सीएम त्रिवेन्द्र ने पीएम मोदी को बताया 21 वीं सदी का अम्बेडकर, प्रदेश में मचा सियासी घमासान
Uk Dinmaan
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण का निर्णय लिए जाने पर आभार व्यक्त किया है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रधानमंत्री के निर्णय की प्रसंशा करते हुए कहा कि यह गरीबों के हित के लिए लिया गया निर्णय है। उन्होंने कहा कि एक गरीब के बेटे ने सभी गरीबों के लिए सोचा है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना डाॅ भीम राय अम्बेडकर करते हुए कहा कि 21वीं सदी में एक और अम्बेडकर ने जन्म ले लिया।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर के करने की इस बयान के बाद राजनीतिक दलों और
सामाजिक संगठनों की तरफ से प्रतिक्रिया आने लगी है।
उत्तराखंड क्रांति दल ने 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के केंद्रीय कैबिनेट के फैसले स्वागत किया है। लेकिन, प्रधानमंत्री की तुलना आंबेडकर से करने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया बताते हुए कहा कि कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना डॉ भीमराव आंबेडकर से करना ठीक नहीं है। यह बीजेपी की मानसिकता को दिखाता है।
मुख्यमंत्री के प्रधानमंत्री की तुलना अंबेडकर से करने पर उत्तराखंड बहुजन समाज पार्टी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य योगेश कुमार ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति डॉ भीमराव अम्बेडकर के बराबर नहीं हो सकता। किसी को डॉ अम्बेडकर से तुलना नहीं करनी चाहिए। अम्बेडकर जैसा युगपुरुष ना तो कभी पैदा हुआ है और ना आगे हो सकता है।
दलित लेखक रूप नारायण सोनकर ने भी मुख्यमंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि एक तरफ महाराष्ट्र में अम्बेडकर भवन गिराया गया। हरियाणा और गुजरात मे दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं। तो ऐसे में मोदी की तुलना अम्बेडकर से कैसे हो सकती है। प्रदेश की मुखिया द्वारा की गई बयानबाजी के बाद अब प्रतिक्रियाओं को दौर जारी है।
बता दें कि आरक्षण का उत्तराखंड से भी सीधा संबंध रहा है। उत्तराखंड राज्य का निर्माण नवंबर 2000 में हुआ। लेकिन 1994 में जब पिछड़ी जातियों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा हुई तो उत्तराखंड में आरक्षण विरोधी आंदोलन, राज्य की मांग के आंदोलन में बदल गया। इसके बाद अब एक बार फिर आरक्षण का मामला चर्चाओं में आ गया है। देश में एक बार फिर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के केंद्रीय कैबिनेट के फैसले पर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है।