विधान सभा में बैक डोर भर्ती, बेरोजगार युवाओं के साथ धोखा नहीं तो और क्या है?
उत्तराखण्ड में भर्ती घोटालों की आंच यूकेएसएसएससी, पुलिस दरोगा भर्ती से होते हुए अब प्रदेश की विधानसभा में हुई भर्ती तक पहुंच गयी। यूकेएसएसएससी पेपर लीक मामले की जांच अभी जारी है इस बीच विधानसभा में बैक डोर से हुई भर्तियों के मामले ने भी तूल पकड़ लिया है। एसटीएफ की जांच में यह साफ हो चुका है कि राज्य गठन से लेकर अब तक सरकारी नौकरियों के लिए जो भी भर्तियां हुई है उनमें बड़े स्तर का भ्रष्टाचार और अनियमितताएं हुई है। सूबे में सत्ता भले ही किसी भी दल की रही हो लेकिन नौकरियों की लूटपाट व नौकरियां बेचे जाने का धंधा लगातार जारी रहा है। अब सोशल मीडिया में विधानसभा में हुई भर्तियों की सूची वायरल हो रही है। जिसमें रिश्तेदारों व सगे संबंधियों तक को नौकरी दिए जाने का सनसनीखेज खुलासा हुआ है।
विधानसभा भर्ती में हुई अनियमितता के मामले में जब मुख्यमंत्री जांच की बात क्या कही कि पूर्ववर्ती विधानसभा अध्यक्षों जिनके कार्यकाल में एक नियुक्तियां हुई थी सामने आकर खुद को बचाने के लिए विशेषाधिकार या फिर ऐसा तो 2002 से ही होता आया है जैसे बयान देकर खुद को पाक साफ बताने में जुट है। यहां हैरान करने वाली बात यह है कि हमारे माननीय बड़ी बेशर्मी से साथ इन नियुक्तियों को सही ठहरा रहे है साथ ही एक दूसरे को कटघरे में खड़ा कर रहे है।
प्रदेश में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग सवालों के घेर में है। ऐसे में प्रदेशवासी आज सोचने को मजबूर है कि आज 22 साल बाद आज ‘अपडु उत्तराखण्ड’ कहां आकर खड़ा है? आज हम 22 सालों में हुई भर्तियों में हुए घोटालों की खोखली बुनियाद पर खड़ा है। प्रदेश में पैसे के दम पर नाकारों को सरकारी नौकरियों बेची गई/जा रही है। किसी ने विशेषाधिकार के नाम पर तो किसी ने एक चिट्ठी पर अपने नाते रिश्तेदारों को रेवड़ी की तरह नौकरियां बांटी। आज प्रदेश विधान सभा में क्या मंत्री, क्या विधायक हर किसी के नाते रिश्तेदार ही नहीं आरएसएस के कई बड़े नेता और उनके रिश्तेदार भी सरकारी दामाद बन कर मौज ले रहे है।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि विशेषाधिकार का उपयोग अपनों के लिए ही क्यों? क्या विशेषाधिकार का उपयोग सिर्फ और सिर्फ अपने अपनों को नौकरी पर रखना मात्र है? क्या यह उत्तराखंड के बेरोजगार युवाओं के साथ धोखा नहीं? बहरहाल इन भर्तियों की जांच जरूरी है तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो सकेगा।