मुद्दे गायब है चुनावी मैदान से

UK Dinmaan

देश में लोकसभा चुनाव का बुगल बज चुका है। सत्ताधारी पार्टी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है तो कांग्रेस व अन्य पार्टियां अपनी जीत के लिए अपनी पार्टियों अपनी जीत की योजनाओं का खाका तैयार कर रही है।

भाजपा इस बार लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री मोदी को प्रोजेक्ट कर रही है। भाजपा जहां 50 साल के कांग्रेस राज बनाम 5 साल मोदी के कार्यकाल की तुलना कर देश को यह संदेश दे ही है कि 50 साल से देश में विकास पूरी तरह से अवरुद्ध था। देश ने विकास किया वह केवल मोदी और केवल मोदी राज में किया।

आज देश में चर्चा कांग्रेस के घोषणा पत्र को लेकर की जा रही है, जबकि होना ये चाहिए था कि आज देश में सत्ताधारी बीजेपी के घोषणा पत्र 2014 की बात की जानी चाहिए थी। बात ये की जानी चाहिए थी कि बीजेपी के घोषणा पत्र 2014 की गई कितनी घोषणा की थी। इनमें से कितनी पूरी की गई और कितनी नहीं। आज हिसाब लिया जाना चाहिए था मोदी सरकार से पांच साल का कार्यकाल का।

आज भाजपा का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा पाकिस्तान पर केन्द्रित है। बार-बार एक आतंकी, दिवालिए देश का नाम चुनाव के नाम पर मजाक नहीं तो क्या है? बार-बार पर हर बात पर पाकिस्तान क्या ये राष्ट्रवाद है? इन्हीं सवाल के जवाब देश जानना चाहता है। लेकिन देश के ‘चौकीदार’ ने डण्डा दिखा कर पूरे देश को ही देश का चौकीदार (प्रधानमंत्री) बना कर आम जनमानस को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर कर निरूत्तर कर दिया।

उत्तराखण्ड की बात की जाये यहां भाजपा व कांग्रेस दो ही प्रमुख दल चुनावी मैदान में है। भाजपा ‘मोदी है तो मुमकिन है’ ‘उत्तराखण्ड है तैयार फिर से मोदी की सरकार’, व ‘मैं भी चौकीदार’ के सहारे है। यहां मोदी के ‘उत्तराखण्डी सिपहसालार’ केवल और केवल मोदी नैय्या पर बैठ कर मोदी नाम की माल जपते हुए मोदी-मोदी पुकार कर अपनी चुनावी वैतरणी पार करना चाहते। वहीं कांग्रेस ‘चौकीदार चोर है’ के मुद्दे से आगे ही नहीं बढ़ पा रही है।

बात की जाय उत्तराखण्ड की तो यह सोचनीय है इस बार यहां लोकसभा चुनाव में उत्तराखण्ड के मूल-भूत मुद्दे नदारत है। उत्तराखंड अब तक कांग्रेस दून में एक व प्रधानमंत्री रूद्रपुर व देहरादून में दो बड़ी जनसभायें कर चुके है। कांग्रेस व भाजपाई अपनी-अपनी जन सभाओं में अपार जन समूह को देखकर खुश जरूर हो सकते है लेकिन अफसोस भीड़ को सिवाय गर्मी के निराश ही हाथ लगी। प्रधानमंत्री दून में अपने 35 मिनट के भाषण में सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस का प्रचार करते ही नजर आये। जो कि उत्तराखण्ड की जनता के लिए बेहद निराशाजनक है।

उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य ही है कि आज बेरोजगारी, नोटबंदी, किसान और महिला-सुरक्षा, स्थाई राजधानी का जिक्र, प्रदेश में विकास की, शिक्षा की, स्वास्थ्य सेवाओं की, बेरोजगारी की, खाली होते पहाड़ों, पर्यावरण, जल, जंगल जैसी मूलभूत सुविधाओं से जुड़े मुद्दों की बात कोई भी राजनैतिक दल नहीं कर रहा है।

जबकि आज असल सवाल युवाओं होना चाहिए था, उनके रोजगार का होना चाहिए था। आज युवा भारत की तस्वीर बेरोजगारी में तब्दील हो चुकी। आज बेरोजगारी के इस गम्भीर मुद्दे पर सभी राजनैतिक दल खामोश है।

आज प्रदेश में स्थाई राजधानी की बात कोई भी राजनैतिक दल नहीं कर रहा है, जबकि उत्तराखण्ड में स्थाई राजधानी गैरसैंण की मांग को लेकर राज्य आन्दोलनकारी लगातार संघर्षरत है। सोचनीय यह है किया ऐसे साकार होगें उत्तराखण्ड के शहीदों के सपने?

ऐस में सवाल यह है कि आखिर क्यों हम उस लोकतंत्र की भीड़ का हिस्सा बन रहे है। जहां राष्ट्रवाद और सिर्फ कर्जमाफी के भरोसे राष्ट्रीय दल सत्ता हासिल करना चाह रहे है? जहां भाजपा मोदी भक्ति के नाम पर ही सिमटकर रह गई तो कांग्रेस राहुल गांधी के आगे-पीछे ही घूमती नजर आ रही है।

ऐसे में सियासी सवाल ये है कि क्या देश में प्रधानमंत्री का चुनाव हो रहा हो? यकीन आपका जवाब भी न में होगा।

तो फिर क्यों न पार्टी तंत्र के हटकर सोचें और एक योग्य सांसद प्रतिनिधि को चुनाव करें। जिससे हम अपने सवाल पूछ सके और अगले पांच साल बाद किए गये कार्यों का लेखा-जोखा जान सके।

आज सवाल जनता का है कि मुद्दे क्यों नहीं है चुनाव में। क्यूं न जनता आक्रोश और निराशा का प्रतीक नोटा (None Of The Above यानि इनमें से कोई नहीं) का चयन करें।

वरना कहीं ऐसा न हो कि राजनीति की ये बेरुखी उत्तराखण्ड को एक बार फिर पांच साल के हाशिये पर धकेल दें।

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