‘रक्षाबंधन’ आत्मीयता और स्नेह का है बंधन

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रक्षाबन्धन पर्व आत्मीयता और स्नेह के बंधन से सभी रिश्तों को मजबूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर केवल भाइयों को ही नहीं अपितु अन्य संबंधियों को भी रक्षासूत्र बांधने का प्रचलन है। गुरु, शिष्य को रक्षासूत्र बांधता है, तो शिष्य, गुरु को।

रक्षाबन्धन प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे की हो सकती है। रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है।

रक्षाबंधन सामाजिक और पारिवारिक एकसूत्रता का सांस्कृतिक पर्व। प्यार के धागों का एक ऐसा पर्व जो घर-घर मानवीय रिश्तों में नवीन ऊर्जा का संचार करता है। यह बहनों में उमंग और उत्साह को संचारित करता है। वे अपने प्यारे भाइयों के हाथ में राखी बांधने को आतुर होती हैं। इस दिन बहनें अपने भाई के दाएं हाथ पर राखी बांधकर उसके माथे पर तिलक लगाती हैं और उसकी दीर्घ आयु की कामना करती हैं। बदले में भाई उनकी रक्षा का वचन देता है। ऐसा माना जाता है कि राखी के रंग-बिरंगे धागे भाई-बहन के प्यार के बंधन को मजबूत करते हैं और सुख-दुख में साथ रहने का विश्वास दिलाते हैं।

यह पर्व आत्मीयता और स्नेह के बंधन से सभी रिश्तों को मजबूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर केवल भाइयों को ही नहीं अपितु अन्य संबंधियों को भी रक्षासूत्र बांधने का प्रचलन है।

गुरु-शिष्य को रक्षासूत्र बांधता है, तो शिष्य गुरु को। भारत में प्राचीन काल में जब शिष्य अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बांधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बांधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है, वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे। इसी परंपरा के अनुरूप आज भी धार्मिक विधि-विधान से पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बांधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिए परस्पर एक दूसरे को अपने बंधन में बांधते हैं।

राखी के दो धागों से भाई-बहन ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवीय संवेदनाओं का गहरा नाता रहा है। भाई और बहन के रिश्ते को यह फौलाद-सी मजबूती देने वाला है।

राखी का त्योहार कब शुरू हुआ, इसे ठीक से कोई नहीं जानता। कहते हैं देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तो दानव हावी होते नजर आने लगे। इससे इंद्र बड़े परेशान हो गए। वे घबराकर बृहस्पति के पास गए। इंद्र की व्यथा उनकी पत्नी इंद्राणी ने समझ ली थी। उन्होंने रेशम का एक धागा मंत्रों से अभिमंत्रित कर इंद्र के हाथ में बांध दिया, वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इस युद्ध में इसी धागे की मंत्रशक्ति से इंद्र की विजय हुई थी। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन रेशमी धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। शायद, इसी प्रथा के चलते पुराने जमाने में राजपूत जब युद्ध के लिए जाते थे, तो महिलाएं उनके माथे पर तिलक लगाकर हाथ में रेशमी धागा बांधती थीं। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हें विजयश्री के साथ वापस घर तक लाएगा। स्कंध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है।

रक्षाबंधन के महत्त्व एवं मनाने की बात महाभारत में भी उल्लेखित है कि जब ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है, जिससे आप हर आपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं।

राखी के इस परम पावन पर्व पर भाइयों को ईमानदारी से पुनःअपनी बहन ही नहीं बल्कि संपूर्ण नारी जगत की सुरक्षा और सम्मान करने की कसम लेने की अपेक्षा है।

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