धन्य है उत्तराखण्ड सरकार ! धन्य है त्रिवेन्द्र !
एक तरफ देश में लाॅकडाउन के चलते प्रत्येक राज्य सरकार राह में फसें नागरिकोें को सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंचाने का प्रयास कर रही है। वही लाॅकडाउन मुश्किल समय में उत्तराखण्ड सरकार का दूसरा ही चेहरा नजर आया है।
जी हां! एक तरफ गुजरात सरकार ने हरिद्वार में फंसे अपने करीब डेढ़ हजार गुजराती भाईयों को लाॅकडाउन के समय गुजरात वापस लाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी ठीक इसके विपरीत उत्तराखण्ड सरकार ने गुजरात से उत्तराखण्ड वापस आने वाले अपने उत्तराखण्डियों भाईयों को बीच रास्ते में ही पैदल चलने के लिए छोड़ दिया।
बता दें कि एक धार्मिक आयोजन के लिये हरिद्वार पहुंचे गुजरात के यात्रियों को उनके घर पहुंचाने के लिये सरकार ने गुपगुप तरीके से वीआईपी व्यवस्था कराई। उत्तराखण्ड परिवहन की लग्जरी बसों को सेनेटाइज कर यात्रियों को उनसे अहमदाबाद पहुंचा गया।
खबर यह भी है कि इस बात की जानकारी विभाग के मंत्री यशपाल आर्य तक को नहीं होने दी। बड़ी बात यह है कि सरकार ने यह तत्परता इसलिये दिखाई क्योंकि जिस व्यक्ति के आयोजन में शामिल होने ये लोग हरिद्वार आये थे वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी बताये जा रहे हैं।
दुर्भाग्यपूर्ण यह नहीं है कि उत्तराखण्ड की बस में गुजरात के यात्रियों को गुजरात छोड़ने की व्यवस्था की गई बल्कि दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि जो उत्तराखण्ड परिवहन बसें गुजरात गईं वो बसे वहां से खाली उत्तराखण्ड लौटी। उत्तराखण्ड परिवहन की बस को देखकर कुछ लोग उनमें चढ़े तो लेकिन उन्हें हरियाणा बार्डर पर रात के अंधेरे में बीच रास्ते में उतार दिया गया।
सवाल यह नहीं है कि गुजरात के लोगों को वीआईपी अंदाज में उत्तराखण्ड सरकार ने अहमदाबाद क्यों पहुंचाया, सवाल यह है कि गुजरात के लोगों को घर पहुंचाने में दिखाई उतनी तत्परता वहां फंसे उत्तराखण्ड के लोगों को सकुशल घर लाने में क्यों नहीं दिखाई गई।
जबकि हालात यह है कि गुजरात में भी उत्तराखण्ड के हजारों लोग भुखमरी की स्थिति में हैं जो वहां से विभिन्न माध्यमों से मदद की गुहार लगा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार को इसकी जानकारी नहीं है, सरकार चाहती तो जिन बसों से यात्रियों को गुजरात पहुंचाया गया उन्हीं बसों से उत्तराखंडियों को घर लाया जा सकता था।
विडम्बना देखिये कि इस तरीके की योजना बनाना तो दूर उत्तराखण्ड की डिपो की बसें देखकर जो 52 यात्री उनमें चढ़े भी, जब हरियाणा पुलिस उन्हें रास्ते में बस से उतार रही थी तो बसों के ड्राइवर-कंडक्टरों के दूरभाष पर आग्रह करने पर भी उत्तराखण्ड परिवहन विभाग के उच्च अधिकारियों ने उनकी मद्द से इंकार कर दिया। नतीजा यह हुआ कि हमारे राज्य के वो 52 लोग आज भी भूखे प्यासे पैदल घर की ओर आ रहे हैं।
यहां सवाल यह है कि सरकार प्रवासी उत्तराखंडियों को लेकर इतनी संवेदनहीन क्यों है? क्या ‘आवा अपणुु घौर‘ जैसे स्लोगन मात्र कहने भर को है जो आज बेमानी साबित होते हैं।
यहां काबिलेगौर है कि जिन लग्जरी बसों को गुजरातियों को छोड़ने अहमदाबाद भेजा गया उनके सेनेटाइजेशन से लेकर ईंधन का पूरा खर्च त्रिवेन्द्र सरकार ने उठाया। वहीं उनके चालक और परिचालकों ने भूखे पेट सरकार के इस गुप्त मिशन को अंजाम दिया।
इस बारे में परिवहन मंत्री यशपाल आर्य का कहना है कि उन्हें इस बात की जानकारी अधिकारियों ने नहीं दी। खुद मुझे गुजरात में फंसे कई उत्तराखण्डी भाईयों के फोन आये थे। मुझे पता होता तो वहां फंसे लोग इन बसों से वापस अपने घर आते। मैं इस सम्बंध में विभाग के अधिकारियों से जवाब तलब करूंगा’।