‘गणेशोत्सव’ कु त्योवार

भादौ कु मैना मा शुक्ल पक्षा चतुर्थी बिटि चतुर्दशी तक सर्या देसम गणेशोत्सव मन्यें जान्द। उन्न गणेशात्सव कु महाराष्ट्रम खास महत्व च अर अब सर्या देसम मन्यें जान्द।

ब्वले जान्द कि शिवाजी क माता जीजाबाई न पुणे म गणपति की स्थापना कायी छायीं अर पेशवाओंन गणेशोत्सव तैं अगनै बढ़ै। उन्न त पैलि गणेशोत्सव कुटुम्बदरि (पारिवारिक) कु त्योवार छायीं पर बाद म बाल गंगाधर तिलक न ये त्योवार तैं सामाजिक रूप द्यायी, जैका बाद गणेशोत्सव राष्ट्रीय त्योवार बणिग्ये।

भगवान गणेश कु यु त्योवार चतुर्थी बिटि चतुर्दशी (अनंत चौदस) तक दस दिन कु त्योवार च। भगवान गणेशा दस दिन तक विधि विधान से पूजा करै जान्द।

सनातन धर्म मा क्वीं बि शुभ काम करण से पैलि गणपति की पूजा करै जांद। गणेश जी क पूजा करै जान्द अर ब्वलें जान्द बल- जैकी सूंड वक्र च, जैकु शरैल महाकाय च, जु करोड़ो सूर्यों जनि तेजस्वी च, इन्न भगवान गणेश हमरा सबि कामु तैं बिना कै बाधा कु सुफल कर्यां।

गणेशजी कु पैदा हूंणा बारम अलग-अलग कथा छन। वराह पुराणनुसार भगवान शिवन पंच तत्वों तैं मिलैकि गणेश कु अस्तित्व बणै। गणेश जी बौत सुंदर छायीं, गणेश जी क चौतर्फा हाम हूंण बैठिग्ये, जैतैं देखिकि द्य्बतौं म नराजगी पैदा ह्वेग्ये। जैका बाद भगवान शिवन गणेशजी कु लद्वड़ु (पेट) तैं बढ़ै दे अर गणेश जी कु मुण्ड तैं हाथी कु मुण्ड जनि बणै दे, जै से गणेशजी क सुदंरता कुछ कम ह्वे ज्यां।

शिव पुराण म एक हौरि कथा च। शिवपुराण कथानुसार एकदा भगवान शिव कखि भैर चलिग्यींन। शिवजी क भैर जाणा बाद पार्वतीन अपणु शरैला मैलन एक पुतला बणै अर वैं तैं ज्यूंदू कै दे अर द्वार पर खड़ु कैकि बोलि कैथैं बि भितर नीं औंण दे अर पार्वती नयेण खुणि चलिग्ये। कुछ बगत बाद भगवान शिवजी वापिस ऐग्येन। द्वार पर खड़ा गणेश जी भगवान शिव तैं भितर नीं जाणि दे। गणेश जी यु बरतौव देखिकि भगवान शिव नराज ह्वेग्यीं अर उन्न अपणा त्रिशुल से गणेश कु मुण्ड काटि दे। जैथैं देखिकि पार्वती भगवान से नराज ह्वेग्ये। जैका बाद भगवान शिवन पार्वती तैं खुस करणा खुणि हाथी कु मुण्ड गणेश तैं लगैकि गणेश जैं ज्यूंदू कै दे।

ब्रह्मवैवर्त पुराणा कथानुसार गणेश जी कु पैदा हूंणा बाद पार्वती न सबि द्यब्तौं तैं न्यूती, जनि कैकि सबि द्यब्ता गणेश तैं आशीर्वाद दे सक्यां। शनि अपणि घरवळि क श्रापा कारण वख जाणम डरणा छायीं। किलैकि शनि तैं ऊंकी घरवळि कु श्राप छायीं कि वु कै तैं बि पिरेम से द्याख्ला त वैंकु मुण्ड फुट्टि जालु। डौर-डौरिक शनि वख पौंछिन त गणेश जी तैं देखिकि शनि पिरेम से दय्खण बैठिग्यींन। जन्न शनि ने गणेश जी तैं पिरेम से देखि उन्न श्रापन अपणु प्रभौव दिखै। तब द्य्बतौं न हाथी कु मुण्ड लगै कि गणेश तैं ज्यूंदू कै दे। गणेश तैं देखिकि पार्वती बौत दुखी ह्वेग्ये। तब सबि द्यब्तौं न ऊतैं आशीर्वाद अर भेंट द्यायी। इंद्र न अंकुश, वरुण न पाश, ब्रह्मान अमरत्व, लक्ष्मी न ऋद्धि-सिद्धि अर सरस्वतीन सर्या विद्या देकैकि सबि द्यब्तौं म ऊंतैं सर्वोपरि बणै दे। तब जैकि माता पार्वती तैं संतोष ह्वे। तबि बिटि गणेश उत्सव मनौंणा कु रिवाज सुरु ह्वे।

1890 कु दशकम जब स्वतंत्रता कु आंदोलन चलणु छायीं, वै बगत बालगंगाधर तिलक लोगु तैं एक कनकैकि करे ज्यां यु स्वचणा छायीं, तबि ऊंका ज्यूं म एक विचार ऐ कि किलै न गणेश जी कु त्योवार तैं मन्यें ज्यां। जब उन्न गणेशोत्सव तैं एक राष्ट्रीय त्योवार कु रूप द्यायी। अर साल 1893 म पैलि बार गणेशोत्सव उर्यें ग्यायी जु मट्ठु-मट्ठु कैकि सर्या महाराष्ट्रम फैलिग्ये।
गणेशोत्सव न आजादी क आंदोलन मैं एक नै अलख जगै दे। तबि बिटि महाराष्ट्रम गणेश उत्सव मनौंणा कु रिवाज सुरु ह्वे।

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