भगवान नृसिंह

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देवभूमि के जोशीमठ में भगवान नृसिंह की एक दिव्य शालिग्राम की ऐसी स्वंयभू मूर्ति है, जो कला, धर्मिक विश्वास और मान्यताओं का बेजोड़ नमूना है। यह मूर्ति आदि जगतगुरू शंकराचार्य द्वारा पूजित उनकी तपोस्थली ज्योर्तिमठ में नारायण धाम के रूप में विख्यात है। जगतगुरू शंकराचार्य को ज्ञान-ज्योति मिलने के कारण ज्योर्तिमठ के रूप में विख्यात शहर को अब जोशीमठ के नाम से पुकारा जाता है। ढाई हजार वर्ष पूर्व दक्षिण भारत से जब आदि जगतगुरू शंकराचार्य हिमालय सनातन धर्म की रक्षा के लिए आए और यहीं पर कठिन तपस्या की, तपस्या के दौरान उन्हें इसी प्रतिमा के माध्यम से ज्ञानज्योति के दर्शन हुए।

इस मूर्ति के संदर्भ में ऐसी मान्यता है कि आदिगुरू शंकराचार्य जिस दिव्य शालिग्राम पत्थर में नारायण की पूजा करते थे, उसमें अचानक भगवान नरसिंह भगवान की मूर्ति उभर आई और उसी क्षण उन्हें नारायण के दर्शन के साथ अद्भुत ज्ञानज्योति प्राप्त हुई।

भगवान नारायण ने उन्हें नरसिंह रूप के रौद्ररूप की जगह शांत रूप का दर्शन दिया। इसी पावन मंदिर में भगवान बद्रीनाथ के कपाट बंद हो जाने के बाद भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति को जोशीमठ लाकर हिमकाल के समय में छःमाह तक उनकी पूजा की जाती है। पूजारी के अलावा किसी भक्त द्वारा नरसिंह भगवान का स्पर्श पूर्ण वर्जित है।

इस मूर्ति को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं, जिसके अनुसार ऐसी मान्यता है कि यहां अवस्थित नरसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ धीरे-धीरे पतला होता जा रहा है। इसके संदर्भ को लेकर लोगों में ऐसी मान्यता है कि जिस दिन मूर्ति से हाथ का वह हिस्सा अलग हो जाएगा, उस दिन बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित जय-विजय पर्वत भी आपस में मिल जाएंगे और उसी क्षण बद्रीनाथ धाम का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा। भविष्य में भगवान बद्रीनाथ जोशीमठ से 22 किमी आगे भविष्य बद्री के रूप में प्रकट होकर दर्शन देंगे। अभी वर्तमान में भगवान नरसिंह भगवान के हाथ का वह हिस्सा सूई के गोलाई के बराबर रह गया है। भविष्य बद्री के संदर्भ में लोगों की मान्यता के अनुरूप भविष्य बद्री में एक शिलाखंड पर आश्चर्यजनक रूप से भगवान विष्णु की मूर्ति भी आकारित हो रही है।

इस मंदिर के पुजारी सहित इस नगर के लोग भी भगवान नरसिंह के इस शालिग्राम की मूर्ति के बारे में उनसे जुड़ी अनेक बातें बताते हैं। मंदिर के पुजारी पंडित बताते है कि कि जब कभी इस हिमालयी क्षेत्र में अकाल सूखा की स्थिति उत्पन्न होती है, तो लोकमान्यताओं के अनुसार जनसमूह द्वारा भगवान श्री की प्रतिमा को गर्म जल से स्नान कराया जाता है, इस स्नान के बाद भगवान श्री के मूर्ति में अचानक फफोले निकल आते हैं। उसके बाद वर्षा होती है, पुजारी डिमरी सहित अनेक लोगों की जुबानी अनेक चमत्कारिक किस्से सुने जाते हैं, जिसमें पुजारी डिमरी जी आत्म अनुभव बताते हुए कहते हैं कि भगवान नरसिंह का स्वरूप पूरी तरह से शांत रूप के साथ लोक कल्याणकारी है, यहां पूजन से सभी मनोरथ के साथ ही सहज रूप से मानव को सिद्धि भी प्राप्त होती है।

जोशीमठ में आज भी आदि जगतगुरू शंकराचार्य की तपस्थली स्थित है, जो एक अति प्राचीन कल्पवृक्ष के साथ लगी हुई है। इसी वृक्ष के नीचे आदिगुरू ने कठोर तप किया था। इस कल्पवृक्ष के बारे में जानकार लोग बताते हैं कि यह एक शहतूत का वृक्ष है।

आदिगुरू के तप के प्रभाव के कारण इसे भी दीर्घ जीवन का सौभाग्य प्राप्त है। इस वृक्ष के नीचे भगवान ज्योतिश्वर महादेव विराजमान हैं, जिनके मंदिर के एक भाग में आदि जगतगुरू शंकराचार्य द्वारा जलाई गई लोककल्याण के लिए एक अखंड ज्योति आज भी यहां आने वाले भक्तों के जीवन में प्रकाश भर रही है।

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