गोपीनाथ मंदिर
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उत्तराखंड के चमोली जनपद में स्थित गोपीनाथ मंदिर की अपनी विशेष धार्मिक, पौराणिक, एवं पुरातात्विक पहचान है । जो कि चमोली जनपद के मुख्यालय गोपेश्वर में स्थित है। भगवान गोपीनाथ जी का यह भव्य एवं प्राचीन मंदिर भगवान शिव का प्रतीक है। गोपेश्वर गांव में स्थित यह मंदिर अपनी विशिष्ट वास्तुकला के कारण भी अलग से पहचाना जाता है । इसका एक शीर्ष गुंबद है । इस विशाल एवं भव्य मंदिर का गर्भगृह 30 वर्ग फुट का है ।
जहां मध्य में बेहद आकर्षक एवं भव्य शिवलिंग है। उसके ठीक सामने माता पार्वती भगवान के सम्मुख खड़ी प्रतिमा के रूप में विराजमान हैं। यहां की पौराणिक जानकारियों के अनुसार मुख्य मंदिर के अलावा आसपास के क्षेत्र में भी सैकड़ों देवी-देवताओं के मंदिर थे, जिसका प्रमाण आज भी यहां मिल जाता है । मंदिर के 100 मीटर के आसपास वाले क्षेत्र में खंडित हुई मूर्तियों के अतरिक्त सैकड़ों शिवलिंगों के अवशेष इस बात का भी प्रत्यक्ष प्रमाण देते हैं कि प्राचीन समय में यहां अन्य देवताओं के सैकड़ों मंदिर रहे होंगे। वर्तमान में सभी खंडित मूर्तियों एवं शिवलिंगों को भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा संग्रहीत कर दिया गया है, जिन्हें मंदिर की परिक्रमा में सुशोभित किया गया है ।
एक धार्मिक मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि जो भक्त किन्हीं कारणों से भी केदारनाथ सहित अन्य पंच केदारों के दर्शन नहीं कर सकते हैं, तो वे भगवान गोपीनाथ जी के दर्शनों के साथ ही परिक्रमा में स्थित पंच केदारनाथ के प्रतीक शिवलिंगों की एक साथ पूजा अर्चना कर यहां पर पुण्यलाभ अर्जित कर सकते हैं । यह स्थान इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इसी स्थान पर भगवान केदारनाथ के मुखभाग रुद्रनाथ जी की उत्सव मूर्ति शीतकाल में विराजमान होती है। भगवान केदारनाथ जी के मुखभाग रुद्रनाथ जी की यहां पर प्रतिदिन भव्य पूजा-अर्चना की जाती है ।
गोपीनाथ मंदिर में है चमत्कारी त्रिशूल :
मंदिर के ठीक सामने आंगन में अष्ट धातु का विशाल त्रिशूल है जिसकी ऊंचाई 5 मीटर है, जो 12वीं शताब्दी का बताया जाता है । इस अष्ट धातु के त्रिशूल पर 13वीं शताब्दी के नेपाल के राजा अनेकमल्ल से संबंधित अभिलेख को उकेरा गया है। इसके अतरिक्त त्रिशूल पर ही उत्तरकाल में देवनागरी में लिखे चार अभिलेखों में से तीन की गूढ़लिपि का पढ़ा जाना अभी शेष है ।
कामदेव पर यहीं फेंका था शिव ने त्रिशूल :
पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब कामदेव ने देवादिदेव भगवान भोलेनाथ की साधना को अपने छल से भंग किया, तब भगवान शिव ने कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका था, तो वह इसी स्थान पर धंस गया था । गोपेश्वर मंदिर परिसर में स्थित इस पवित्र त्रिशूल की धातु विशेषज्ञों के लिए आज भी कौतुहल, जिज्ञासा एवं शोध का विषय बनी हुई है । इस विशालकाय त्रिशूल पर किसी भी मौसम का प्रभाव नहीं पड़ता है ।
इस त्रिशूल पर एक विशेष चमक सदैव बनी रहती है । इसका एक और चमत्कारी पक्ष यह है कि अगर कोई भी भक्त इस विशाल त्रिशूल को अपने पूरे शाररिक बल से हिलाने का प्रयत्न करता है तो यह नहीं हिलता है, जबकि एक अंगुली मात्र से इसे सच्चे मन से छू लिया जाए, तो यह धीरे-धीरे डोलने लगता है और इसमें कंपन पैदा होने लगती है ।