प्रसिद्ध सिद्धपीठ कालीमठ
रुद्रप्रयाग जनपद के मन्दाकिनी घाटी में गुप्तकाशी से 10 किलोमीटर की उत्तर पूर्व में प्रसिद्ध सिद्धपीठ श्री कालीमठ मंदिर है! समुद्र तल से 1463 मीटर की ऊँचाई पर स्थित केदार शिकाह और चैखम्बा की ढाल और काली नदी के दाहिने तट पर काली मां का प्रसि( सिद्धपीठ है। अनादिकाल काल से यहां पर मां काली की पूजा की जा रही है। देवी भागवत कथा में लिखा है कि इसी क्षेत्र के मनसूना स्थान में दो बड़े बलशाली राक्षस शुम्भ एवं निशुम्भ रहते थे।
मां भगवती की असीमित शक्तिपुंज के रूप में स्थित है कालीशिला और कालीमठ। कालीशिला मां काली का प्रकाट्य स्थल है तो कालीमठ मां के अंतर्ध्यान स्थल के रूप में विख्यात है। कालीशिला करीब आठ हजार फुट की ऊंचाई पर कालीमठ से लगभग 8 किमी खड़ी चढ़ाई पर स्थित है। जबकि, कालीमठ सरस्वती नदी के किनारे स्थित है। विश्वास है कि मां दुर्गा शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज का संहार करने के लिए कालीशिला में 12 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हुई थीं। कालीशिला में देवी-देवताओं के 64 यंत्र हैं।
मान्यता है कि इस स्थान पर शुंभ-निशुंभ दैत्यों से परेशान देवी-देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की थी। तब मां प्रकट हुई। असुरों के आतंक के बारे में सुनकर मां का शरीर क्रोध से काला पड़ गया और उन्होंने विकराल रूप धारण कर लिया। मां ने युद्ध में दोनों दैत्यों का संहार कर दिया। मां को इन्हीं 64 यंत्रों से शक्ति मिली थी।
स्थानीय निवासीओं के अनुसार, यह भी किवदंती है कि माता सती ने पार्वती के रूप में दूसरा जन्म इसी शिलाखंड में लिया था। वहीं, कालीमठ मंदिर के समीप मां ने रक्तबीज का वध किया था। उसका रक्त जमीन पर न पड़े, इसलिए महाकाली ने मुंह फैलाकर उसके रक्त को चाटना शुरू किया। रक्तबीज शिला नदी किनारे आज भी स्थित है। इस शिला पर माता ने उसका सिर रखा था।
कालीमठ मंदिर में एक कुंड है, जो रजत पट श्रीयंत्र से ढका रहता है। शारदीय नवरात्रों में अष्टमी को इस कुंड को खोला जाता है। मान्यता है कि जब महाकाली शांत नहीं हुईं, तो भगवान शिव मां के चरणों के नीचे लेट गए। जैसे ही महाकाली ने शिव के सीने में पैर रखा वह शांत होकर इसी कुंड में अंतर्ध्यान हो गईं। माना जाता है कि महाकाली इसी कुंड में समाई हुई हैं। कालीमठ में शिव-शक्ति स्थापित हैं। यहां पर महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, गौरी मंदिर और भैरव मंदिर स्थित हैं। यहां अखंड ज्योति निरंतर जल रही है।
कालीमठ में महाकाली, श्री महालक्ष्मी और श्री महासरस्वती के तीन भव्य मंदिर है! इन मंदिरों का निर्माण उसी विधान से संपन्न है जैसा की दुर्गासप्तशती के वैकृति रहस्य में बताया है अर्थात बीच में महालक्ष्मी, दक्षिण भाग में महाकाली और वाम भाग में महासरस्वती की पूजा होनी चाहिए !
कालीमठ में इन तीनों शक्तियों के मंदिरों में पूजा होती है ! किन्तु जानकारी के अभाव में यात्रिगण मुख्य रूप में महाकाली मंदिर में ही पूजा अर्चना करते है! माँ काली के विषय में कहा गया है की वे बहार से जिंतनी भयंकर और कठोर है हृदय से उतनी ही कोमल ! वे अपने उपासको से शीघ्र प्रसन्न होकर मनोकामना पूर्ण करती है।