नवरात्र, कैसे करें पूजा अर्चना

करिष्यामि व्रतं मातर्नवरात्रमनुत्तमम्।
सहाय्यं कुरु में देवि जगदम्ब! ममाखिलम।।

प्रत्येक वर्ष में चार नवरात्र होते हैं परंतु चैत्र और आश्विन नवरात्र को अधिक महत्त्व दिया गया है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस बार शरदीय नवरात्रों की शुरुआत गुरुवार 7 अक्टूबर 2021 से हो रही है। इस अवधि में पूर्ण व्रत रखना शुभ है। यदि पूरा व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन कर सकते हैं परंतु यह भोजन सात्विक होना चाहिए।

प्रथम दिन योग्य ब्राह्मण से पूछ कर घट स्थापना करें। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियों की नित्य विधि सहित पूजा करें तथा अर्घ्य दें। फलों से अर्घ्य देकर हवन करना चाहिए। खांड, घी गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिल्वपत्र, नारियल दाख और कदंब से हवन करें। शक्ति जागृत होती है साधना से। मंत्र शक्ति एवं मंत्र साधनाओं को करने के लिए नवरात्र से अच्छा अवसर कोई हो भी नहीं सकता। गृहस्थ भी इस समय साधना कर लाभ उठा सकते हैं। इस प्रयोग के दौरान कोई त्रुटि भी हो जाए तो नुकसान नहीं होता, फिर भी कुछ सावधानियां अपेक्षित होती हैं-

जिस कार्य के लिए प्रयोग कर रहे हैं उसके लिए पूजा आरंभ करने से पहले जल लेकर संकल्प करें। संकल्प में अपना नाम,पिता का नाम गोत्र, शहर और देश का नाम लें ।

साधना स्थल में प्रवेश करने से पहले स्नान कर लें। स्त्रियां सिर के बाल धोकर बिना कंघी किए पूजा में बैठें।

हर रोज धूप-दीप, दीपक और अगरबत्ती का प्रयोग करें।

समय से पहले ही समस्त पूजन सामग्री एकत्र कर लेनी चाहिए।

पूजा घर में देवी के लिए चौकी रखें उस पर लाल कपड़ा बिछाएं और चौकी को सुंदर मंडप का रूप दें।

आसन कुश या कंबल का होना चाहिए।

जप करने की माला संभाल कर रखें। अच्छा होगा कि माला जप गौमुखी में ही रख कर करें।

पूरे साधनाकाल में पवित्रता के साथ रहें । ध्यान रखें कि वैचारिक पवित्रता भी होनी आवश्यक है।

पूजा के समय आपके वस्त्र लाल, पीले अथवा सफेद रंग के होने चाहिए।

साधना देवी मंदिर में, किसी भी मंदिर में,पर्वत शिखर पर अथवा घर के एकांत कमरे में करनी चाहिए।

प्रतिदिन का जप संपन्न हो जाने पर दाहिने हाथ में जल लेकर अपना संकल्प पुनः दोहराएं और कहें कि- मां! मैंने जो जप किया है वह आपको समर्पित करता हूं। ऐसा कह कर जल छोड़ दें, यह सोचते हुए कि जल मां दुर्गा के हाथों में छोड़ रहे हैं।

दशमी के दिन समस्त सामग्री कुछ दक्षिणा के साथ देवी मंदिर में चढ़ा दें तथा उपयोग की हुई सामग्री , फूल आदि जल में प्रवाहित कर दें। कैसे करें पूजा-घर के एकांत में मंडप बना कर चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर दुर्गा प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें। आसन पर बैठ कर बाएं हाथ में जल लेकर पवित्रीकरण करें।

इसके बाद आचमन करें फिर बाएं हाथ में अक्षत लेकर दाहिने हाथ से उसे ढंक कर मंत्र से दिग्बंधन करें। फिर उन चावलों को चारों दिशाओं में उछाल दें। किसी भी पूजा या अनुष्ठान का गणेश पूजा के बाद ही होता है। यदि आपके पास गणेश जी का कोई विग्रह नहीं है तो एक सुंदर साबुत सुपारी लेकर सामने गणपति के रूप में स्थपित कर दें।

उसका पूजन करें फिर हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें तथा कामना करें कि आपकी पूजा निर्विघ्न संपन्न हो, फिर पुष्प व अक्षत गणेश जी को समर्पित कर दें।

कलश स्थापना-
जहां कलश स्थापना करनी है उस स्थान को दाहिने हाथ से स्पर्श करें। उस स्थान पर कुंकुम, अक्षत व पुष्प चढ़ा कर सभी देवताओं का ध्यान करें।

तत्पश्चात मां जगदंबा का आवाहन करें। इसके बाद मां की षोडशोपचार पूजा करें। पुष्प अक्षत चढ़ाएं , मौली और फूलों की माला अर्पित करें तथा धूप-दीप समर्पित करें।

नैवेद्य में मिष्ठान्न अर्पित करें। जप की माला के सुमेरु पर कुंकुम अक्षत और पुष्प चढ़ा कर पूजन करें। अगर संभाल सकें तो पूरे नवरात्र में अखंड दीप जलाएं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *