दीपावली दीपों का पर्व है, पटाखों का नहीं

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दीपावली अर्थात ‘रोशनी का त्योहार’। दीवाली भारत के सबसे बड़ा त्योहारों में से एक है। यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। किन्तु आज आधुनिकता की इस दौड़ में दीपों की जगह जगमग होती विद्युतीय झालरों ने व पटाखों के शोर ने इस पर्व की पहचान ही बदल दी आज पटाखे दिवाली पर्व की पहचान बने चुके है। ‘पटाखों से जहां ध्वनि और वायु प्रदूषण तो फैलता है साथ ही पर्यावरण में कार्बन डाई आक्साइड और कार्बन मोनो आक्साइड का स्तर बढ़ जाता है। ये गैसें हवा में मिलकर श्वांस रोगियों, बुजुर्गो और बच्चों को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं।

यही कारण पिछले साल दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बढ़ते प्रदूषण और पर्यावरण के चलते दिल्ली में पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगा दी थी। जिस कारण एक तरफ दिल्ली के पटाखा व्यापारियों नाराज थे तो दूसरी तरफ दिल्लीवासियों ने भी जमकर पटाखे चलाये।

जिस कारण इस बार फिर दीवाली पर सुप्रीम कोर्ट ने बीच का रास्ता अपनाते हुए नया निर्देश जारी किया है। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण के साथ-साथ जनमानस की धार्मिक भावना को ध्यान में रखते हुए दीवाली पर रात को आठ से दस बजे के बीच पटाखे चलाने की अनुमति व क्रिसमिस और नए साल के लिए रात 11.45 से 12.45 तक का समय निर्धारित किया है।

यहां सुप्रीम कोर्ट ने अपना काम कर दिया। अब बड़ा सवाल यही है कि क्या इसे पूरी तरह अमल में जा सकता है, क्या पुलिस विभाग के लिए हर तरफ नजर रखना सम्भव हो पायेगा जो इसका जवाब न में ही होगा। लेकिन यह सम्भव हो सकता है जब देश का प्रत्येक नागरिक स्वयं कोर्ट के फैसले का आदर करें। पर्यावरण तथा अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए प्रदूषण मुक्त दीपावली मनाने का संकल्प ले।

त्योहार मानते समय हमें यह ध्यान रखना होगा कि पर्यावरण को कोई हानि न हो। प्रदूषण मुक्त दीपावली आज की आवश्यक है। आज पर्यावरण की शुद्धता हमारे लिए उतनी ही जरूरी है, जितना कि भोजन।

आओ इस बार हम सब संकल्प ले और अपने पर्यावरण तथा स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आदर करते हुए प्रदूषण मुक्त दीपावली मनायें। याद रखें दीपावली दीपों का पर्व है, पटाखों का नहीं।

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