एम्बुलेंस का रेट तय करें राज्य सरकारें : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज शुक्रवार को एक याचिका की सनुवाई करते हुए कहा कि मरीजों को एम्बुलेंस में लाने ले जाने का शुल्क राज्यों को निर्धारित करना चाहिए। इस याचिका मेें आरोप लगाया गया था कि कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों को इधन से उधर ले जाने के लिए एम्बुलेंसों द्वारा मनमाना शुल्क वसूल जा रहा है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने केन्द्र की ओर से पेश साॅलिसीटर जनरल तुषार मेहता के इस कथन का संज्ञान लिया।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से याचिका की सुनवाई करते हुये पीठ ने कहा, ‘सभी राज्यों के लिये इस प्रक्रिया का पालन करना और एम्बुलेंस सेवा की क्षमता में वृद्धि करने के लिये आवश्यक कदम उठाना जरूरी है।’

याचिका में कहा गया था कि केन्द्र द्वारा निर्धारित मानक प्रक्रिया के दायरे मेें एम्बुलेंस सेवा द्वारा वसूल किये जाने वाला शुल्क शामिल नहीं है। याचिका में यह मांग की गई है कि एम्बुलेंस का रेट निर्धारित किया जाना चाहिए क्योंकि अस्पताल मनमाना पैसा वसूल रहे हैं। पीठ ने कहा, ‘राज्य तर्कसंगत शुल्क निर्धारित करेंगे और सभी एम्बुलेंस वाहनों को इसी दर से दिया जायेगा।’

पीठ ने इसके साथ ही इस याचिका का निस्तारण कर दिया। सुनवाई के दौरान पीठ ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि कुछ राज्य केन्द्र द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहे हैं और मरीज दूसरों की दया पर निर्भर हैं और उनसे एम्बुलेंस के लिये सात हजार रुपए तक और कुछ मामलों में तो 50,000 रुपए तक वसूले गये हैं।

केंद्र सरकार ने जो निर्देश जारी किए थे, उसमें कोविड-19 के संदिग्ध या संक्रमित मरीजों की देखभाल करने वाले मेंडिकल स्टाफ तथा मरीजों को लाने ले जाने जैसे बिन्दु शामिल थे। इस प्रक्रिया का मकसद कोविड-19 के मरीजों को ले जाने वाले एम्बुलेंस के चालकों और तकनीशियनों को आवश्यक निर्देश देना तथा उन्हें समुचित प्रशिक्षित करना था।

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