भविष्य बद्री, जहां भविष्य में भगवान बदरीनाथ के होंगे दर्शन
भविष्य मंदिर पंच बद्री (बद्रीनाथ, योगध्यान बद्री, आदि बद्री तथा वृद्ध बद्री) एवं सप्त बद्री तीर्थ में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिरों को निर्माण आदि शंकराचार्य ने किया था।
उत्तराखंड क्षेत्र में कई मंदिरों के निर्माण के लिए आदि शंकराचार्य को श्रेय दिया जाता है। यहां मंदिर के पास एक शिला है, इस शिला को ध्यान से देखने पर भगवान की आधी आकृति नजर आती है। यहां भगवान बद्री विशाल शालिग्राम मूर्ति के रूप में विराजमान हैं।
भविष्य बद्री धाम की पहचान:
भविष्य बद्री धाम से 2 किलोमीटर की दूरी पर सुभाँई गांव बसा है माना जाता है कि एक बार इसी गांव के निवासी ने अपने गायों को चराने के लिए भविष्य बद्री धाम की ओर छोड़ दिया था, जब दिनभर भविष्य बद्री धाम में चरने के बाद गाय जब घर पहुंची तो उसने दूध देना बंद कर दिया, वह व्यक्ति परेशान हो गया क्योंकि उस व्यक्ति की आजीविका दूध से ही चलती थी व्यक्ति के मन में ख्याल आया कि शायद कोई जंगल में उसकी गाय का दूध छल पूर्वक निकाल रहा है वह उस व्यक्ति को रंगे हाथ पकड़ने के लिए अगली सुबह गाय के साथ भविष्य बद्री धाम की और चल पड़ा, भविष्य बद्री धाम में पहुंचने पर जब उस व्यक्ति ने देखा कि उसकी गाय एक पत्थर के ऊपर अपने थन से दूध बरसा रही थी तो वह अचंबे में पड़ गया और उसने गांव वाले को इकट्ठा कर पूरी व्यथा सुनाई, तत्पश्चात गांव वालों ने उसी स्थान पर मंदिर बना कर, मूर्ति को स्थापित कर, पूजा अर्चना करने लगे।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रकृति की अपार सुंदरता से भरपूर क्षेत्र हिमालय की और जब भगवान विष्णु अपने लिए निवास स्थान की खोज में आए तो उनकी पहली नजर पर्वतराज हिमालय की गोद में बसा भविष्य बद्री धाम पर पड़ा। वह स्थान भगवान विष्णु को काफी पसंद आया और भगवान ने उस स्थान को वचन दिया कि वे यहां भविष्य में अवश्य आएंगे और भविष्य में इसी स्थान पर निवास करेंगे भविष्य में ईश्वर इसी स्थान पर अपने दर्शन देंगे इसी कारण इस क्षेत्र का नाम भविष्य बद्री धाम पड़ा। इसके बाद भगवान विष्णु बद्रीनाथ गए, जहां शिव पार्वती निवास करते थे भोलेनाथ को देख भगवान विष्णु ने बालक रूप धारण कर उनके द्वार पर रोने लगे तभी रोने की आवाज सुनकर मां पार्वती अपने कक्ष से बाहर आई और बालक को सीने से लगाकर महल में ले गई कुछ समय पश्चात जब शिव और पार्वती भ्रमण पर गए और जब भ्रमण से वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि महल का मुख्य दरवाजा बंद है शंकर समझ गये कि अब यह स्थान उनके लिए उचित नहीं है तत्पश्चात उमा शंकर कैलाश की ओर चल पड़े और तब से बद्रीनाथ भगवान विष्णु का निवास स्थान बन गया।
ऐसा माना जाता है कि कलयुग की शुरुआत में जोशीमठ नरसिंह की मूर्ति का कभी न नष्ट होने वाला हाथ अंततः गिर जाएगा तथा विष्णुप्रयाग के पास परमिला में जय और विजय के पहाड़ गिर जाएंगे जिस कारण बद्रीनाथ धाम में जाने का मार्ग बहुत ही दुर्गम हो जायेगा जिसके परिणामस्वरूप बद्रीनाथ का फिर से प्रत्यावर्तन होगा और भविष्य बद्री में बद्रीनाथ की पूजा की जाएगी विष्णु के अवतार कल्की कलयुग को समाप्त करेंगे तथा पुनः सतयुग की शुरुआत होगी इस समय बद्रिनत धाम को भविष्य बद्री में पुनः स्थापित किया जायेगा
पत्थर पर उभर रही भगवान की आकृति
भविष्य बदरी में जहां भविष्य में बदरीनाथ में दर्शन देंगे यह स्थान जंगल में देवदार के वृक्षों के बीच है। भविष्य बदरी में धीरे-धीरे इस पत्थर पर भगवान की दिव्य आकृति और बदरीश पंचायत के सभाओं के देवताओं की आकृति आ रही है। कहते हैं कि मान्यताओं में जो बात कही जाती है, वह स्पष्ट हो रही है। तब भविष्य बद्री धाम बद्रीनाथ का विकल्प रह जाएगा तब भगवान विष्णु की पूजा भविष्य बद्री धाम में होगी और भविष्य बद्री धाम ही विष्णु का निवास स्थान रहेगा।