रामनवमी : भगवान राम का जन्म दिवस

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नवरात्रि पर्व का रामनवी के साथ का समापन होता है। इस दिन कन्याओं का पूजन किया जाता है। इस बार राम नवमी 13 और 14 अप्रैल दोनों दिन है। मान्यता है कि चैत्र नवरात्रि के नवमी को ही भगवान राम का जन्म हुआ था।

इस दिन भगवान विष्णु के 7 वें अवतार भगवान राम जन्मदिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम की पूजा तो होती ही साथ ही भाई लक्ष्मण और मां सीता के साथ हनुमान जी की भी पूजा की जाती है।

नवमी, अष्टमी पूजा मुहूर्त-
नवमी तिथि 13 अप्रैल दिन शनिवार को सुबह 08ः16 बजे तक अष्टमी तिथि होगी 13 अप्रैल दिन शनिवार को महानवमी का व्रत होगा क्योंकि 13 अप्रैल को सुबह 08ः16 बजे के बाद ही नवमी तिथि लग जाएगी।

नवरात्र में कन्या पूजन
नवरात्र के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजन के बाद ही भक्त व्रत पूरा करते हैं। भक्त अपने सामर्थ्य के मुताबिक भोग लगाकर दक्षिणा देते हैं।
नवरात्र की सप्तमी से कन्या पूजन शुरू हो जाता है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर पूजा जाता है। कन्याओं के पैरों को धोया जाता है और उन्हें आदर-सत्कार के साथ भोजन कराया जाता है। ऐसा करने वाले भक्तों को माता सुख-समृद्धि का वरदान देती है।

नवरात्र के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजन के बाद ही भक्त व्रत पूरा करते हैं। भक्त अपने सामर्थ्य के मुताबिक भोग लगाकर दक्षिणा देते हैं। इससे माता प्रसन्न होती हैं।

सप्तमी से ही कन्या पूजन का महत्व है। लेकिन, जो भक्त पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वे तिथियों के मुताबिक नवमी और दशमी को कन्या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण कर व्रत खत्म करते हैं। शास्त्रों में भी बताया गया है कि कन्या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे अहम और शुभ माना गया है।

ऐसे करें कन्या पूजन
कन्या पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले सम्मान के साथ आमंत्रित करें।

खासकर कन्या पूजन के दिवस ही कन्याओं को यहां-वहां से एकत्र करके लाना उचित नहीं होता है।

गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करना चाहिए। नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाना चाहिए।

कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ स्थान पर बैठाकर सभी के पैरों को स्वच्छ पानी या दूध से भरे थाल में पैर रखवाकर अपने हाथों से उनके पैर धोना चाहिए। पैर छूकर आशीष लेना चाहिए और कन्याओं के पैर धुलाने वाले जल या दूध को अपने मस्तिष्क पर लगाना चाहिए।

कन्याओं को स्वच्छ और कोमल आसन पर बैठाकर पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए।
उसके बाद कन्याओं को माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाना चाहिए।

इसके बाद मां भगवती का ध्यान करने के बाद इन देवी स्वरूप कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं।

कन्याओं को अपने हाथों से थाल सजाकर भोजन कराएं और अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और दोबारा से पैर छूकर आशीष लें।

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