डीएम भरोसे आपदाग्रस्त क्षेत्र
UK Dinmaan
केदारनाथ में आई दैवीय आपदा से भी राज्य सरकार ने सबक नहीं सीखा। यदि सीखे होते तो मौजूदा समय में आपदा से जूझ रहे उत्तरकाशी जिले को यूं ही जिलाधिकारी के भरोसे नहीं छोड़ा गया होता। इस जिले के 52 गांव जल प्रलय के जख्म से कराह रहे हैं पर शासन का कोई भी बड़ा नौकरशाह प्रभावित क्षेत्र में कैंम्प नहीं कर रहा है। नतीजा यह है कि डीएम आशीष चौहान को अकेले हर काम की मॉनीटरिंग करनी पड़ रही है, जिसका प्रभाव राहत कार्यों पर साफ दिखाई दे रहा है।
सीमांत जनपद उत्तरकाशी के मोरी क्षेत्र में बीते रविववार को बादल फटने से तबाही मच गई थी। कुल 52 गांव प्रभावित हुए हैं। बादल फटने के बाद आए जलप्रलय में 15 व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी थी। 3 व्यक्ति अभी तक लापता हैं। जबकि घायल 10 व्यक्तियों का उपचार विभिन्न अस्पतालों में चल रहा है।
ये जो आपदा से प्रभावित 52 गांव हैं, वे 71 किलोमीटर परिधि के क्षेत्रफल में स्थित हैं। इनमें से अधिकांश गांवों की सड़कें बह गई हैं। पैदल मार्ग भी जगह-जगह क्षतिग्रस्त हैं।
यही वजह है कि बचाव और राहत कार्य में हेलीकॉप्टर लगाए गए हैं। जिसमें कि एक प्राइवेट कम्पनी का हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था वही आज राहत बचाव कार्य में लगा हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त होने से बाल-बाल बचा। तीन दिन के अंतराल में यह दूसरी घटना है। इससे पहले बुधवार को राहत कार्य में जुटा हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया था, इसमें पायलट समेत तीन की मौत हो गई थी। जबकि आज हेलीकॉप्टर का संतुलन बागीचों से सेब की पेटियों को सड़क तक पहुंचाने के लिए लगाई गई ट्रॉली की तार से टकराने के कारण बिगड़ गया था। पायलट ने सूझबूझ दिखाते हुए पास की एक बरसाती नदी में इमरजेंसी लैंडिंग कराई। पायलट और तकनीकी सहायक को हल्की चोटें आई हैं।
इतने बड़े क्षेत्र में आपदा होने के बावजूद राज्य सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रहा है। सरकार की संवेदनशीलता इस बात से पता चलती है कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत घटना के तीसरे दिन प्रभावितों का हाल जानने पहुंचे।
आपदा सचिव अमित नेगी और आईजी एसडीआरएफ संजय गुज्याल घटना के दूसरे दिन क्षेत्र में पहुंचे लेकिन कुछ ही घण्टों में वापस लौट आए। उसके बाद शासन के किसी भी अधिकारी ने वहां पहुंचने की जहमत नहीं उठाई। ऐसी स्थिति में पूरे आपदाग्रस्त क्षेत्र में डीएम आशीष चौहान की अकेले मोर्चा संभाले हुए हैं। उनकी अगुवाई में ही राहत और बचाव कार्य चल रहे हैं।
सवाल यह है कि शासन में बैठी आईएएस अफसरों की फौज ऐसे मौकों पर सचिवालय से बाहर क्यों नहीं निकलती। अफसर प्रभावित क्षेत्र में कैम्प क्यों नहीं करते।