हत्या के आरोप पर सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू से जवाब मांगा
नयी दिल्ली। (वार्ता)। उच्चतम न्यायालय ने करीब साढ़े तीन दशक पुराने एक अपराधिक मामले में पीड़ित पक्ष की ओर से सजा का दायरा बढ़ाने की अर्जी पर शुक्रवार को पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू से पूछा आखिर उन्हें अधिक गंभीर श्रेणी के अपराध के लिए दंडित क्यों नहीं किया जाना चाहिए, जिससे उनकी सजा बढ़ायी जा सके। न्यायालय ने सिद्धू को जवाब देने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है।
न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने एक पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सिद्धू को जवाब दाखिल करने की अनुमति दी। पीड़ित पक्ष की अर्जी पीठ ने सिद्धू से जवाब दाखिल करने को कहा है कि आखिर उन्हें अधिक गंभीर श्रेणी के अपराध के लिए दंडित क्यों नहीं किया जाना चाहिए, जिससे उनकी सजा में वृद्धि की जा सके।
सर्वाेच्च अदालत न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर (सेवानिवृत्त) द्वारा लिखित अपने 15 मई 2018 के फैसले से संबंधित एक पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस फैसले में सिद्धू पर सिर्फ 1000 रुपये जुर्माना किया गया था।
शीर्ष अदालत ने केवल सजा के बिंदु 11 सितंबर 2018 पर श्री सिद्धू को नोटिस जारी किया था। उन्होंने अपने जवाब में अदालत से नरमी बरतने की गुहार लगाते हुए कहा है कि वह उसे पूर्व के सार्वजनिक जीवन में आदर्श व्यवहार को आधार मानते हुए उसे जेल की सजा न दें।
शीर्ष अदालत द्वारा सिद्धू को दिए गए आर्थिक दंड को नाकाफी सजा मानते हुए पीड़ित गुरनाम सिंह के पुत्र ने इस साल पुनर्विचार याचिका दायर की थी।
पीड़ित पक्ष की ओर से पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान एक आवेदन कर सजा का दायरा बढ़ाने की गुहार लगाई गई। पुनर्विचार याचिकाकर्ता का पक्ष रखते हुए सिद्धार्थ लूथरा ने मौत का कारक सिद्धू एवं अन्य के साथ हुए झगड़े को बताते हुए सजा का दायरा गैर इरादतन हत्या की श्रेणी की सजा तक बढ़ाने की गुहार लगाई। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि पीड़ित को एक जोरदार झटका दिया गया था जिसके बाद उसकी मौत हुई। मौत का कारण सिर्फ हृदय गति रुकना मानना सही नहीं है।
पूर्व क्रिकेटर सिद्धू का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने लूथरा की दलीलों का जोरदार विरोध किया। चिदंबरम ने कहा कि पूरे मामले पर फिर से विचार करना न्याय संगत नहीं होगा।
पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सिद्धू को पीड़ित पक्ष की ओर से दायर नई अर्जी पर अपना जवाब दाखिल करने का समय देते हुए अगली सुनवाई के लिए दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने तीन फरवरी को चिदंबरम की गुहार पर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई 25 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी थी।
पंजाब में 1988 में सड़क पर हुए झगड़े के दौरान सिद्धू द्वारा कथित रूप से मुक्का मारे जाने से 65 वर्षीय गुरनाम सिंह की मौत हो गई थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण हार्ट अटैक बताया गया था। इस मामले में शीर्ष न्यायालय ने 15 मई 2018 के अपना फैसला दिया था। इसमें सिद्धू को झगड़े में शामिल होने का दोषी मानते हुए सजा के तौर पर 1000 रुपए का जुर्माना किया गया था।
मृतक के पुत्र ने अदालत के इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की है।
याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत का 2018 यह फैसला ‘रिछपाल सिंह मीणा बनाम घासी’ (2014) के मामले में पिछले फैसले पर विचार करने में विफल रहा। उक्त मामले में, शीर्ष अदालत ने कानून के सवाल पर विचार किया, और ‘इस विचार का था कि जब किसी इंसान की मृत्यु होती है, तो यह या तो गैर इरादतन हत्या (हत्या के बराबर या नहीं) हो सकती है या गैर इरादतन हत्या हो सकती है। आगे यह माना गया कि ‘जीवन को प्रभावित करने वाले अपराध’ ‘चोट के अपराध’ से अलग हैं और यदि चोट का परिणाम मृत्यु, इरादा या अनजाने में होता है, तो अपराध जीवन को प्रभावित करने वाले अपराध की श्रेणी में आएगा।’