ना काटा, तौं डाल्यूं ना काटा, , दिदौं डाल्यूं ना काटा . . .
UK Dinmaan
देरादूणम देरादूण रैवासियों क् तीस बुझौंणा खूणि 2000 डाळौं तैं कटणा क त्यारि सुरु ह्वेग्ये। डाळा काटिकि वीं जमीन मा एक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बण्यें जालु। उन्न बि देरादूण खूणि या क्वीं नै बात नी च, हरद्वार रोड़, माँ डाटकाली, सहस्त्रधारा, रिंग रोड कखि बि विकास नौ पर डाळौंन की मुण्ड त कतगै दा गिंडै (कटा) ग्यायी।
कबि डाळा-ब्वाटा देरादूणा सान हूंद छायी, पर आज विकास नौं पर डाळौं पर लाल निसाण लगै जाणा छन अर विकासा नौं पर डाळौं क मुण्ड गिंडै जाणि च।
विकास बौत जरूरी है, पर कैकु विनास कैकि त कतै ना अर वु बि डाळौं कु किलैकि डाळा कटणा से हमरू पर्यावरण पर उल्टु असर हूंद।
डाळा कटणा कु सीधु असर पर्यावरण पर हूंद। धरति म कार्बन डाई ऑक्साइड मात्रा जादा ह्वे जान्द। जमीना तागत कम ह्वे जान्द। यां से ग्लोबल वार्मिग जन्नि दिक्कत पैदा हूंदन।
इतगै हि ना कम हूंदा डाळौं कु असर हमरि जैव विविधता पर बि प्वडदु। जैव विविधता खळाखळ खराब हूंद अर कतगै जीव-जन्तु अर वनस्पतियौं फर बि खतम हूणा खतरा बि पैदा ह्वे जान्द। डाळा कटणा कारण हमरू जलचक्र तैं बि नुकसान हून्द। जैकु सीधु असर मौसम पर प्वड़दु। भ्वां मा पाणि कु स्तर कम हूंणू च।
यांका बाद बि हम विकासा क नौं पर डाळा कटण से हूण वला नुकसाना बारम कतै नी स्वचण छा। हम विकास नौं पर सिरफ अर सिरफ बढ़दै जाणा सीमेन्टा जंगल म रैंण वला सैरि (शहरी) लोगु क तीस बुझौंणा बारम स्वचझा छौ अर बोण कटणा त्यारि करणा छौं।
अर जरा बि नी स्वचणा छौ कि जब हम डाळा-ब्वाटौं तैं इन्न कटला रौंळा त भोळ जब डाळौंक संख्या बौत कम ह्वे जाली त क्य होलु? डाळा वाप्पन क क्रिया से जल तैं मुक्त करदन, जै से बरखा वला बादल बणदन। जब बोण कम हूंदन वख बरखा बि कम होन्दि। जब बरखा कम होलि त भ्वां म हौरि डाळा बूटा बि नी जमि सकदन।
डाळा कार्बनडाई ऑक्साइड तैं भितर लेकैकि हम खूणि सांस लिंणा खूणि आक्सीजन छ्वण दन। बिना ऑक्सीजन क्वीं बि जीव ज्यूंदू नी रै सकदू।
जख आज हमतैं नै पीढ़ि तैं जादा से जादा डाळा लगौंणा सीख देंणि छायीं, हमतैं पर्यावरण बचौंणा खूणि डाळा लगौंणा कु काम पैलि करण चैंद छायीं, वख आज हम विकासा नौं पर अर अपड़ा फैदा खूणि डाळौं तैं कटणा छौ। अर प्रकृति कु संतुलन तैं खराब करणा कु कारण बणणा छा।
आज जै जिन्दगि क् तीस बुझौंणा खूणि हम डाळौ तैं कटणा बारम स्वचणा त छौ पर कखि इन्न ना हो कि भोळ वा जिन्दगि बिना डाळौं क् खतरा म पोड़ि ज्यां।
देरादूण मा खलंगा वन क्षेत्र मा विकासा नौं पर 2000 डाळों पर आरी चलौंणा त्यारि हूणि च। लोगुक तीस बुझौंणा खूणि पाणि कु बडु तलौ बण्यें जाणु च। जै खूणि 2 हजारा डाळों मुण्ड गिंडौं खूणि डाळौं पर लाल रंग निसाण लगै ग्येन। इन्न जरा स्वाचा कि यु कख कु अर कनु निसाब च की मनिख कि तीस बझौंण खूणि, डाळौं क जिन्दगि से खेल करै ज्यां। तीस बुझौंणा खूणि तलौ जरूरी च पर डाळा बूटौं तैं काटिक त कतै ना।
तलौं बणण जरूरी च किलैकि जिन्दगि खूणि पाणि जरूरी च पर ज्यूंद रैंणा खूणि सांस बि उतगै जरूरी च। सांस लिंणा खूणि ऑक्सीजन बौत जरूरी अर ऑक्सीजन खूणि ऑक्सीजन देंण वला डाळों बौत जरूरी छन। भवैष्या क् तीस बुझौंणा खूणि, आजै डाळौं क सांस खतम नी करण चौंद। नथर कखि भोळ इन्न ना हूंया क तीसु त क्वीं नी रालु पर सांस लिंणा खूणि ऑक्सीजन कम ह्वे जाली अर सांस लिंणा खूणि हमतैं पीठिम ऑक्सीजन कु सिलेण्डर लेकैकि घुमण प्वाड़लु।
अब तुम हि बतावा क्य सै च अर क्य गलत?
हम त सिरफ चंख (सतर्क) करणा छौ कि – डाल्यूं ना काटा चुचो डाल्यूं ना काटा, डाळि कटेलि त माटि बगलि, कुड़ि ना, पुंगड़ि ना, डोखरि बचलि, घास लाखड़ा ना खेति ही रालि, भोल तेरि आस-औलाद क्या खाली . . .।