गढवालै़ पछ्याण : पेशावर काण्ड का नायक अमर सेनानी चंद्रसिंह गढ़वाल़ी तैं क्वी नि बिसरि सकदों
गांधीजी न बोले-‘मी तैं एक चंद्र सिंह औरि मिलि जांदो त भारत कबि आजाद ह्वे जांदो।‘ भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन मा प्रसिद्ध पेशावर काण्ड का नायक, देशप्रेमी, संघर्षशील व्यक्तित्व वीर चन्द्रसिंह गढ़वाल़ी तै 23 अप्रैल का दिन पेशावर काण्ड का रूप मां याद करे जाणौ मतलब आजै स्थितियों मा औरि बी प्रासंगिक छ।
एक सामान्य गढ़वाल़ी परिवार मा जन्म लेकै गढ़वाल़ राइफल्स मा भर्ती होणो, पैला विश्व युद्ध मा मित्र देशों की तरफ बटि यूरोप व मध्य पूर्वी क्षेत्रों मा प्रत्यक्ष साझीदारी, फिर मोसापोटामिया युद्ध मा शामिल होणो, पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त मा अग्रेंजो की तरफ बटि पठान संघर्ष मा सक्रिय रैंणो, चंद्रसिंह गढ़वाल़ी का सैनिक जीवन का उतार-चढ़ाव का पड़ाव छन।
चन्द्रसिंह गढ़वाल़ी बेशक एक सैनिक छया पर देश प्रेम अर समाजै भलाई कनो उंका भित्तर दुंद मचाणा रैंदा छया। एक सैनिक होंणा बावजूद समसामयिक राजनैतिक पर बी उंकी नजर लगीं रैंदी छई।
ई वजह छ कि 1929 मा जब गाधीं जी कुमाउं का दौरा पर छया त चंद्रसिंह जी उंतै मिलणा वास्ता बागेश्वर पौंछीं। अग्रेंजीं हैट चुलैकै अर गांधी जी से सफेद ट्वव्ली लेकै जिन्दगी भर वांकी रक्षा कनौ प्रण उंन गाधी जी का सामण्ये ले।
सीमान्त गांधी, खान अब्दुल गफ्फार खान का लालकुर्ती खुदाई खिदमतगार की आम सभा तैं इनैं-फुनैं हटवाणा वास्ता 23 अप्रैल 1930 का दिन क्वार्टर मास्टर हवलदार चंद्रसिंह भण्डारीन कैप्टन रिकेट को हुकम नि मानो। गढ़वाल़ी सीज फायर चंद्रसिहं जीन अपणा सैनिकों तेैं हुकम दे। सबुन बन्दूक भय्यां नवै देंन।हम निहत्थो पर गोली़ नि चलांदा कैप्टेन रिकेट तैं चंद्रसिंहन बोले। क्वार्टर मास्टर हवलदार चंद्रसिंह भण्डारी का नेतृत्व मा गढ़वाल़ी पल्टनौ यो अद्भुत साहस अर अग्रेंजी शासन का खिलाफ विद्रोह की शुरूआत छई। अग्रेंजों फौजी हुकम नि मनण तैं राजद्रोह बताए अर सर्रा बटालियन तैं एबटाबाद (पेशावर) मा नजरबंद करिदे। राजद्रोह को मुकदमा करेग्ये। चंद्रसिहं भण्डारी तैं उमरकैद की सजा सुणाएग्ये। उंका दगड़ा सैनिकों मद्दे 16 तैं लंबी कैद की सजा, 39 तैं कोर्ट मार्शल कैरिकै बरखास्त करे अर 7 औरि सिपाहियों तैं बी मिलिट्री बटि बरखास्त करेग्ये। उंकी तनख्वाह, जमा पूंजी आदि सरकारन जब्त करिदे।
13 जून 1930 का दिन ऐबटाबाद छावनी का ए फैसला से सर्रा देश मा क्रान्तिकारियों मा अग्रेंजी सत्ता का खिलाफ गुस्सा बढ़ोत्तरी ह्वे।
23 अप्रैल 1930 का पेशावर काण्ड बटि भारतीय सैनिकों का मन मा बी अंग्रेजीं शासन का प्रति घृणा अर नफरत बढ़ण लैग्ये छई। बैरिस्टर मुकन्दीलाल को ब्वनोें छ कि आजाद हिन्द फौज का बीज बुतण वाला चंद्रसिंह भण्डारी ही छया ।
बैरिस्टर मुकन्दीलाल जी न पेशावर काण्ड मा आरोपी चंद्रसिंह भण्डारी अर उंका दगड्यों की तरफ बटि केस लड़ि छयो।
अपणा जीवन काल मा चन्द्रसिंह गढ़वाल़ीन ऐबटाबाद (पेशावर) डेरा इस्माइल खां, नैनी, बरेली, नैनीताल, लखनौ, अल्मोड़ा, देहरादून आदि जेलों मा अग्रेंजी शासन का जुलम भुगतीं।
यूं तमाम जेलों मा उंकी मुलाकात उबारे का क्रान्तिकारियों अर देश तै आजाद कराणा सुपिना द्यखण वाल़ा वीरों से ह्वे। पेशावर काण्ड का मुख्य आरोपी का रूप मा चंद्रसिंह भण्डारी तैं 11 साल, 3 मैना , 18 दिन जेल मा भुगतणा बाद 26 सितम्बर 1941 मा मुक्ति मिले। वांका बाद कुछ दिन आंनद भवन इलाहाबाद अर गांधी जी का बर्धा आश्रम मा बी सपरिवार रैंन। 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन मा इलाहाबाद का ज्वान नौनौं न उं तै अपणो कमाण्डर-इन-चीफ बणाए। यई दौरान अंग्रेज सत्ता न उ तै 6 अक्तूबर 1942 मा गिरफ्तार करे अर 7 सालै सजा मुकर्रर करे। 1945 मर उतै जेल बटि रिहा करेग्ये पर उंका गढ़वाल-प्रवेश पर प्रतिबंध लगाएग्ये।
जेल जीवन का दौरान चंद्रसिंह पर आर्यसमाजै विचारधारौ काफी असर पड़े। जेल का दौरान ही उंतैं कम्युनिस्ट विचारधारा पढ़ण-सुणण मा मिले। सन् 1946 मा उंन गढ़वाल़ मा प्रवेश करे। जगा-जगा उं को भारी स्वागत ह्वे। चंद्रसिंह गढ़वाल़ी की एक खाशियत या बी राए कि देश तैं आजाद कराणा वास्ता अग्रेंजी शासन का खिलाफ जख वो खड़ा रैंन बखि टिहरी रियासत तै रज्जा का शासन से मुक्त कराणा वास्ता बी उंन अपणि साझेदारी निभाए।
कामरेड नागेन्द्र सकलानी का शहीद होणा बाद चंद्रसिंह गढ़वाल़ीन प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष रूप से टिहरी रियासत का खिलाफ आन्दोलन मा भाग लें।
दरअसल, चंद्रसिंह गढ़वाल़ी एक क्रान्तिकारी मनखी छया। उंतैं सजायाफ्तां होणै वजह से जिला बोर्ड का अघ्यक्ष पद का चुनाव मा चुनाव नि लड़ण दिएग्ये। कम्युनिस्ट विचारधारा तै आत्मसात कना बाद उंन गढ़वाल़ मा चुनाव लड़ी पर जीति नि साका। अगर वो कांग्रेसौ झण्डा थमदा त एम.पी., एल.एल.ए बणि जांदा-यां मा क्वी शक नी छ। पर मूल रूप से विद्रोही चरित्र अर सत्ता की बुराइयों की खिलाफत कन वाल़ा चद्रंसिंह गढ़वाल़ीन कबि बी अपणों व्यक्तिगत अर चरित्र की एक अलग ही खाशियत छ।
चंद्रसिंह गढ़वाल़ी-गढवालै़ पछ्याण छ, जां तैं क्वी नि हर्चे सकदो। चंद्रसिंह गढ़वाल़ी तैं क्वी नि बिसरि सकदों।
साभार: गढ़वा़लै धै