त्रिवेन्द्र थे कि उन्हें मौका ही नहीं दे रहे थे। वहीं दूसरी तरफ उन्हें तीरथ टीम में बड़ी मुश्किल से मौका मिला है। वो बखूबी जानते है कि उनके पास खुद को साबित करने के लिए बहुत कम समय है। ऐसे में नये कप्तान की नजरों में अपना चेहरा चमकाने के लिए उनके पास त्रिवेन्द्र सरकार पर खुन्नस निकालने से अच्छा कोई काम इस वक्त और हो नहीं सकता।
हरक सिंह रावत से बड़ा राजनीतिज्ञ का चालाक खिलाड़ी प्रदेश में कोई और हो नहीं सकता। वह स्वीकार कर रहे है कि कोरोना की दूसरी लहर को समझने में हमसे कहीं न कहीं चूक तो हुई। हरक की इस साफगोही के लिए तारीफ की जानी चाहिए। लेकिन कोराना की दूसरी लहर को समझने की चूक को बड़ी चालाकी से उन्होंने त्रिवेन्द्र के कंधों पर धकेल दिया। साथ ही उन्हें राजनीति न करने की सलाह भी दे डाली। अब ऐसे में समझने वाली बात ये है कि राजनीति आखिर कर कौन रहा है, गणेश जोशी, हरक सिंह रावत या फिर त्रिवेन्द्र सिंह रावत?
वैसे त्रिवेन्द्र सिंह रावत अब शतरंज की उस बाजी का हारा हुआ राजा है जिसके सारे सिपहसालार व प्यादे आज भी मैदान में डटे हुये है। प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की गाज सिर्फ और सिर्फ त्रिवेन्द्र पर ही पड़ी। तो दूसरी तरफ गणेश जोशी को कोविड काल में सबसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण जिले देहरादून के प्रभार की जिम्मेदारी सौंपी गई। यही वो कारण है कि गणेश जोशी का त्रिवेन्द्र पर हावी है और अपनी खुन्नस निकाल रहे है।
यह सत्य है कि अक्खड़ मिजाज त्रिवेन्द्र के आप-पास मंत्री, विधायक कभी नजर नहीं आते थे, या यूं कहें कि उन्होंने कभी किसी मंत्री या विधायकोें को अपने पास फटकने नहीं दिया लेकिन गणेश जोशी के मामले में यह भी उतना ही सत्य है कि गणेश जोशी हर तीसरे दिन त्रिवेन्द्र की परिक्रमा करते हुए उनकी चरण वन्दना करते थे। वहीं बड़ा कारण है कि गणेश जोशी के अलावा सभी मंत्री और विधायकों में आज सीधे-साधे नये मुखिया के सामने अपना चेहरा चमकाने की होड़ मची हुई है। जबकि संक्रमण के इस दौर में होना यह चाहिए था कि सभी नेताओं को एकजुट होकर कोरोना के खिलाफ जंग लड़नी चाहिए थी लेकिन दुर्भाग्य से मंत्री हो या विधायक सभी नये मुखिया की नजरों में अपना रुतबा गालिब करने चक्कर में अपनी सारी नाकामियों का ठीकरा त्रिवेन्द्र के सिर फोड़ रहे है। वो भूल गये कि इस वक्त इस तरह केे बयानों से सरकारी की ही फजीहत होगी और कुछ नहीं, यह वक्त एक दूसरे पर अंगुली उठाने का नहीं बल्कि आगे बढ़कर जिम्मेदारी उठाने का है जनाब।