1 मई , अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस

UK Dinmaan

सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर,
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।

मुनव्वर राना

एक मई का दिन मजदूर दिवस के तौर पर मनाया जाता है। सन् 1877 में मजदूरों ने काम के घंटे तय करने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। एक मई 1886 को पूरे अमेरिका के लाखों मजदूरों ने एक साथ हड़ताल शुरू की। इस तरह पहली मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत हुई। एक मई को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस, श्रम दिवस या मई दिवस भी कहते हैं।

1 मई को देशभर की कंपनियों में छुट्टी रहती हैं। मजदूर दिवस कामकाजी लोगों के सम्मान के लिए मनाया जाता है। कहा जाता है कि किसी भी देश के विकास के पीछे सबसे बड़ा हाथ मजदूरों का होता है। ऐसे में मजदूरों को सही वेतन और सम्मान मिलना चाहिए। मजदूर दिवस भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में मनाया जाता हैं।

मजदूर दिवस की शुरुआत अमेरिका के शिकागो में 1 मई 1886 में हुई थी। एक मई 1886 को पूरे अमेरिका के लाखों मजदूरों ने एक साथ हड़ताल शुरू की। इस हड़ताल में 11,000 फैक्टरियों के कम से कम 3,80,000 मजदूर शामिल हुए। मज़दूरों ने 8 घंटे काम की मांग को लेकर एक साथ हड़ताल शुरू की थी। मजदूरां की इस हड़ताल में कई मजदूरों की जान चली गई थी। कई मजदूरो के खून बहाने के बाद ही लोगों को उनका हक मिला था। दरअसल हड़ताल के दौरान शिकागो के मार्केट में विस्फोट हो गया था जिसके बाद पुलिस ने मजदूरों पर गोली चलाई गई जिससे कई मजदूरो की जान चली गई।

इस घटना के बाद मजदूरों ने हड़ताल को रोका नहीं बल्कि अपने हक के लिए अपने हड़ताल को जारी रखा. मजदूरां ने धरना कर अपना वेतन बढ़ाने और काम के घंटे कम करने का दवाब बनाना शुरु किया। उस समय मजदूरों के 12 घंटे काम करना पड़ता था। फैक्ट्रियों में बच्चों के साथ बहुत ही शोषण किया जाता था। मजदूरों से मुश्किल हालातों में काम करवाया जाता था।

भारत में 1 मई 1923 को श्रमिकों द्वारा “मद्रास दिवस” मनाया गया था। किसान मज़दूर पार्टी के नेता ने इसकी शुरूआत की थी और मद्रास हाईकोर्ट सामने इस दिन को पूरे भारत में “मजदूर दिवस” के रूप में मनाने का संकल्प लिया और छुट्टी का ऐलान किया था।

अब्राहम लिंकन के अनुसार, “अगर कोई व्यक्ति आपसे कहे कि वह अमेरिका से प्यार करता है, फिर भी मजदूर से नफरत करता है, तो वह झूठा हैस अगर कोई कहे कि वो अमेरिका पर भरोसा करता है, फिर भी मजदूर से डरता है, तो वह एक बेवकूफ है।”

एडम स्मिथ के अनुसार, “दुनिया की सारी संपदा को वास्तव में सोने या चाँदी से नहीं, बल्कि मजदूरी के द्वारा खरीदा जा सकता है।”

जॉन लोके के अनुसार, “वास्तव में ये मजदूर ही हैं, जो सभी चीजों में अन्तर पैदा करते हैं।“

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