राधाष्टमी होती है सुखों की प्राप्ति
राधाष्टमी राधा जी के जन्म से संबंधित है। जन्माष्टमी के पूरे 15 दिन बाद ब्रज के रावल गांव में राधा जी का जन्म हुआ। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधाष्टमी व्रत रखा जाता है। पुराणों में राधा-रुकमणि को एक ही माना जाता है। जो लोग राधाष्टमी के दिन राधा जी की उपासना करते हैं, उनका घर धन संपदा से भरा रहता है।
स्कंद पुराण के अनुसार राधा श्रीकृष्ण जी की आत्मा है। इसी कारण भक्तजन सीधी-साधी भाषा में उन्हें राधारमण कहकर पुकारते हैं।
भविष्य पुराण और गर्ग संहिता के अनुसार द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण पृथ्वी पर अवतरित हुए, तब भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन महाराज वृषभानु की पुत्री कीर्ति के यहां भगवती राधा अवतरित हुईं। तब से भाद्रपद शुक्ल अष्टमी राधाष्टमी के नाम से विख्यात हो गई। नारद पुराण के अनुसार राधाष्टमी का व्रत करने वाला भक्त ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेता है। पद्म पुराण में सत्यतपा मुनि सुभद्रा गोपी प्रसंग में राधा नाम का स्पष्ट उल्लेख है।
राधाष्टमी पर्व महोत्सव-
बरसाना के बीचोंबीच एक पहाड़ी पर राधा रानी मंदिर है। यहां राधाष्टमी के अवसर पर भाद्रपद शुक्ल एकादशी से चार दिवसीय मेला लगता है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 14 सितंबर को मनाया जाएगा। राधाष्टमी के दिन श्रद्धालु बरसाना की ऊंची पहाड़ी पर पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं।
राधाष्टमी के उत्सव में राधाजी को लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। राधा रानी को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और इसे बाद में मोर को खिला दिया जाता है। मोर को राधा-कृष्ण का स्वरूप माना जाता। ब्रज और बरसाना में जन्माष्टमी की तरह राधाष्टमी भी एक बड़े त्योहार के रूप में मनाई जाती है।
वृंदावन में भी यह उत्सव बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। मथुरा, वृंदावन, बरसाना, रावल और मांट के राधा रानी मंदिरों में इस दिन को विशेष उत्सव के रूप में मनाया जाता है।