इगास हमरि लोक परम्पराओं तैं संजौणा तिवार
हमरा लोक जीवन अर लोक परम्पराओं म भौत कुछ चा जो सबि से अलग अर अनुकरणींय च। हमरा पुरण्यों न जो परम्परा अर तीज तिवार बणाया छया वुका पिछनै लोक हित अर लोक परम्पराओं तैं अगनै बढ़ौणा विचार खास छौ।
हमरा लोक म हर तिवार अर रीति रिवाजा खातिर लोक कथा अर लोक किंवदतीं छन। इन्नि किंवदतीं च लोक तिवार इगास-
इगास, लोक किंवदतीं
अब आप तैं बथदौं इगासै बात। हमरा लोक म हर तिवार अर रीति रिवाजा खातिर लोक कथा अर लोक किंवदतीं छन।
बुल्दन बल एक गौं म एक मवासा का गुठ्यार म गौड़ि, बल्दों का दगड़ि एक बोड़ छौ जैकु नौ छौ झल्या बोड़। वो भौत नटखट अर चंट बोड़ छौ। बग्वाळा दिना बात चा वीं मवा ल सब्बि गौड़ि, बल्दों तैं गुठ्यार म पींडु, पाणि खवै, सब्यों को सिगों परैं तेल लगै, वोंकि पूजा कैरि अर वों तैं ड़ांडा चरणा खातिर हकै देन ग्वैरा का दगड़ि। पर झल्या तैं म्यलणों बिसरि गैन। वो बिचरू छनुड़ा भितर हि बंध्यों रैगे। जबरि गोर ड़ांडा जाणा छया तबरि झल्या रामि बि च पण कैन वैकि आवाज नि सूणि। जब गोर ड़ांडा पौंछि गैन तब पला चालि कि अरै झल्या ता घौर म हि रैगे।
तब आनन-फानन म ग्वैर छनि म गैन अर झल्या तैं जंगळ ल्हे , वैथें चरणा खातिर, यीं रकारोड़म वैका सिंगों परैं न त कैन तेल लगै, न वैकि पूजा कै अर न वै तैं पींडु पाणि खवै। य बात झल्या का मन म बैठिग्यें अर वो रूसै गे। इलै झल्या हौरि गोरों सै अलग दूर जंगळा भितनै चलिगे। अर जांदा-जांदा कतगा दूर पौंछिग्यें य बात झल्या तैं बि पता नि चलि।
इनां ग्वैर जबरि शाम दों गोरों तों घरा बौडौंना खातिर धै लगैकि बुलौणा छया ता वोंन देखि कि सबि गौर ऐगेन पण वो झल्या अज्यों तलक नि ऐ। वोंन सोचि ऐ जालु पण काफी देर बात बि जब वो नि ऐ तो ग्वैर वै तैं इनां, उनां जंगळ म ख्वजणा रैन पण झल्या छौ कि कखि दिखे नी। टौखणि बि मरीन, धै बि लगै पण झल्या ता कखि बिटिन रमणों बि नि लग्यों । रात होण लगीं छै जगंळ म बाघ, स्यू कि डैर अर घौर वळों तैं फिकर होलि कि गोर अर ग्वैर किलै नि बौड़ा अज्यों तलक यी सोचिकि ग्वैरों न सोचि कि हम गोरों तैं ल्हेकि घौर चलि जंदन। झल्या तैं ख्वजणा खातिर बाद दिखे जालि। ग्वैर गोरों तैं ल्हेकि घौर ऐगेन। घार वळों जब पता चालि ता वोंन ग्वैरों तैं खरि, खोटि सुणै कि बोड़ कख हरचौदेन? रात लोग लालटेन बाळी, गैस बाळी झल्या तैं ख्वजणां खातिर जुगळ गैन। अध राति तलक झल्या तैं खोजि पण झल्या छौ कि कखि दिखे नी। तै दिन बिटिन लगातार झल्या तैं ख्वजणा रैंन पण झल्या छौ कि मीलि हि नी। लोगोंन सोचि कि सैद बाघन मारि यालि हो। पण बाघ बि मरदु ता कखि वैका हड़गा ता मिल्दा। सबि अचरज म छया कि गै चा ता गै कख चा झल्या? न यंी ढंया, न वै पाखा न तै रौला पण लोगोंन बि झल्या तैं ख्वजणु जारी राख।
एक दिन जब ख्वजदा दूर जंगळ म पौंछी ता वोंन देखि डाळों का झुरमुट का निसा एक गदनि ब्वगणीं अर समणि झल्या खडु चा। लोगों ने देखी ता वख आपरूपी शिवलिंग बि वों तैं दिखे। वै हि शिवलिंगा समणि झल्या एकटक खडु हुयों छौ। लोगोंन व जगा साफ कैरि, शिवलिंग मा पाणि चढै अर झल्या तैं घौर ल्हेऐन। झल्या तैं घौर ल्हाणा बाद कै दाना सयाणा न बोलि यु बोड़ हर्चि नी चा। तुमन वैकि गयळि कैरि, बग्वाळा दिन न तुमन झल्या तैं न त पींडु, पाणि दे, न सींगों परैं तेल लगै इलै वो रूसै गे। तब वे दिन झल्या पूजा करेगे, वै का कुंपळा सिंगों परैं तेल लग्ये गे अर वैकि पूजा करेगे। किलैकि झल्या यकुलु बोड़ छौ जैकि ये दिन पूजा करेगे, पींडु, पाणि दियेगे अर सिंगों परैं तेल लगये गे इलै ये दिना नौ पोड़ि इगास मतलब इ माने यकुलु अर गास माने जै तैं गास या पेंडु, पाणि खाणु दियेगे। तब ये दिना खुणि इगास बुल्दन।
बग्वाळा बाद बारा दिन बाद मीलि छौ झल्या तबी ये दिना खुणि इगासा रूपम मनये जांद।