अपणी दूधबोली ‘गढ़वाळि’ . . .
UK Dinmaan
उत्तराखण्ड तैं देवभूमि मानेग्ये किलैकि यख भौतिक अर आध्यात्मिक द्विया रूपों मा देव संस्कृति प्रचलित छ। यखै गाड-गदिनी, डांडी-कांठी, जड़ी-बूटी, चखुला व गोर सबी देवत्व से भ्वयां छन। यांक बाद भी बुळे जांदा कि यख कोस कोस मा पाणी बदलेंदू अर हर तीन कोस मा बळ वाणी। हर क्षेत्र अपणी संस्कृति अपणी बोळी भाषा हुन्दी।
आज जमन मा एक तरफ अग्रेंजी अर विदेशी बोळी भाषा तै देश मा बढावा मिलणू पर अपण देश मा भाषा अर बोळी हरचण लगी गेन। उ दिन दूर नी छन जब यूं भाषा अर बोली इतिहास बणी रै जाला। भारत मा बोळी भाषा हरचण खतरा मडराणा अर ई बात दावा करणा जनसंख्या निदेशालय। जौं भाषा अर बोळी खतरा मा बताण बाबत यांक कुच्छ मानक हूंदीन अर माकन छन भाषा अर बोळी बुळण ह्वाळू लोगू संख्या। मानक हिसाब मणे जाव त भाषा अर बोळी बुळण ह्वाळू संख्या 10 हजार से कम ह्वे जांद तब वा बोळी या भाषा तै खतरा या संकटग्रस्त श्रेणी मा रखे जांद।
अब अगर इनी हाळ हमर उत्तराखण्ड मा भी ह्वे जाळ उ दिन दूर नि छन जब गढवळी कुमाउनी, जौनसारी भाषा भी खतरा मा या संकटग्रस्त मा ऐ जाळी। आज जमन मा जै हिसाब से गढवाळ बटी पलायन हूणा वैक दगड़ा दगड़ी गढवळी भाषा अर बोली भी पलायन हूणु च। जब तक हम अपणी आण ह्वाळ पढवळी तै हम गढवळी कुमौ जौनसारी भाषा मा उं दगड़ बुळण बच्योळा तबरी तक उ वीं भाषा तै नी समझी अर सीख सकदन। हिंदी अंग्रेजी सिखाण बाबत हमर स्कूळ छैंछन। आज उत्तराखण्ड मा एक पहाड़ उख छ जु अब्बी पहाड़ मा रैवास कना छन पर वैसे बड़ू पहाड़ हमर प्रवासी छन।
आज गढवळी अर कुमाउनी बुलण ह्वाळ देश मा ही ना बलकण विदेश मा बतौर प्रवासी रैवास कना छन। हम लोग तै अपणी बोळी भाषा बचाण बाबत सुचण पड़ळ। आज हम थैं अपणी नई पीढ़ी तै अपनी बोळी भाषा सिखाणी ही पढ़ळी और यू तब ही सम्भव ह्वे सकदू जब हम अपण घार बटि गढ़वाळी बोळी अपणा रीति रिवाजों की शुरूआत करळा। तभी हम अपणी संस्कृति, अपणी बोली भाषा थैं बचैं सकदन।