कुम्भ में विश्व कल्याण के लिए ‘अग्निहोत्र यज्ञ
हरिद्वार कुंभ में कुछ ऐसे बाबा भी हैं जो यज्ञ करके विश्व कल्याण की कामना कर रहे हैं। ‘अग्निहोत्र यज्ञ’ इन्हीं में से एक है।
वेदों के अनुसार पाँच प्रकार के यज्ञों के बारे में बताया गया है। ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्व देवयज्ञ और अतिथियज्ञ। इसमें से देव यज्ञ जो सत्संग या अग्निहोत्र से कर्म के द्वारा होता है। इसमें वेदी बनाकर अग्नि प्रज्ज्वलित कर होम किया जाता है। इसी को अग्निहोत्र यज्ञ कहा जाता है।
अग्निहोत्र यज्ञ का वर्णन ‘यजुर्वेद’ में किया गया है. अग्निहोत्र से तात्पर्य एक ऐसे होम (आहुति) से है जिसे प्रतिदिन किया जा सकता है तथा उसकी अग्नि को बुझने नहीं दिया जाता है। इस यज्ञ में व्यक्ति आहुति देकर भगवान की उपासना करते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि अग्निहोत्र यज्ञ से उत्पन्न अग्नि से ‘रज और तम’ कणों का नाश होता है। यज्ञ से उत्पन्न अग्नि मनुष्य को 10 फीट तक सुरक्षा कवच प्रदान करती है। इस हवन में प्रयोग किये जाने वाला बर्तन विशेष आकृति और तांबे का होता है। यज्ञ में साबुत चावल और गाय के गोबर से बने उपलों का प्रयोग किया जाता है। कुंभ में आए कुछ साधु संत समूचे विश्व को कोरोना से मुक्त करने के लिए अग्निहोत्र यज्ञ कर रहे हैं
वैदिक अग्निहोत्र यज्ञ करने की विधि –
इस यज्ञ को करने के लिए पूर्व दिशा की और मुंह करके बैठना चाहिए। सर्वप्रथम यज्ञ करने वाले पात्र को पूजा स्थल पर रखें, उसके अन्दर उपले का एक छोटा टुकड़ा घी लगाकर रखें व उसके आस- पास और भी उपले रखें। अब एक छोटे उपले में घी लगाकर प्रज्वल्लित करें और उसे उपलों के बीच में रख दें।
अग्नि में घी का प्रयोग करें और अग्नि प्रज्ज्वलित करने के लिए मुँह से न फूंकें। इस प्रक्रिया के दौरान अनेक मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है, जैसे – आचमन करने के लिए, ईश्वर की स्तुति के मन्त्र, दीपक जलाने का मन्त्र, अग्नि प्रज्ज्वलित करने का मन्त्र, समिधा रखने का मन्त्र आदि से आहुति दी जाती है।
अग्निहोत्र मंत्र –
सूर्योदय और सूर्यास्त के समय ही यह यज्ञ करने का महत्त्व है। इसमें प्रातःकाल 12 आहुतियाँ और सांयकाल 12 आहुतियाँ दी जाती हैं। सूर्योदय के समय निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए –
सूर्याय स्वाहा सूर्याय इदम् न मम .
प्रजापतये स्वाहा प्रजापतये इदम् न मम ..
सूर्यास्त के समय निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए –
अग्नये स्वाहा अग्नये इदम् न मम .
प्रजापतये स्वाहा प्रजापतये इदम् न मम ..