रूद्राक्ष का माहात्म्य
रुद्राक्ष भगवान शंकर की एक अमूल्य और अद्भुद देन है। यह शंकर जी की अतीव प्रिय वस्तु है। इसके स्पर्श तथा इसके द्वारा जप करने से ही समस्त पाप से निवृत्त हो जाते है और लौकिक-परलौकिक एवं भौतिक सुख की प्राप्ति होती है।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति के सम्बन्ध में ‘शिवपुराण’ में वर्णन है कि-‘सदाशिव ने लोकोपकार के लिए एक दिन माता पार्वती से कहा कि हे देवि ! मैंने पूर्व समय मन को स्थिर कर दिव्य सहस्त्र वर्ष पर्यन्त तपस्या की थी। उस समय मुझे कुछ भय- सा लगा जिससे मैंने अपने नेत्र खोल दिए। मेरे नेत्रों से आँसुओ की बिन्दुएं (बूँदे) गिरने लगीं। वहीं अश्रु पृथ्वी पर रुद्राक्ष-वृक्ष के रूप में उत्पन्न हो गये, जिन्हें बाद में रुद्राक्ष के रूप में जाना गया, इन वृक्षो में जो फल लगते है, उन्हें रुद्राक्ष का फल कहा जाता है। यह फल ‘नर मुण्ड’ का प्रतीक है। रुद्राक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है रूद्र की आँख।’’
शिव तथा रुद्राक्ष एक-दूसरे के पर्याय हैं। शिव साक्षात् रुद्राक्ष में वास करते हैं। रूद्राक्ष पर पड़ी खड़ी धारियों को रूद्राक्ष का मुख कहा जाता है। रूद्राक्ष पर जितनी धारियां होंगी, वह उतने ही मुखी माना जाता है। रूद्राक्ष को तोडऩे पर वह अपने ऊपर अंकित धारियों में खरबूजे की फांकों की भांति टूट जाता है। जितने भागों में विभाजित होकर टूटता है, वह उतने मुखी रूद्राक्ष कहलाता है।
एक मुखी से 14 मुखी रूद्राक्ष का संक्षिप्त माहात्म्य
एकमुखी रूद्राक्षः-
एकमुखी रूद्राक्ष का मिलना अत्यंत कठिन बताया जाता है। नेपाल के एकमुखी रूद्राक्ष का मिलना तो दुर्लभ ही बताया गया है। हिमालय की तराई में एकमुखी रूद्राक्ष बहुत कम मिलता है। दक्षिण भारत में अर्द्ध चन्द्रमा के आकार का एकमुखी रूद्राक्ष अल्प मात्रा में पाया जाता है।
इस मंदिर के शिवलिंग में महामृत्युंजय के रूप में विराजमान हैं भगवान शिव एकमुखी रूद्राक्ष को साक्षात भगवान भोले शंकर ही माना गया है। इसको धारण करने से ब्रह्महत्या जैसे महापाप दूर होते हैं, सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा घर में सदा लक्ष्मी का निवास रहता है।
दो मुखी रूद्राक्षः-
दो मुखी रूद्राक्ष शिव-पार्वती या देवी-देवता का स्वरूप धारण बताया गया है। यह गोवध जैसे पापों से मुक्ति दिलाता है। इसको धारण करना मंगलकारी होता है।
तीन मुखी रूद्राक्षः-
तीन मुखी रूद्राक्ष अग्नि स्वरूप बताया जाता है। यह स्त्री हत्या के पापों को नष्ट कर देने की क्षमता रखता है। इसमें तीनों लोकों की शक्तियों का समावेश बताया जाता है।
चार मुखी रूद्राक्षः-
चार मुखी रूद्राक्ष ब्रह्म के समान बताया गया है। यह नर हत्या के पाप को नाश करता है। इसे चारों वेदों का रूप ही माना गया है।
पांच मुखी रूद्राक्षः-
पांच मुखी रूद्राक्ष ब्रह्म स्वरूप माना गया है। शिव के पांचों रूप इसमें निवास करते हैं। यह परस्त्री गमन एवं सभी पापों को हरने वाला बताया गया है। पंचमुखी रूद्राक्ष स्वयं कालाग्नि रूद्र है। पंचमुखी रूद्राक्ष बहुतायत में होता है, अतः सरलता से एवं कम कीमत में मिल जाता है।
छह मुखी रूद्राक्षः-
छह मुखी रूद्राक्ष में साक्षात् शिव के पुत्र कार्तिकेय विराजमान बताये गये हैं। यह ब्रह्महत्या व अन्य पापों को नष्ट करने वाला होता है। यह छह प्रकार की बुराइयों को हरने वाला एवं बुद्धि विकास में सहायक बताया गया है।
सात मुखी रूद्राक्षः-
सात मुखी रूद्राक्ष को सप्त ऋषियों के समान बताया गयाहै। इसे अनंग कामदेव का स्वरूप भी कहते हैं। अतः इसको धारण करने से पूर्ण स्त्री सुख मिलता है एवं स्वर्ण चोरी आदि पापों से छुटकारा मिलता है।
आठ मुखी रूद्राक्षः-
आठ मुखी रूद्राक्ष को गणपति स्वरूप माना गया है। इसके धारण करने से दुष्ट स्त्री व गुरू पत्नी गमन के पापों से मुक्ति मिलती है। जीवन में विध्न-बाधाओं को मिटाने वाला होता है, कष्टों का अन्त होता है।
नौ मुखी रूद्राक्षः-
नौ मुखी रूद्राक्ष भैरव देवता के समान बताया गया है। दुर्गाजी की नौ अवतारों की शक्ति इसमें निहित होती है। नवरात्रों में यह विशेष लाभकारी है। नौमुखी रूद्राक्ष अनेक महापापों का नाश करता है।
दशमुखी रूद्राक्षः-
दशमुखी रूद्राक्ष साक्षात विष्णु भगवान स्वरूप बताया गया है। इसको धारण करने से भूत-प्रेत-पिशाच आदि बाधाएं दूर होती हैं। इसमें दसों देवताओं की शक्ति निहित होती है।
एकादश मुखी रूद्राक्षः-
एकादश मुखी रूद्राक्ष एकादश रूद्रों के समान बताया गया है। इसको धारण करने से सहस्त्र अश्वमेध यज्ञ व एक लाख गायों का दान करने के बराबर पुण्य मिलता है। यह रूद्राक्ष परम हितकारी व लाभकारी माना जाता है।
द्वादश मुखी रूद्राक्षः-
द्वादश मुखी रूद्राक्ष साक्षात् सूर्य का स्वरूप बताया गया है। इसको धारण करने से शारीरिक व मानसिक पीड़ा नष्ट होती है। यह बहुत तेजस्वी रूद्राक्ष है। इससे जीवन में सभी सुख व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
त्रयोदश मुखी रूद्राक्षः-
त्रयोदश मुखी रूद्राक्ष साक्षात् भगवान इन्द्र का स्वरूप माना गया है। इसको धारण करने से यश की प्राप्ति होती है एवं सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
चतुर्दश मुखी रूद्राक्षः-
चतुर्दश मुखी रूद्राक्ष बहुत दुर्लभ रूद्राक्ष है। इसमें संकटमोचन हनुमानजी की शक्ति निहित रहती है जो सभी सकटों को हर लेती है। इसे भगवान शिव का भी स्वरूप माना गया है। इसको धारण करने वाले को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
गौरी-शंकर रूद्राक्षः-
गौरी-शंकर रूद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े हुए रूद्राक्ष होते हैं। इन्हें शिव-पार्वती का रूप माना जाता है। यह एकमुखी रूद्राक्ष के समान लाभकारी है। यह बहुत दुर्लभ है, इसको प्राप्त करने पर पूजागृह में या तिजोरी आदि में रखना उत्तम बताया गया है। अन्य सभी रूद्राक्षों का फल गौरी-शंकर रूद्राक्ष धारण करने से मिल जाता है।
इनके अतिरिक्त गौरी पाठ रूद्राक्ष एवं गणेश रूद्राक्ष का भी उल्लेख मिलता है। यह बहुत दुर्लभ रूद्राक्ष होते हैं। गौरी पाठ रूद्राक्ष में तीन रूद्राक्ष एक साथ जुड़े होते हैं जो शिव-पार्वती-गणेश स्वरूप माने जाते हैं। गणेश रूद्राक्ष में सूंड की आकृति बनी होती है।