कै जमाना मा राजभाषा छै ‘गढ़वाल़ी’

UK Dinmaan

आजै गढ़वाल़ी, जां तैं बच्याण मा, हमारा लोग छ्वट्टा-बड़ा, अपणि बेइज्जती समझदन ? इलै निं ब्वल्दा। इतिहास मा कै जमाना मा लगभग 1200 सालों तक गढ़वाल राज्य की राजभाषा राए। या बात अलग छ कि उबारे गढ़वाल़ी को रूप कुछ औरि छौ। पर सिरफ गढ़वाली ही राए भले ही उबारे तैं गढ़वाल़ अर गढ़वाल़ी को क्वी अस्तित्व नि छायो।

सोल़वी शताब्दी का शुरूआत तक गढ़वाल या गढ़वाल़ी नौं की क्वी संज्ञा-सर्वनाम नि छाए, भले ही वे जमाना मा बी गढ़वालै़ भौगोलिक सीमा लगभग वीइ छै जो आज छन पर शासक गढ़पति होंदा छा। उबारे का लोग अपणो परिचय पट्टी, परगना अर इलाका का नौं से देंदा छा जो उंकी पछ्याण होंदी छै। भौगोलिक विषमताओं की वजह से अपणी बोली (जो आज बी प्रचलित छन) को इस्तेमाल करेदों छौ जनकि टिरियाली ,सलाणी, नागपुर, रंवाल्टी ,बधाणी शब्द को वर्णन नि मिलदो।

उबारे गढ़पति अपणा गढ़ याने राज्य का मालिक होंदा छा अर लगभग स्वतंत्र ही होंदा छ। गढ़वाल़ का राजाओं की वंश परम्परा मा सिर्फ एक राजा ह्वै वो बी गढ़पति ही छौ जै की राजनधानी चांदपुर गढ़ छै। गढ़वाल़ का राजाओं की वंश परम्परा मा 31 वीं पीढ़ी मा बी काफी फैलिग्ये छौ।

राज्य की सीमाओं मा विस्तार अर ठीक-ठाक राज्य चलाणा वास्ता अजयपालन चांदपुरगढ़ बटि सिरीनगर अपणि राजधानी बणाए। अजयपाल साहसी, वीर अर बड़ा राज्य को मालिक बणण चांदो छौ। उबारे का गढ़पति अपणा वार-ध्वार का गढ़पतियों से बैर त रखदा ही छा जांको फायदा उठैकै अजयपालन इकेक कै सब्बी गढ़ जीतिदीं अर अपणा राज्य मा मिलैदीं।

बावन गढ़ों का अपणा वे विशाल राज्य तैं सम्भवतः अजयपालन गढ़वाल़ नौं दे। जाहिर छ अजयपाल की बुद्धि बी तेज ही रै होली । वांका बाद ए इलाकौ नौ गढ़वाल़ ,यखा रैबासी गढ़वाल़ी अर उंकी भाषा गढ़वाली अपणा-आप ह्वैग्ये।

गढ़वाल़ राज्य बणणा बाद बी गढ़वाल़ शब्द व्यापक रूप से प्रचलित नि ह्वै पायो। यां को कारण शिक्षा की कमी अर भौगोलिक असमानता ही छाए ।

सिर्फ राज-काज मा गढ़वाल़ को जिक्र होंदों राए। सन् 1803 मा (गोरखाली) गोरखौं को आक्रमण अर 12 बरस तक गढ़वाल़ राज्य पर राज कना दौरान गढ़वाली भाषा राज-भाषा नि बणि पाए। उबारे गोरखाल़ी राजभाषा राए। राजा प्रद्युम्नशाह (1803) का बाद अंग्रेज ऐंन। उंन गढ़वाल का द्वी हिस्सा कैरिकै एक हिस्सा अपणा पास रख्ये अर हैंको प्रद्युम्नशाह का पुत्र सुर्दशन शाह तैं दे दे। अंग्रेजी राज्य मा उर्दू ,अंग्रेजी अर हिन्दुस्तानी का प्रयोग राज-काज मा होण्ां लैग्ये।

लेकिन टिहरी गढ़वाल़ मा ,राजाओं को गढ़वाल़ी से प्रेम राए अर उंन पूरी गढ़वाल़ी को निरादर नि करे। राजा भवानी शाह का शासनकाल तक राज्य की अंदरूनी लिखा-पढ़ी गढ़वाली मा ही हांदी रै।

राजा भवानी शाह का समय पर शिक्षा को प्रसार होंदो रै। उर्दु मिश्रित हिन्दुस्तानी की जगा मा हिन्दी को इस्तेमाल करेंण लैग्यें। महाराजा नरेन्द्रशाह का शासन काल मा सर्रा राज-काज हिन्दी मा ही होण्ां लैग्ये।

लेकिन गढ़वाली़ राजा होंणै वजह से तमाम जरूरी राजाज्ञा, राजा की घोषणा , जागीर थोकदारी , मालगुजारी की सनद गढ़वाल़ी गते , मैंना व सम्वत् को प्रयोग होंदो राए अर यांको चलन आखिरी राजा मानवेन्द्र शाह का शासन काल 1 अगस्त 1949 तक राए।

साभार गढ़वालै धै

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *