दवै भि च काफल
उत्तराखण्ड क बोण मा बौत किस्म-किस्मा क फल-फूल हुन्दि। जैमा एक नौ च ‘काफल’।
बव्लदा त इन्न छन कि काफळ थैं अॅफू फर बौत तिड़्याण (अकड़) च, काफल अफुथैं द्यब्तौ कू खाणा कू फल समझदुं।
कुमाऊंनी भाषा मा एक लोक गीत जैमा काफल अपणा ठीस (दुःख) लगान्दु बल ‘खाणा लायक इंद्र का, हम छियां भूलोक आई पणां।
जैकू मतबल च कि हम स्वर्ग लोक मा इन्द्र का खाणा क फल छायीं, पर अब धरती मा छौ।
अजकाळ काफळा कू स्वाद पहाड़क रैवासी खुब ळिणा छन।
काफळ पहाड़क बोण (जगंल) मा मिळण वाला एक बोण कु फळ च जुु रूड़ियों मा हि हूंद।
लोक कथा च बल –
काफल पाक्यो, मिल नि चाखो’। ळोककथा इन्न च बल जैमा एक सीख बी च कि कुछ भि काम करण से पैलि बौत बार सोचण चैन्द।
ब्वलदा इन छन कि बहुत पैलि बोण मा एक छ्वटु सि पाड़ मा एक कज्याण अपणा नौना-बाळों दगड़ि रैन्दि छायीं। ऊंकी मवसि बहुत गरीब छायीं, जै कारण वू बौत मेहनत कैरिक अपड़ा पुटगि भव्रदा छायीं। अर कभि-कभि बिना र्वट्टि खैकि सैईं जांदा छायीं।
एक दिन कज्याण बोण बटि काफल ल्यायी अर अपणा नौना खुंणि ब्वोळि कि यूथैं अंक्वैंकि धैरदें। अर कज्याण अपणा पुगड़ा मा काम करणा खंुणि चळग्यें। मिट्ठा काफळ देखिक नौना का मुख मा लारू आ ग्याई, तबरि वे थैं अपड़ि ब्वे की बात याद ऐग्याई, अर नौनाळ अपणु मन मार द्यायी अर काफल नि चाखा।
बैय्खुनी जब ब्वे घौर आईं त काफल धामळ सुखे ग्यंे छाई, जै कारण काफल कम लगणा छायीं। ब्वे ल स्वाच कि नौनाळ काफळ खैय्ळी। गुस्सा मा ब्वेळ अपणू नौनू थैं मारि द्यायी। काफळ वखमि प्वड़या रैगीं।
दूसरू दिनमा जब बरखा ह्वायीं त काफळ बरखा मा भिजकि दुबरा फूळिगैं अर जादा दिख्यैंण बैठिग्यीं। तबि वीं कज्याण थैं अपड़ि गळति कू पता चलि। लेकिन तबरि तक त बौत अबेर ह्वैग्यें छायीं। अब नौनू कख बटि आळु।
तब बटि इन ब्लदन कि उ नौनु ”घुघुती“ बड़िकि अमर ह्वैग्याई अर आज भी धै लगाणु च ”काफल पाको, मिल नि चाखो“।
काफलक क गुण:
छ्वटि गुठळी अर वेरी जना फल काफल पकणा का बाद लाल ह्वै जंदन।
आयुर्वेद मा काफल थैं भूख लगण की दवै बतयें ग्यायी। मुधमेह बिमार मनखि खुणि काफल रामबाण च।
काफळक एंटी-ऑक्सीडेंट गुण हमरा शरीर खुंणि बहुत फैदामन्द हूंद जै कारण से तनाव कम हूंद अर जिकुड़ि क बिमारी कू खतरा भी कम ह्वै जांद।