चुनाव पर भविष्यवाणी के खतरे
प्रो. एनके सिंह
अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार
राजनीतिक दलों की कड़ी प्रतिस्पर्धा व नजदीकी लड़ाई के बारे में जब आप कोई भविष्यवाणी करते हैं तो आपको अपने साथ एक हेलमेट भी रखने की बहुत जरूरत होती है। वे, जो आपके अनुमान में जीतने की संभावना रखते हैं, कड़े आलिंगन के द्वारा आपकी हड्डियां तोड़ सकते हैं। सबसे बुरी स्थिति तब होती है जब कोई आपकी भविष्यवाणी से अपना पक्का विश्वास टूटने के कारण व्यथित होता है। ऐसे लोग आपके ऊपर सबसे बुरे शब्दों के पत्थर फेंक सकते हैं। जैसे ही विभिन्न राज्यों में चुनावी लड़ाई की उग्रता बढ़ती है, लेखकों की सुरक्षा को खतरे भी उसी अनुपात में बढ़ जाते हैं। एक बार मैंने इसी तरह की गंभीर धमकी का सामना किया।
मैंने पुलिस को इसकी रिपोर्ट की, किंतु आम दिनों की तरह पुलिस ने कुछ नहीं किया तथा न ही संभावित हमलावर ने मुझे छूने की कोशिश की। मैं हंसा और उस मौला का धन्यवाद किया जो खतरे की स्थिति में सभी निर्दोष लोगों को बचाता है। हाल में मैंने एक भविष्यवाणी की जिस पर भयानक प्रतिक्रिया आई, किंतु यह अधिकतर इलेक्ट्रानिक मीडिया पर थी। जबकि कई लेखकों ने मेरे मूल्यांकन की प्रशंसा की तथा मिठाइयां भी बांटी, किंतु जिन्होंने इस भविष्यवाणी को पसंद नहीं किया, उन्होंने मुझे शर्मिंदा करना चाहा। एक नेता ने लिखा, ‘सर, आप एक बुद्धिजीवी है… परंतु आप मोदी द्वारा इस देश के लोकतांत्रिक ढांचे को किए जा रहे नुकसान को देख नहीं पा रहे है… भारत ने प्रधानमंत्री के पद पर अब तक इतना झूठा व्यक्ति कभी नहीं देखा… कृपया आप हमें बताएं कि मोदी ने इस देश के लिए क्या अच्छा किया है… उनका अहम रावण से भी ज्यादा है… पार्टी के भीतर कोई लोकतंत्र नहीं है… सुषमा स्वराज और राजनाथ सिंह जैसे नेताओं की निर्णय निर्माण में कोई भूमिका नहीं है… अमित शाह व उनका परिवार अपार संपदा जोड़ रहे है… जेटली जैसे नेता भ्रष्ट हैं।’ मैंने अपनी भविष्यवाणी पर प्रतिक्रिया देने वाले इस शख्स के उद्वरण को विचारपूर्वक यहां उल्लेखित किया है क्योंकि यह एक विचार का प्रतिनिधित्व करता है तथा ऐसे विचार कांग्रेस के लोगों के हैं। इसके विपरीत विचारों का प्रतिनिधित्व भाजपा द्वारा किया जाता है तथा किसी भी तरह मैं किसी पार्टी से संबंधित नहीं हूं तथा न ही प्रतिबद्ध विचार मैं रखता हूं। मैं ‘बहम सत्य आगत माया’ ढंग से वास्तविकता को देखने की कोशिश करता हूं ताकि मैं वह लिख सकूं जो सत्य के ज्यादा करीब होता है। जब मैं लिखता हूं तो मैं उपनिषद की इस सूक्ति को दोहराता हूं-‘हिरनमय पतरेन सत्यसियापी हितम मुखम’। सत्य का चेहरा स्वर्ण पलक द्वारा ढका गया है तथा संस्कार मुझे सत्य देखने के लिए इसे हटा देता है। स्वर्ण पलक महान संतों की एक लाजवाब उपमा है जिन्होंने इस दार्शनिक सूक्ति को लिखा। कोई भी व्यक्ति वैयक्तिक पूर्वाग्रहों से भ्रम निवारण की कोशिश कर सकता है, किंतु गलती के बिना ऐसा करना असंभव है।
जिन्होंने मेरे कालम को पढ़ा है, वे पाएंगे कि स्पष्ट नजरिया रखने के लिए निश्चित प्रयास हुआ है। अब तक मेरी अधिकतर भविष्यवाणियां समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं। वर्तमान चुनावों से संबंधित दो बड़े मुद्दे हैं। पहला है भविष्य के नजरिए को स्पष्ट रूप से देखने की कोशिश करना। दूसरा है मोदी या राहुल अथवा अन्य नेताओं का व्यवहार। जहां तक पहले का संबंध है, मैंने यह रेखांकित किया है कि कौन से ऐसे राज्य हैं जहां अभी भाजपा का राज है तथा जहां पहले की सीट संख्या में कमी आ सकती है। मेरा विश्लेषण कहता है कि उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा कुछ अन्य राज्यों में भाजपा को थोड़ा नुकसान हो सकता है। इसके अलावा उड़ीसा, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर पूर्व, महाराष्ट्र, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक व तमिलनाडू में भाजपा कुछ बेहतर कर सकती है। संपूर्ण तौर पर जबकि भाजपा लाभ में है, जैसा कि यहां स्पष्ट होता है, तो वह पिछली बार के चुनावों की सीट संख्या के आसपास क्यों नहीं रह सकती है? पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 280 सीटें अकेले ही मिल गई थीं, जबकि बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत थी। यदि हम यह मान लें कि भाजपा को यूपी में 10 सीटों का नुकसान होगा, तो भी ज्यादातर राज्यों में उसके लाभ की स्थिति में होने के कारण उसकी सीट संख्या बढ़ेगी ही।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस चुनाव में अधिकतर भविष्य वक्ताओं ने एनडीए को 260 से 270 सीटें मिलने का अनुमान जताया है। अगर समूचे विपक्ष के वोट कंबाइन हो जाते तो एनडीए का सफाया हो सकता था, किंतु ऐसा नहीं हुआ है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा कुछ अन्य राज्यों में महागठबंधन नहीं हो पाया है। गठजोड़ हमेशा चुनावों में उभरे हैं। कुछ भविष्य-वक्ताओं को अभी भी गणतीय एकता के दिनों का हैंगओवर चल रहा है। मेरे विचार में जमा व घटाव के बाद भाजपा अकेले ही इस चुनाव में 280 से 290 सीटें जीतेगी। अब चुनाव में एक और विवाद उभर कर सामने आया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव रैलियों में राजीव गांधी को सर्वाधिक भ्रष्ट प्रधानमंत्री कहा है, जबकि कोर्ट द्वारा उन्हें बरी किया जा चुका है। लेकिन मोदी व शाह को भी क्लीन चिट मिल चुकी है तथा वे चोर व हत्यारे की गालियों के पात्र नहीं हैं। घटनाओं के भद्दे क्रम में यह विकार राहुल गांधी लेकर आए हैं। मैंने सरकार में काम किया है तथा मैं राजीव गांधी को भी रिपोर्ट करता था। विशेष रूप से मध्य सागर में अगाती एयरपोर्ट की चमत्कारिक परियोजना के समय की यह बात है।
इस दौरान मैंने राजीव गांधी को अत्यंत योग्य व राजनीति में सकारात्मक व्यक्ति के रूप में पाया। राहुल के साथ मोदी की सीटों की लड़ाई में उन्हें आगे नहीं लाया जाना चाहिए था। साथ ही मैं महसूस करता हूं कि देश को प्रधानमंत्री तथा संविधान का जरूर आदर करना चाहिए। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक होते हैं चाहे वह मोदी हों अथवा राजीव गांधी। भद्दे होते जा रहे इस चुनाव अभियान में अनुशासन तथा शिष्टता को बनाए रखना आज समय की बड़ी जरूरत है। संवैधानिक रूप से निर्वाचित प्रधानमंत्री की बेइज्जती करना एक अपराध माना जाना चाहिए। आओ हम अपने सार्वजनिक आचरण में सम्मान व गौरव की बहाली के लिए बड़े प्रयास करें।