सिद्ध पीठ माँ चन्द्रबदनी

सिद्धपीठ चन्द्रबदनी जनपद टिहरी के हिण्डोलाखाल विकासखण्ड में समुद्रतल से 8000 फिट की ऊँचाई पर चन्द्रकूट पर्वत पर अवस्थित है। स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में इसे भुवनेश्वरी पीठ नाम से भी अभिहित किया गया है। सामान्य जनमानस में यह पीठ चन्द्रवदनी के नाम से विख्यात है।

मां सती से जुड़़ी पौराणिक कथा :
दक्ष प्रजापति द्वारा हरिद्वार (कनखल) में किये गये यज्ञ में जब भगवान शंकर और उनके परिजनों को आमंत्रित नहीं किया तो पार्वती जी बिना बुलावे के ही वहां चल दी लेकिन वहां पर उनके प्रति सबकी उपेक्षा भाव देखकर उनके शरीर से अग्नि ज्वाला प्रकट हो उठी जिससे उनका शरीर जलकर नष्ट हो गया, तब गणों के द्वारा जब भगवान शंकर को इस बात की सूचना मिली तो वे वहां पहुंचे और अपने त्रिशूल पर सती के मृत शरीर को लेकर अपने निवास स्थान कैलाश की ओर चल पड़े। माया-मोह से व्यथित होकर वे जगह-जगह जाकर विलाप करने लगे यह देखकर भगवान विष्णु ने सोचा कि जब तक शंकर जी के पास सती का शव रहेगा तब तक इनका मोह कम नहीं होगा, इसलिए उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से सती के अंगों को काटना आरम्भ किया, तब सती के अंग जहां-जहां गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हुये इस स्थान पर जो चन्द्रकूट पर्वत के नाम से जाना जाता है मां सती का बदन गिरा जो कालान्तर में चन्द्रवदनी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्राचीन मन्दिर :
श्री भुवनेश्वरी चन्द्रवदनी का प्राचीन मन्दिर स्थानीय पत्थरों से निर्मित था। ये पत्थर कलात्मक ढंग से तराशते हुए परस्पर जोड़कर क्षेत्र के प्रमुख मन्दिरों से भिन्न गढवाली शैली में ढ़ालदार छत वाला मन्दिर एक छोटे से मकान के रूप में था। गर्भगृह एक गुफा के रूप में यथावत है। जिसमें केवल पुजारी पूजा करने हेतु प्रवेश करते हैं, वहीं प्राचीन स्वरूप आज भी विद्यमान है।
शेष भवन में पहले बांज बुरांश, देवदार की बलियॉ तत्पश्चात् तांबे की चादर व उपरी भाग पर पत्थर को पठालिया से ढक्का हुआ था। मन्दिर में प्रवेश व निकासी द्वार अलग अलग थे जो आज भी है। प्रवेश गृह में भगवती श्री चन्द्रवदनी का विग्रहात्मक यन्त्र है। यन्त्र के उपर बड़ा छत्र सुशोभित है। श्रीयन्त्र के ठीक ऊपरी भाग पर एक शिला है, जिसके दर्शन पुजारी भी नहीं कर सकते हैं। यह शिला हमेशा पर्दे से ढकी रहती है।

अद्भुत प्रकृति दृश्य:
चन्द्रबदनी मंदिर बांज, बुरांस, काफल, देवदार, सुरई, चीड़ आदि के सघन सुन्दर वनों एवं कई गुफाओं एवं कन्दराओं के आगोश में अवस्थित है। चन्द्रबदनी में पहुँचने पर आध्यात्मिक शान्ति मिलती है। अथाह प्राकृतिक सौन्दर्य, सुन्दर-सुन्दर पक्षियों के कलरव से मन आनन्दित हो उठता है। चित्ताकर्ष एवं अलौकिक यह मंदिर उत्तराखण्ड के मंदिरों में अनन्य है। यहाँ से चौखम्भा पर्वत मेखला, खैट पर्वत, सुरकण्डा देवी, कुंजापुरी, मंजिल देवता, रानीचौंरी, नई टिहरी, मसूरी आदि कई धार्मिक एवं रमणीक स्थल दिखाई देते हैं। वन प्रान्त की हरीतिमा, हिमतुंग शिखर, गहरी उपत्यकायें, घाटियां व ढलानों पर अवस्थित सीढ़ीनुमा खेत, नागिन सी बलखाती पंगडंडियां, मोटर मार्ग, भव्य पर्वतीय गाँवों के अवलोकन से आँखों को परम शान्ति की प्राप्ति होती है।

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