संकटमोचन नाम तिहारो बजरंग बली ‘हनुमान’
हिन्दू धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के परम भक्त हनुमान को संकट मोचक माना गया है। मान्यता है कि श्री हनुमान का नाम लेते ही सारे संकट दूर हो जाते हैं। उनके नाम मात्र से आसुरी शक्तियां गायब हो जाती हैं।
हनुमान जी के जन्मोत्सव को देश भर में हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है। जयंती को प्रायः चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस बार हुनमान जयंती 8 अप्रैल को है। मान्यता है कि श्री हनुमान ने शिव के 11 वें अवतार के रूप में माता अंजना की कोख से जन्म लिया था।
हनुमान जी के नाम को लेकर शास्त्रों में एक रोचक कथा का उल्लेख मिलता है। कथा के अनुसार भूखे होने के कारण एक बार वह उदय होते हुए सूर्य को फल समझकर उसके समीप चले गए। उस दिन सूर्य को ग्रसने के लिए राहु आया हुआ था। हनुमान जी को देखकर उसने उन्हें दूसरा राहु समझा और भागने लगा। तब इंद्र ने अंजनिपुत्र पर वज्र का प्रहार किया। इससे उनकी ठोड़ी टेढ़ी हो गई, जिसके कारण उनका नाम हनुमान पड़ा। मारुति नंदन को चोला चढ़ाने से जहां सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, वहीं बाधाओं से मुक्ति भी मिलती है।
पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि हनुमानजी की भक्ति शनि के प्रकोप से बचाती है। जब हनुमानजी ने शनिदेव का घमंड तोड़ा था, तब सूर्यपुत्र शनिदेव ने हनुमानजी को वचन दिया कि उनकी भक्ति करने वालों की राशि पर आकर भी वह कभी उन्हें पीड़ा नहीं देंगे। कन्या, तुला, वृश्चिक और अढैया शनि वाले तथा कर्क, मीन राशि के जातकों को हनुमान जयंती पर विशेष आराधना करनी चाहिए। हनुमानजी को भक्ति और शक्ति का बेजोड़ संगम बताया गया है। हनुमानजी अष्टचिरंजीवी में से एक हैं। बजरंगबली की उपासना करने वाला भक्त कभी पराजित नहीं होता।
हनुमानजी का जन्म सूर्योदय के समय बताया गया है, इसलिए इसी काल में उनकी पूजा-अर्चना और आरती का विधान है। भारतीय दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं, केसरी और अंजनि के पुत्र महाबली हनुमान। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्शों को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।
हनुमानजी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। वह न अहंकार करते हैं और न ही किसी के दर्प को सहते हैं, इसीलिए वह दर्पदलन भी हैं। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। हनुमानजी का चरित्र सेवा भाव, संकल्प और सहजता का अप्रतिम उदाहरण है।
पंचमुखी हनुमान से एक विशेष कथा जुड़ी हुई है। हनुमान जी ने शत्रुओं का संहार करने के लिए पांच मुखों को धारण किया था। श्रीराम और रावण युद्ध में रावण की मदद के लिए अहिरावण ने ऐसी माया की रचना की जिससे श्रीराम की सारी सेना गहरी निद्रा में सो गई। उसके बाद अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण करके उन्हें निद्रावस्था में पाताल लोक लेकर चला गया। इस विपदा के समय में सभी ने संकटमोचन हनुमानजी का स्मरण किया। पातालपुरी पहुंचने पर हनुमानजी देखते हैं कि भगवान श्रीराम और उनके अनुज लक्ष्मण को बंधक बना लिया गया है। हनुमान जी ने देखा कि वहां चार दिशाओं में पांच दीपक जल रहे है और मां भवानी के सम्मुख श्रीराम एवं लक्ष्मण की बलि देने की पूरी तैयारी हो रही है। अहिरावण का अंत करने और बलि संबंधी गतिविधि को विराम देने के लिए आवश्यक था कि पांचों दीपों को एक साथ बुझाया जाए।
हनुमान जी ने तुरंत पंचमुखी रूप धारण कर उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख से सभी दीपकों को एक साथ बुझाकर अहिरावण का वध कर दिया।
पंचमुखी हनुमान जी के पूर्व दिशा का मुख वानर का हैं। जिसकी दिव्यता असंख्य सूर्यो के तेज समान हैं। पूर्व मुख वाले हनुमान का पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश शीघ्र ही हो जाता है। पश्चिम दिशा वाला मुख ‘गरुड़’ का हैं, जो संकट मोचन के रूप में है। यह मुख भक्तिप्रद तथा विघ्न-बाधा निवारक भी माने जाते हैं। जिस प्रकार पंछियो में ‘गरुड़’ पंछी अजर-अमर है उसी तरह हनुमानजी भी सुप्रतिष्ठित हैं।
उत्तर मुख वाले पंचमुखी हनुमान हनुमानजी मुख ‘शूकर’ का है। इनकी आराधना करने से आयु,विद्या, यश और बल की प्राप्ति शीघ्र हो होती है।
हनुमानजी का दक्षिणमुखी स्वरूप भगवान ‘नृसिंह’ का है। नृसिंह भगवान अपने भक्तों को भय, चिंता, परेशानी को शीघ्र ही दूर करते हैं। इनकी पूजा से भक्त धैर्यवान बनते है। श्री हनुमान जी का ऊर्ध्व मुख ‘घोड़े’ के समान हैं। हनुमानजी का यह स्वरुप ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर प्रकट हुआ था। ऐसी मान्यता है कि हयग्रीव दैत्य का संहार करने के लिए हनुमान जी ने इस रूप को धारण किया था। हनुमान जी का यह रूप कष्ट में पडे़ भक्तों को शरण प्रदान करने का है। पंचमुखी हनुमानजी में विविध शक्तियों ने अभिव्यक्ति पाई है, इसलिए उनके इस रूप को सर्वसिद्धि प्रदाता माना जाता है।