सिद्धपीठ मां डाट काली
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उत्तराखंड यानी देवों की भूमि। हर जगह हर कदम पर आपको यहां ऐसे ऐसे देवस्थान मिलेंगे, जिनका पौराणिक और धार्मिक महत्व सबसे ज्यादा है। देहरादून के डाट काली मंदिर हिन्दूओं को एक प्रसिद्ध मंदिर है जो कि सहानपुर देहरादून हाईवे रोड़ पर स्थित है। ये मंदिर पूरी तरह से मां काली के लिए समर्पित किया गया है। यहां एक मान्यता काफी प्रचलित है। कहा जाता है कि यहां भक्तों को आना नहीं पड़ता बल्कि मां काली किसी बहाने से भक्तों को अपने पास खींच लाती हैं।
इस मंदिर को भगवान शिव की पत्नी देवी सती का अंश माना जाता है। मां डाट काली मंदिर को मनोकामना सिद्धपीठ और काली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि माता डाट काली मंदिर सिद्धपीठों में से एक है। मां डाट काली मंदिर देहरादून के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है तथा देहरादून शहर से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 13 जून 1804 में किया गया था, जब वहां देहरादून सहानपुर राजमार्ग का निर्माण कार्य किया जा रहा था। अंग्रेजों को दून घाटी में प्रवेश करने के लिए इस मंदिर के पास सुरंग बनानी पड़ी। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी जब सुरंग का काम पूरा नहीं हुआ तो अंग्रेजों को भी डाट काली के दरबार में शीश नवाना पड़ा था।
गोरखा सेनापति बलभद्र थापा ने यहीं पर भद्रकाली मंदिर की स्थापना की थी। ऐसा माना जाता है कि मां काली एक इंजीनियर के सपने में आयी थी, जिन्होंने मंदिर की स्थापना के लिए महंत सुखबीर गुसैन को देवी काली की प्रतिमा दी थी। जो आज भी घाटी के मंदिर में स्थापित है। इस मंदिर में एक दिव्य ज्योति जल रही है जोकि 1921 से लगातार जल रही है। यहां के आस पास के लोग जब भी कोई नया वाहन खरीदते है इस मंदिर में पूजा के लिए मां डाट काली मंदिर में आते है। इसलिए जो भी व्यक्ति यहां से जाता है मां काली का आर्शीवाद जरूर लेता है और मंदिर में तेल, घी, आटा व अन्य वस्तु चढ़ाता है।