बुग्याल व ताल राष्ट्र व राज्य की संपत्ति : मुकुंद कृष्ण दास

दून। बुग्याल व ताल राष्ट्र व राज्य की संपत्ति है। उन पर केवल और केवल सदियों से वहां जीवन यापन करने वाले ग्रामीणों का हक-हकूक आधार पर अधिकार होता है।

बेनीताल बुग्याल में कब्जा प्रकरण पर आज देहरादून में एक प्रेस वार्ता करते हुए भक्तवत्सल मुकुंद कृष्ण दास (दीक्षा पूर्व “सैनिक शिरोमणि” मनोज ध्यानी) ने कहा कि बेनीताल बुग्याल में कब्जे को लेकर जो तथ्यों हमारे सामने आ रहे है कि उससे यह बात समझ आती है कि बाबा मोहन उत्तराखंडी का बेनीताल में राजधानी गैरसैंण हेतु आमरण अनशन गैरसैंण में ना कर बेनीताल में क्यूँ किया था। शायद वह बेनीताल पर बाहरी लोगों के कब्जा किए जाने के मुद्दे को भी प्रदेश व देश की जनता के सामने लाना चाहते थे व बेनीताल को स्थानीय ग्रामीणों के हक-हकक प्रदत्त करवाने हेत उसे बाहरी कब्जा से मुक्त कराना चाहते थे।

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“आरटीआई लोक सेवा वृक्षाबंधन अभियान के तहत मुकुंद कृष्ण दास ने प्रदेश की जनता की ओर से बेनीताल प्रकरण के साथ ही प्रदेश के समस्त बुग्याल ताल के संरक्षण व संवर्द्धन पर सरकार द्वारा किए गए सभी उपायों पर अविलम्ब पत्र जारी कर वस्तुस्थिति को प्रदेश व देश की जनता के समक्ष प्रस्तुत करने व बुग्याल तालों व जल स्रोत नष्ट करने वालों पर ठोस कारवाई करने की सरकार से मांग की।”

मुकुंद कृष्ण दास ने कहा कि बेनीताल के बुग्याल व ताल को बचाना पर्यावरण व पारिस्थितिकी की दृष्टि से बेहद आवश्यक है अन्यथा आने वाले समय में जल का भारी संकट प्रदेश के उन ग्रामीणों को भुगतना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि हम सरकार से इस मामले पर गंभीर हस्तक्षेप की मांग करते हैं व मांग कर रहे हैं कि सरकार बताए कि हमारे उत्तराखंड के बुग्याल व तालों को बचाने उनका संवर्द्धन करने व माफियाओं अथवा कब्जाधारियों से मुक्त करवाने हेतु क्या उपाय कर रही है। उन्होंने कहा कि आरटीआई लोक सेवा द्वारा सन् 2009 में संकल्पित “वृक्षाबंधन अभियान” के तहत हमारे भ्रमण का एक पडाव बेनीताल था। बेनीताल एक खूबसूरत बुग्याल और ताल दोनों का सम्मिश्रण है। यह उत्तराखंड हिमालय की अनुपम प्राकृतिक धरोहर है।

मुकुंद कृष्ण दास ने कहा कि बेनीताल का बुग्याल/ताल चंडियाल ग्राम पंचायत क्षेत्र में आता है व बेनीताल से सटा गांव रंडोली गांव है। इस इलाके के लोगों के मवेशी पीढ़ियों से बैनीताल बुग्याल पर ही आश्रित रहते आए हैं। अतः बेनीताल बुग्याल वस्तुतः उनके हक हकूक का क्षेत्राधिकार भी है। उन्होंने कहा कि काफी समय से हमारे संज्ञान में यह बात आ रही थी कि बेनीतल में जल सूख रहा है। इसका कारण क्या हो सकता है, यह जानने के लिए हम बेनीताल पहुंचे। आरटीआई लोक सेवा द्वारा संकल्पित व संचालित वृक्षाबंधन अभियान के बेनीताल भ्रमण पर हमने वहां पर कुछ ऐसा देखा जो सभी के होश उड़ाने वाला था।
उन्होंने कहा बताया कि बेनीताल में सरकारी सड़क को खोद कर आम लोगों के लिए रास्ता बन्द कर दिया गया है। वहीं खोदी गई सड़क के दूसरी ओर दो बोर्ड लगे हुये है, एक बोर्ड में बुग्याल क्षेत्र में शराब आदि पीना वर्जित करने का संदेश लिखा गया है तो दूसरे बोर्ड में बेनीताल एस्टेट बताते हुए उस पर निजी संपत्ति का दावा होना किया करते हुए प्राइवेट प्रोपर्टी होने का दावा किया गया है। दावा करने वाले व्यक्ति का नाम बोर्ड पर राजीव सरीन लिखा हुआ था।

मुकुंद कृष्ण दास ने कहा कि बेनीताल एस्टेट के बारे में जानने के लिए वहां एक चरवाहा से जानकारी चाही तो उसका कहना था कि वहां आसपास के इलाकां के लोग यहां अपने जानवारों को चराने आते है। चरवाहा ने हमें फौरी तौर पर जो जानकारी दी कि बेनीताल में दावा करने वाली पार्टी ने बकायदा रिहायश बनाई हुई है व वहां पर बकायदा मैनेजर व स्टाफ नियुक्ति किए हुए हैं। हमारे यह पूछने पर कि यह जमीन तो ग्राम पंचायत अथवा वन विभाग की होनी चाहिए थी पर वह व्यक्ति असहज हो गया। हमने भी उससे कुछ और सवाल नहीं किए बस फौरी तौर पर यह पूछताछ की कि सामने कौन सा गांव है, क्या-क्या फसल आदि उपजती है। सरकारी सड़क किसने खोद व निजी प्रॉपर्टी का बोर्ड किसने लगाया है आदि आदि। कुछ के उसने हमें जवाब दिए और कुछ के नहीं। मामले में संदिग्धता और गंभीरता को देखते हुए मैंने वहां पर अपने मोबाइल के कैमरे से एक वीडियो बनाया। जिसे बाद में सोशल या साइट फेसबुक पर अपनी बाल पोस्ट से अपलोड किया और जिसमें जताई चिन्ता को पूरे प्रदेश के नागरिक स्वयं अपनी चिंता बता रहे हैं व भयंकर रूप में आकोशित भी हैं। आते हुए मार्ग में हमने बेनीताल के मगन सिंह जी से भेंट की। उन्होंने बताया कि वह वर्ष में एक बार बुग्याल क्षेत्र के प्रारम्भ होने से पूर्व के स्थान पर जहां कि शहीद बाबा मोहन उत्तराखंडी का जनस्मारक मौजूद है, शहीद बाबा मोहन उत्तराखंडी को श्रद्धांजलि स्वरुप बेनीताल में एक छोटा सी कौथिग (मेला) का आयोजन करते आए हैं। परंतु पिछले कुछ समय से उस क्षेत्र में नियुक्त एसडीएम, बुग्याल में कब्जाधरी /कब्जाधारी के मैनेजर की शिकायत करने पर सभी लोगों को खदेड़ देते हैं। कुल मिलाकर क्षेत्रीय ग्रामीण अपने ही क्षेत्र में बुग्याल व ताल में जाने से रोका जा रहा है। मगन सिंह बताया कि बेनीताल से संबंधित अतिमहत्वपूर्ण दस्तावेज बाबामोहन उत्तराखंडी के पास हुआ करते थे जो उन्हें उनका आमरण अनशन तुड़वाने हेतु उठाया गया था तब के समय से ही गायब हो गए। विदित रहे कि बाबा मोहन उत्तराखंडी उत्तराखंड प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनवाने को लेकर बेनीताल में आमरण अनशन पर बैठे थे।

मुकुंद कृष्ण दास ने कहा कि हमारे पास आ रही जानकारियों से पता चला कि बाहरी तत्वों का दावा बेनीताल के आसपास के जंगलों पर पूरे 1600 एकड़ पर है जिसमें कई ग्राम सभाएं भी आती है व जहाँ पर सघन वन भूमि है। और यह विषय भारत की सर्वोच्च न्यायलय को चार सदस्यीय पीठ के समक्ष भी पहुंचा है। “सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष 1600 एकड़ भूमि पर किए गए दावा पीटशन को हम विधिक ज्ञाताओं को दिखा रहे हैं। परंतु जो एक बात हमने गौर की है उसमें ऐसा प्रतीत हो रहा है के सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष पहुंचे पीटिशन में बेनीताल को कर्णप्रयाग जनपद में मात्र एक भूमि के तौर पर दिखाया गया है व बेनीताल का बुग्याल व ताल होने के सत्य’ को छुपा सा दिया गया पीटिशन में बेनीताल के आसपास सदियों से रहने वाले ग्रामीणों को ना तो पार्टी बनाया गया है व ना उनके हक-हकूक की बात रखी गई है। और सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि उत्तराखंड की अवाम आज तक पूरे प्रकरण में अंधकार में रखा गया है।”

हमारे संज्ञान में अब यह तथ्य भी आए हैं कि बेनीताल के लिए बाबा मोहन उत्तराखंडी से काफी समय पूर्व स्वामी मनमंथन भी बुग्याल व तालों को बचाने व क्षेत्रीय ग्रामीणों के हक-हकक हेतु लड़े थे व बाद में उनकी हत्या हो गई थी।

भक्तवत्सल मुकुंद कृष्ण दास ने बताया कि वृक्षाबंधन अभियान आरटीआई लोक सेवा ट्रस्ट संगठन ने 5 जून 2009 को दून के नर्सिंग स्टाफ क्वार्टर से एक सूक्ष्म रचनाधर्मी अभियान जिसका नाम “वृक्षाबंधन अभियान” रखा गया था प्रारम्भ किया था। इसका प्रयोजन है कि पेड़ों के रोपण व संरक्षण हेतु जनजागृती क सूत्र बांधकर उनको रक्षा का संकल्प लिया जाए। उन्होंने कहा कि आज “वृक्षाबंधन अभियान को भारत के अनेक प्रदेशों में विभिन्न नागरिक समूह व स्वयंसेवी संस्थाएं व कुछ राज्यों में वन विभाग भी “वृक्षाबंधन अभियान” को मनाने लगे हैं। हमें इस बात का गर्व है कि “वृक्षाबंधन अभियान” की बयार की बहाने में कामयाब हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि भूमण्डल पर हमारा लक्ष्य वृक्षों का अधिक से अधिक रोपण करना व उनका रक्षण करना है। इसलिए मानसून के आने से पहले अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने का प्रयास कर कर उन्हें अधिक से अधिक वृक्ष लगाने और पेड़ों की रक्षा करने हेतु जागरुकता कर रहे है।

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