शुरूआती दौर में ही हाॅफने लगी अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना, निजी अस्पताल कर रहे ईलाज करने से मना

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25 दिसम्बर पूर्व प्रधान मंत्री अटल विहारी वाजपेयी जी के जन्म दिवस पर बड़े जोर-शोर से शुरू की गई प्रदेश में अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना अभी ठीक से शुरू भी नहीं हो पाई कि प्रदेश सरकार की यह योजना शुरूआती दौर में ही हाॅफने लगी है।
अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना के तहत निजी अस्पतालों में लोगों को पांच लाख तक का मुफ्त इलाज उपलब्ध कराने की सरकारी दावों की निजी अस्पतालों ने हवा ही निकाल दी।

यहां निजी अस्पताल ईलाज करवाने के लिए पहले सरकारी अस्पताल से रेफर कराने की बात या फिर बीमारी पैनल में न होने की बात कहकर मरीजों का इलाज करने से मना कर रहे है। या फिर ईलाज की फीस लेकर ही ईलाज कर रहे है।

मामला देहरादून के धर्मपुर का है जहां वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी शकुंतला नेगी का पैर टूट गया। परिजनों ने उन्हें सीएमआई अस्पताल की इमरजेंसी में भर्ती कराया। शकुंतला देवी के परिजनों ने आरोप लगाया कि अस्पताल प्रबंधन ने गोल्डन कार्ड होने के बावजूद सरकारी अस्पताल से रेफर नहीं होने की बात कहकर उन्हें आयुष्मान योजना का लाभ देने से मना कर दिया। अब वह महंगा शुल्क अदा कर ऑपरेशन करा रहे हैं।

वहीं कुछ ही दिनों पहले ही कैलाश अस्पताल व महंत इन्दिश अस्पताल पर भी अटल आयुष्मान उत्तराखंड का गोल्डन कार्ड होते हुए भी ईलाज करने से मना किया जा चुके है।

कैलाश अस्पताल में रूद्रप्रयाग जिले में 31 दिसम्बर को हाईटंेशन की चपेट में आई अनुष्का नेगी को उपचार के लिए भर्ती किया गया था अस्पताल ने यह कहते हुए मना कर दिया जलने की बीमार का इलाज हेतु हम आयुष्मान योजना के अन्तर्गत पैनल में शामिल नहीं है।

वहीं किडनी संबंधी इलाज के लिए पटेलनगर स्थित श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में चोयला चंद्रबनी निवासी सुरेंद्र भर्ती कराया गया। आरोप है कि उनके पास अटल आयुष्मान उत्तराखंड का गोल्डन कार्ड होने के बावजूद अस्पताल प्रबंधन ने उनसे डायलिसिसए व जांचों के लिए हजारों रुपये वसूल किए। चंद्रबनी पार्षद सुखबीर बुटोला का कहना है कि मरीज की समस्या से अस्पताल प्रबंधन को अवगत करवा दिया लेकिन अस्पताल प्रबंधन इलाज निशुल्क करने से साफ मना कर रहा है।

जिस पर राज्य आंदोलनकारी मंच के जिला अध्यक्ष प्रदीप कुकरेती का कहना है कि यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि सरकार ने निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की बात कही थी लेकिन अफसोस निजी अस्पताल सरकार की बात भी नहीं मान रहे। उनका कहना है कि यदि एक राज्य आंदोलनकारी को आयुष्मान योजना का लाभ नहीं मिलेगा तो आम आदमी का इस योजना के तहत कैसे ईलाज हो पायेगा यह सोचनीय है। उन्होनंे कहा कि फिलहाल तो ऐसा लगता है कि निजी अस्पतालों के साथ मिलकर सरकार द्वारा गरीब मरीजों के साथ मजाक ही किया है।

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