पहाड़ों के लिए वरदान बनी लेमनग्रास

जंगली जानवरों आतंक से खेती करना छोड़ चुके किसानों के लिए उम्मीद की किरण बनकर आई लेमनग्रास व तेजपात।
बता दें कि जयहरीखाल प्रखंड के अंतर्गत पीड़ा गांव के काश्तकारों ने भी अन्य ग्रामीणों की तरह जंगली जानवरों के आतंक से खेती करना छोड़ दिया। ऐसे में लेमनग्रास की खेती गांव के लिए वरदान साबित हुई।

साल 2013 में वीरेंद्र सिंह ने सगंध पौधा केंद्र से संपर्क किया व उन्हें अपनी पीड़ा बताई। इसके बाद केंद्र के वैज्ञानिक डॉ.नृपेंद्र चैहान ने ग्राम पीड़ा के साथ ही ग्राम बेवड़ी व चुंडई में काश्तकारों द्वारा छोड़ी गई भूमि का स्थलीय निरीक्षण किया।
निरीक्षण के दौरान भूमि को लेमनग्रास व तेजपात की खेती के लिए उपयुक्त पाया गया, जिसके बाद काश्तकार वीरेंद्र सिंह रावत ने अपनी 20 नाली भूमि पर लेमनग्रास की खेती कर दी। परिणाम सुखद रहे, जिसके चलते वर्ष 2014 में सगंध कृषिकरण के लिए पूरी कार्ययोजना तैयार कर ली गई। वर्ष 2015 में गांव के 26 काश्तकारों ने अपनी बंजर पड़े खेतों में उगी लैंटाना व अन्य खरपतवारों को हटाकर करीब छह हेक्टेयर भूमि में लेमनग्रास उगा दी। साथ ही 122 काश्तकारों ने करीब 11 हेक्टेयर भूमि पर तेजपात का रोपण कर दिया।

उम्मीदों के अनुरूप लेमनग्रास का बेहतर उत्पादन हुआ, जिस पर गांव में लेमनग्रास के आसवन के लिए 10 कुंतल क्षमता का एक आसवन संयत्र स्थापित कर दिया गया। उत्पादित लेमनग्रास से ग्रामीणों को 30 किलोग्राम तेल प्राप्त किया गया। वर्ष 2016 में 25 कृषकों की 11 हेक्टेयर भूमि में लेमनग्रास की रोपाई की व वर्ष 2017 में ग्राम डोबा में बंजर पड़ी करीब चार हेक्टेयर भूमि पर 22 काश्तकारों ने लेमनग्रास की रोपाई की।

वर्तमान में पीड़ा कलस्टर में 73 किसानों की लगभग 21 हेक्टेयर भूमि में लेमनग्रास की खेती की हुई है। ग्रामीण आसवन से करीब पांच सौ किलोग्राम तेल प्राप्त कर चुके हैं, जिसे उत्तराखंड सरकार एक हजार रुपये प्रति लीटर के हिसाब से खरीद रही है। काश्तकारों की मानें तो फसल उगाने में एक बार की मेहनत अवश्य है, लेकिन उसके बाद सात-आठ वर्षों तक सिर्फ फसल काटने की जरूरत होती है।

गांव के किसान वीरेंद्र सिंह रावत का कहना है कि वास्तव में लेमनग्रास की खेती क्षेत्र के लिए वरदान साबित हो रही है। जंगली जानवर के आतंक के चलते पारंपरिक खेती छोड़ चुके ग्रामीण अब तेजी से लेमनग्रास की खेती की ओर बढ़ रहे हैं। अकेले पीड़ा गांव में 1100 नाली भूमि पर ग्रामीण लेमनग्रास की खेती कर रहे हैं। समय आ गया है कि पारंपरिक खेती छोड़ इस तरह नकदी खेती कर स्वयं की आर्थिकी बढ़ाई जाए।

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