जबाव तो देना ही होगा जनाब

UK Dinmaan

विद्युत आपूर्ति बहाली को लेकर अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठना कहां तक उचित है, इसका जबाव तो कैबिनेट बंशीधर भगत ही दे सकते है। लेकिन देहरादून में धर्मपुर विधायक का अपने घर के बाहर प्रदर्शन कर रहे लोगों के साथ धरने पर बैठना और उन्हें ही खरी खोटी सुनाना कतई उचित नहीं है। एक जनप्रतिनिधि का इतना घमण्ड अशोभनीय है, जनता के प्रति उनका यह व्यवहार कतई उचित नहीं है।

बात कुछ ऐसी है कि धर्मपुर विधानसभा के क्षेत्रवासियों अपने क्षेत्र में सड़कों की समस्या और नालियों में पानी की निकासी न होने की समस्या लेकर क्षेत्रीय विधायक के यहां पहुंचे थे। क्षेत्रवासियों को कहना था कि विधायक ने आज तक हमारे क्षेत्र की सुध नहीं ली। क्षेत्र में नाले का पूरा पानी सड़क में बह रहा है, उसे कोई देखने वाला नहीं है। इस पर विधायक ने कहा कि अगले 15 दिन में इसे भी करा लिया जाएगा, विधायक की इस बात को लेकर लोग आश्वस्त नहीं हुए और घर के बाहर सड़क पर बैठ गए।

यही वो बात है जो विधायक को बर्दाश्त नहीं हुई। गुस्से में उन्होंने उल्टा क्षेत्रवासियों से ही सवाल, कि इसके अलावा कोई और रास्ता है तो बताओे? तैस में विधायक भड़क उठे और अपने 5 सालों के काम गिनाते हुए विरोध कर रहे लोगों को उन्होंने जमकर खरी खोटी सुना दी। विधायक का कहना था कि मैं इससे पहले नगर निगम देहरादून के मेयर था। गुस्सा और घमण्ड इतना कि रौ में बोलते चले गये कि अगर मैं नहीं चाहता तो तुम लोग आज भी गांव में रहते, नगर निगम में नहीं होते। मैंने ही आपके क्षेत्र को नगर निगम में शामिल करवाया है। मेरे घर पर आकर मेरी बेइज्जती करते हो। गलती कर दी चुनाव लड़ गया, नहीं लडेंगे अब। विधायक यहां तक बोल गए कि अब भाड़ में जाए तुम्हारा टिकट और तुम्हारा चुनाव। बहुत बड़ी गलती कर दी जो तुम लोगों के बीच राजनीति कर ली, तुम लोग किसी को पनपने नहीं दोगे।

ऐसे में समझा जा सकता है कि आखिर आम आदमी अपनी समस्या लेकर जाए भी तो कहां? जब न जन प्रतिनिधि सुन रहा है और न सरकार?

विधायक जी को यह समझना चाहिए जनता शिकायत नहीं, अपनी समस्याओं लेकर आती है, जिसके लिए उसने आपको चुना है। विधायक जी विधायकी की धौंस में जनता का सम्मान करना भूल गये।

विधायक जी सवाल आपने उठाये है। जवाब भी आपको ही देना होगा। विधायक जी बताये! कि हमने कब और क्यों कहा था कि हमें नगर निगम में शामिल करो? विधायक जी हर आदमी गांव से ही जुड़ा होता है और गांव से ही जुड़े रहना चाहता है। आपकी शहर चकाचौंध है जो विकास के नाम पर गांवों की सादगी, ताजी हवा, मिट्टी की खुशबु व शान्ति को ही को निगल जाती है। विधायक जी बताये हमने कब कहा था आपसे चुनाव लड़ने को, या फिर हमने कब टिकट दिया आपको? है कोई जवाब आपके पास इन सवालों का।

रहा सवाल राजनीति का तो विधायक जी राजनीति अपने लिए की जाती है न कि जनता के लिए। जन सेवा के लिए राजनीति की कोई आवश्यकता नहीं है, हां राजनीति के लिए स्वयंभू जन-सेवक बनना बेहद जरूरी है।

रही बात गलती कि तो गलती आप ने नहीं, जनता ने की है? सजा आपको नहीं जनता को मिलनी चाहिए क्योंकि इस जनता ने आपको प्रदेश के सबसे बड़े शहर का मेयर और फिर विधायक बनाकर सर आंखों में बैठा। इसी जनता को आप यह कह कर कोस रहे है कि उसने आप को पनपने नहीं दिया।

बहरहाल विधायक जी, जनता सवाल करें तो खराब, पीछे घूमे तो शाबाश! विधायक जी ये गांव की नहीं, आप ही के बनाये गये शहरीकरण की शहरी जनता है। जिसे अपने जन प्रतिनिधि से पांच सालों के कामों का हिसाब चाहिए। आपको जवाब देना ही होगा? वरना जनता अपना जवाब देगी, जो शायद आपके लिए कतई उचित नहीं होगा। हां तब जनता दोषी हो सकती है और आप कह सकते है कि मुझे अलाणा-फलाणा मंत्री (पनपने) बनने से रोक दिया?

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