इंसानों की परेशानी का सबब बने बंदर पक्षियों के लिए भी बने सिरदर्द
UK Dinmaan
भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्लूआईआई) के वैज्ञानिक एक चिंताजनक जानकारी सामने लाये हैं। वैज्ञानिकों की अध्ययन रिपोर्ट में सामने आया है कि इंसानों की परेशानी का सबब बने बंदर चिड़ियाओं के लिए भी सिरदर्द बन गए हैं। बिगड़ैल बंदर न सिर्फ चिड़ियाओं के घोंसले तोड़ रहे हैं बल्कि उनके मौजूद अण्डों व छोटे-छोटे बच्चों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। बड़े पैमाने पर हो रहा बंदरों का यह कारनामा चिड़ियाओं की वंशवृद्धि के बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।
उत्तराखण्ड की जैव विविधता अपने आप में अनोखी है। वन विभाग की सूची के मुताबिक यहां चिड़ियाओं की 693 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से कई प्रजातियां तो दुर्लभ भी हैं जिन्हें रेड डाटा बुक में इंडेजर्ड स्पसीज की की श्रेणी में रखा गया है। इन दुर्लभ प्रजातियों में से 28 उत्तराखण्ड में विलुप्त हो चुकी हैं, वो इसलिए क्योंकि जलवायु परिवर्तन से हिमालयी क्षेत्र के माहौल में आ रहा बदलाव इन्हें रास नहीं आया। यानि पक्षियों के विलुप्त होने में वातावरण में तेजी से आ रहा बदलाव अब तक मुख्य कारण रहा है। लेकिन अब चिड़ियाओं को एक नई चुनौती से जूझना पड़ रहा है, वो हैं बंदर। उत्तराखण्ड में बंदरों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। राज्य में उनकी कुल संख्या दो लाख से ऊपर पहुंच गई है। ये उत्पाती बंदर फसलों को तो नुकसान पहुंचा ही रहे हैं, चिड़ियाएं भी इनकी निशाने पर हैं। डब्लूआईआई के वैज्ञानिकों का मानना है कि ये बंदर आबादी क्षेत्र से सटे जंगलों में रहते हैं। इन पेड़ों में मौजूद चिड़ियाओं के घौंसलों को ये नष्ट करने लगे हैं। कई बार तो यह भी देखने में आया है कि बंदर घौंसलों में मौजूद अण्डों को खा भी रहे हैं और चिड़ियाओं के बच्चों को मार रहे हैं।
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‘वैज्ञानिक रिसर्च में यह सामने आए हैं कि बंदर बड़े पैमाने पर पक्षियों के अंडों को खा रहे हैं। ऐसे में चिड़ियाओं का प्रजनन और उनकी तादाद बढ़ना बड़ा मुश्किल हो गया है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहा है’।
डा. वाईवी झाला,
वरिष्ठ वैज्ञानिक, डब्लूआईआई।
‘वन्यजीव अधिनियम की सख्ती की वजह से सरकार इन बंदरों को ज्यादा दिनों तक बाड़े में नहीं रख सकती। पकड़ने के बाद भी इन्हीं कहीं न कहीं दूसरी जगह छोड़ना ही पड़ता है। बंदरों की नसबंदी भी आसान नहीं है। इनमें नसबंदी ऑपरेशन की सफलता भी बहुत कम है’।
डा. हरक सिंह रावत,
वन मंत्री, उत्तराखण्ड।