क्या जनता भटकने को ही है . . .

एक बार फिर फैसला बदलते दिखे मुख्यमंत्री। करना कुछ चाहते कुछ है और हो कुछ जाता है। जन समस्याओं के सुनवाई को लेकर विपक्ष कांग्रेस के निशाने पर आये सीएम साहब एक बार फिर बैक फुट पर है। सरकार जनता के द्वार इस मुद्दे पर हमेशा विवाद होता ही रहा लेकिन इस बार मामला कुछ ज्यादा ही गंभीर नजर आया। जिस दिन विधान सभा में मंत्रियों के बैठने के लिए दिन निश्चित कर जन समस्याओं के हेतु चुना गया, उसी  दिन से यह सवाल उठने शुरू हो गये।  बड़ा सवाल यह है कि क्या आमजन मानस को विधान सभा के आसानी से प्रवेश मिल पायेगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि जिस सरकारी सिस्टम से परेशान होकर फरियादी अपनी समस्या को लेकर राजधानी माननीयों के पास आये वो अब ‘विधासभा गेट पास’ को लेकर एक नई समस्या से जुझता हुआ सरकारी सिस्टम के आगे बेबस हार न जाये। इस सिस्टम की जद्दोजहद से बचाने के लिए मुख्यमंत्री ने नया फैसला लिया और जन समस्याओं के लिए भाजपा कार्यालय को चुना। यहां भाजपा ने फरियादी की उपस्थिति फोन नम्बर सहित भाजपा कार्यालय के रजिस्ट्रर में दर्ज कर आवेदन पर प्रदेश भाजपा की मुहर लगाकर प्रदेश में एक नई व गलत परिपाठी विकसित करने काम ही किया है। भाजपा की इस कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लाजमी है कि क्या मुख्यमंत्री भाजपा पार्टी के है या फिर उत्तराखण्ड के? आखिर ये पार्टी वाले क्यों नहीं समझ पाते कि सरकार किसी पार्टी की नहीं प्रदेश की होती है। अब मुख्यमंत्री जी का नया फरमान कि सप्ताह में दो दिन ‘विधान सभा पास फ्री किया जायेगा, क्या यह समस्या का समाधान है? इससे भी बड़ा सवाल यह कि आखिर जनता को किसी भी समस्या के समाधान के लिए माननीयों के पास आना ही क्यों पड़ता है। सरकार व सरकारी सिस्टम को इतना मजबूत होना चाहिए कि ब्लाक/ जिले से ही जिम्मेदारी और जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए। वरना सरकारी तंत्र समाधान नहीं खुद समस्या बन जायेगा। आज कि परिस्थिति में तो हाथ जोड़ वोट मांगने वाले जनप्रतिधिनि राजा और जनता सरकार के द्वार दर-दर भटकने को ही मजबूर नजर आती है।

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