सिद्धपीठ माँ ज्वालपा

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नयार नदी के तट पर स्थित ज्वाल्पा देवी सिद्ध पीठ पौराणिक महत्व को समेटे हुए है। इस पीठ के बारे में प्रसिद्ध है कि यहां आने पर हर मनोकामना पूर्ण होती है। यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ पौड़ी-कोटद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग पर पौड़ी से 33 किमी. की दूरी पर सड़क से 200 मीटर दूर नयार नदी के तट पर स्थित यह मंदिर लगभग 350 मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।

ज्वाल्पा थपलियाल और बिष्ट जाति के लोगों की कुलदेवी है।

स्कन्दपुराण के अनुसार सतयुग में दैत्यराज पुलोम की पुत्री शची ने देवराज इन्द्र को पति रूप में प्राप्त करने के लिये ज्वालपाधाम में हिमालय की अधिष्ठात्री देवी पार्वती की तपस्या की। मां पार्वती ने शची की तपस्या पर प्रसन्न होकर उसे दीप्त ज्वालेश्वरी के रूप में दर्शन दिये और शची की मनोकामना पूर्ण की। ज्वाला रूप में दर्शन देने के कारण इस स्थान का नाम ज्वालपा पड़ा।

देवी पार्वती का दैदीप्यमान ज्वालपा के रूप में प्रकट होने के प्रतीक स्वरूप अखण्ड दीपक निरंतर मन्दिर में प्रज्वलित रहता है। अखण्ड ज्योति को प्रज्वलित रखने की परंपरा आज भी चल रही है।

इस प्रथा को यथावत रखने के लिये प्राचीन काल से ही निकटवर्ती गांव से तेल एकत्रित किया जाता है। 18 वीं शताब्दी में राज प्रद्युम्नशाह ने मन्दिर के लिये 11.82 एकड़ सिचिंत भूमि दान दी थी । इसी भूमि पर आज भी सरसों की खेती कर अखण्डज्योति को जलाये रखने लिये तेल प्राप्त किया जाता है।

यहां पर सुन्दर मन्दिर के अतिरिक्त भव्य मुख्यद्वार, तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु धर्मशालायें, स्नानघाट, शोभन स्थली व पक्की सीढ़ियां बनी हुई हैं। इसके अलावा संस्कृत विद्यालय भवन, छात्रावास व विद्यार्थियों के लिये सुविस्तृत क्रीड़ास्थल का भी निर्माण किया गया है। मां ज्वालपा मन्दिर के भीतर उपलब्ध लेखों के अनुसार ज्वालपा देवी सिद्धिपीठ की मूर्ति आदिगुरू शंकराचार्य जी के द्वारा स्थापित की गई थी। मां ज्वालपा की एतिहासिकता की वास्तविकता कुछ भी हो परन्तु आज यहां शक्तिपीठ गढ़वाल के देवी भक्तों का एक पूजनीय सिद्धपीठ बन चुका है।

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