सबसे ज्यादा पूज्य त्योहार ‘दीपावली’
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दीपावली अथवा दिवाली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। त्योहारों का जो वातावरण धनतेरस से प्रारंभ होता है, वह आज के दिन पूरे चरम पर आता है। दीपावली भारत के त्योहारों में अपना विशिष्ट स्थान रखती है।
धार्मिक मान्यता :
धर्मग्रंथों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचंद्रजी चैदह वर्ष का वनवास काटकर तथा असुरी वृत्तियों के प्रतीक रावण का संहार करके अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इसीलिए दीपावली हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। बहुत से शुभ कार्यों का प्रारंभ भी इसी दिन से माना गया है। इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। विक्रमी संवत का आरंभ भी इसी दिन से माना जाता है। अतः यह नए वर्ष का प्रथम दिन भी है। आज ही के दिन व्यापारी अपने बही-खाते बदलते हैं तथा लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।
धनतेरस एवं छोटी दिवाली :
वास्तव में धनतेरस, नरक चतुर्दशी ;जिसे छोटी दिवाली भी कहा जाता हैद्ध तथा महालक्ष्मी पूजन-इन तीनों पर्वों का मिश्रण है दीपावली। भारतीय पद्धति के अनुसार प्रत्येक आराधना, उपासना व अर्चना में आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैविक इन तीनों रूपों का समन्वित व्यवहार होता है। इस मान्यतानुसार इस उत्सव में भी सोने, चांदी, सिक्के आदि के रूप में आधिभौतिक लक्ष्मी का आधिदैविक लक्ष्मी से संबंध स्वीकार करके पूजन किया जाता हैं। घरों को दीपमाला आदि से अलंकृत करना इत्यादि कार्य लक्ष्मी के आध्यात्मिक स्वरूप की शोभा को आविर्भूत करने के लिए किए जाते हैं। इस तरह इस उत्सव में उपरोक्त तीनों प्रकार से लक्ष्मी की उपासना हो जाती है।
पूजन विधि :
लक्ष्मी जी के पूजन के लिए घर की साफ-सफाई करके दीवार को गेरू से पोतकर लक्ष्मी जी का चित्र बनाया जाता है। लक्ष्मीजी का चित्र भी लगाया जा सकता है। संध्या के समय भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, केला, अनेक प्रकार की मिठाइयां होनी चाहिए। लक्ष्मी जी के चित्र के सामने एक चैकी रखकर उस पर मौली बांधनी चाहिए। इस पर गणेश जी की व लक्ष्मी जी की मिट्टी या चांदी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए तथा उन्हें तिलक करना चाहिए। चैकी पर छह चैमुखे व 26 छोटे दीपक रखने चाहिए और तेल-बत्ती डालकर जलाना चाहिए। फिर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करना चाहिए। पूजा पहले पुरुष करें, बाद में स्त्रियां। पूजन करने के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें। एक छोटा तथा एक चैमुखा दीपक रखकर लक्ष्मीजी का पूजन करें। इस पूजन के पश्चात् तिजोरी में गणेश जी तथा लक्ष्मी जी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें।
दीपदान :
दीपावली के दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्त्व है। इसके लिए दो थालों में दीपक रखें। छह चैमुखे दीपक दोनों थालों में रखें। छब्बीस छोटे दीपक भी दोनों थालों में सजाएं। इन सब दीपकों को प्रज्वलित करके जल, रोली, खील-बताशे, चावल, गुड़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से पूजन करें और टीका लगाएं। व्यापारी लोग दुकान की गद्दी पर गणेश, लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें। इसके बाद घर आकर पूजन करें। एक चैमुखा, छह छोटे दीपक गणेश-लक्ष्मीजी के पास रख दें।
इस दिन महालक्ष्मी का पूजन के साथ गणेशजी और मां सरस्वती के साथ-साथ नृसिंहजी के या वराह देवता के का पूजन भी करना चाहिए।
ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि अर्थात् अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीके से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं। दीपावली मनाने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर स्थायी रूप से सद्गृहस्थों के घर निवास करती हैं।
पूजन की सामग्री :
महालक्ष्मी पूजन में केसर, रोली, चावल, पान, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बताशे, सिंदूर, सूखे मेवे, मिठाई, दही, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती, दीपक, रूई तथा तांबे का कलश चाहिए।