माइग्रेन क्यों और कैसे ?

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कई बीमारियों का आगाज सिरदर्द से ही होता है। माइग्रेन भी वही बीमारी है। इस मौसम में यह बीमारी अधिक सताती है।
आज के बदलते परिदृश्य में हर व्यक्ति के जीवन में भागदौड़ है। इस वजह से जीवनशैली में बदलाव आना स्वाभाविक है। हर किसी को कभी न कभी, किसी न किसी दर्द से जूझना पड़ता है। इन्हीं दर्दों में से एक है माइग्रेन, जो मौसमी सिरदर्द है और इस मौसम में लोगों को ज्यादा प्रभावित कर रहा है।
माइग्रेन क्या है? इसके कारण और इससे कैसे बचा जा सकता है। आइये जानते है मैक्स सुपर हॉस्पिटल के न्यूरो विशेषज्ञ से –

माइग्रेन क्या है
माइग्रेन एक प्रकार का मस्तिष्क विकार है, जिसमें सिरदर्द होता है। यह प्रायः शाम के समय प्रारंभ होता है। इसमें दर्द 2 से 72 घंटे तक हो सकता है।

माइग्रेन दो प्रकार के होते हैं:
एपिसॉडिक माइग्रेन (प्रासंगिक माइग्रेन)
क्रॉनिक माइग्रेन (दीर्घकालिक माइग्रेन)
कौन से अंग प्रभावित होते हैं?
इस में सिर में एकतरफा दर्द होता है। इसलिए आम बोलचाल की भाषा में इसे अधकपारी भी कहा जाता है।

क्या है इसके लक्षण
माइग्रेन में जीभ का मिचलाना, वोमिटिंग, फोटोफोबिया (प्रकाश वृद्धि पर संवेदनशील होना), फोनोफोबिया (ध्वनि वृद्धि में संवेदनशीलता) और शारीरिक गतिविधियों का बढ़ जाना प्रमुख है। सेरेब्रल कॉर्टेक्स (मस्तिष्क की बाहरी परत है, जो कि टिशू होता है) में वृद्धि के कारण उत्तेजना और दर्द अधिक होता है।

प्रभावित करने वाले कारण
मौसम में बदलाव (खासकर मानसून में इसके मरीजों की संख्या कई गुना बढ़ जाता है), वातावरण में होने वाला शोर-शराबा, मोटर-गाड़ी की आवाज, शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव, रोशनी का अधिक और कम होना, तनाव, भावात्मक तनाव, कम सोना, धूम्रपान करने से तथा अन्य कई कारकों से माइग्रेन के रोगी प्रभावित होते हैं।

किसे करता है अधिक प्रभावित
माइग्रेन किशोरावस्था से पहले लड़कियों की तुलना में लडक़ों को अधिक प्रभावित करता है, लेकिन महिलाओं में पुरुषों की तुलना में माइग्रेन होने की आशंका अधिक होती है। आमतौर पर देखा गया है कि प्रसव काल के दौरान इसकी आशंका काफी कम हो जाती है।

किन-किन बातों का ध्यान रखें
यह रोग हवा और धूप के पडऩे से 30 प्रतिशत बढ़ जाता है। रोशनी और सोने की आदत माइग्रेन बढऩे का प्रमुख कारण है। मौसमी सिरदर्द 75 प्रतिशत दूषित पर्यावरण और 46 प्रतिशत अन्य कारणों से होता है। प्रत्येक 9 डिग्री फॉरेंहाइट तापमान बढऩे पर 7.5 प्रतिशत बीमारी बढऩे का जोखिम रहता है।

समझदारी और जानकारी इस बीमारी से बचाने में मददगार हो सकती है। इससे बचने के लिए एक डायरी बनाएं, जिसमें माइग्रेन से संबंधित सभी तथ्यों का समावेश होना चाहिए। मसलन पहली बार सिरदर्द होने पर कितनी देर तक सिरदर्द हुआ और उसके लक्षण क्या थे, सिरदर्द पहले से ज्यादा हो रहा है या कम, इस दौरान कौन सी दवाएं ली गईं आदि।

इलाज कैसे होता है
इस बीमारी का इलाज दो तरह से होता है। पहला एक्यूट ऑबरेटिव ट्रीटमेंट और दूसरा प्रिवेंटिव ट्रीटमेंट। इस बीमारी में उपचार का पहला उद्देश्य लक्षणों को दूर करना होता है। उसके बाद सिरदर्द को कंट्रोल करना पड़ता है। माइग्रेन में प्राथमिक उपचार का लक्ष्य आवृत्ति, तीव्रता और सिरदर्द को कम करना होता है। इस उपचार में मरीज को कम से कम तीन महीने और कुछ स्थिति में छः महीने तक नियमित दवा लेनी चाहिए। रोगी को इस बीमारी में प्राथमिक उपचार कराना चाहिए और डॉक्टर की सलाह से दवा लेनी चाहिए। उपचार निवारक पद्धति में पहले दवा की कम खुराक दी जाती है और धीरे-धीरे खुराक को तब तक बढ़ाया जाता है, जब तक कि दर्द से निजात न मिल जाए। इस पद्धति में मरीज को दवा का साइड इफेक्ट न हो, इसका भी पूरा ख्याल रखा जाता है। भावनात्मक उपचार द्वारा प्रायः असंवेदनशील रोगियों का इलाज किया जाता है। एक्यूपंचर चिकित्सा प्रासंगिक माइग्रेन और दीर्घकालिक माइग्रेन, दोनों में कारगर है, परंतु शोध के अनुसार यह पता लगता है कि एक्यूपंचर का प्रभाव दवा की तुलना में आभासी होता है।

माइग्रेन बढऩे के कारण
अपने देश में माइग्रेन बढऩे की वजह लोगों की जीवनशैली में आया बदलाव है। यहां के लोगों की जीवनशैली तेजी से बदल रही है। इस कारण कॉरपोरेट कल्चर में बेहतर मांग को लेकर आम लोगों के जीवन में हमेशा तनाव रहता है। हालांकि माइग्रेन को लेकर कोई एक सर्वमान्य सिद्धांत नहीं है। यह एक मस्तिष्क विकार माना जाता है। इसका प्राथमिक सिद्धांत यह है कि अधिकतर लोग जानकारी के अभाव में दर्द निवारक दवाओं का प्रयोग करते हैं, जो स्वास्थ्य पर प्रतिकू ल प्रभाव डालते हैं।

इससे बचाव के हैं उपाय

अधिक से अधिक पानी पिएं।
सूर्य की रोशनी से दूर रहें।
नियमित समय पर खाना खाएं और सोएं।
अनजान दवाओं का सेवन न करें।
काले चश्मे का प्रयोग करें, जो आपको धूप से बचाए।
भीड़-भाड़ वाले स्थान पर जाने से बचें।
अपनी कार्य क्षमता को जानें और तनाव से मुक्त रहें।
रात में अच्छी नींद लें।
सोते समय कमरे की बत्ती बुझा दें।

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