राजघरानें के राजनीतिक किस्मत की कुंजी बद्रीनाथ मंदिर से जुड़ी

मिथक ऐसा: कपाट बंद होने पर चुनाव हार जाता परिवार

टिहरी के राजघरानों की राजनीतिक किस्मत की कुंजी बद्रीनाथ मंदिर के दरवाजों से जुड़ी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि जब बद्रीनाथ मंदिर का कपाट बंद रहता है तो राजघराने से चुनाव लड़ रहा प्रत्याशी चुनाव हार जाता है।

जिन दो चुनावों में राजघराने की हार हुई, उन दोनों ही अवसरों पर मंदिर के कपाट बंद थे। ये दोनों चुनाव थे 1971 और 2007 के। इस बार, राज्य में 11 अप्रैल को चुनाव होने हैं और मंदिर के पट 10 मई को खुलेंगे। मौजूदा समय में महाराजा मनुजेंद्र शाह की पत्नी माला राज्य लक्ष्मी शाह भारतीय जनता पार्टी की टिहरी से सांसद हैं. इस सीट में टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी और देहरादून के कुछ हिस्से शामिल हैं. राजघराने को बद्रीनाथ मंदिर का संरक्षक माना जाता है।

राजधारानरे के परिवार के मुखिया को ‘बोलंदा बद्री’ ;बद्रीनाथ की बात करने वालाद्ध कहा जाता है, जो हर साल मंदिर के खुलने की तारीखों की घोषणा करते हैं। शाही परिवार के सदस्यों ने यहां की सीट से 13 बार चुनाव लड़ा और उन्हें 11 बार जीत मिली। दो बार जब वे चुनाव हारे, तब बद्रीनाथ मंदिर के कपाट ठंड के कारण बंद थे।

1971 में मार्च में चुनाव हुए और परिवार के मुखिया मानवेंद्र शाह चुनाव हार गये। 2007 में, जब इस सीट पर उपचुनाव हुआ तब 21 फरवरी की तारीख थी और तब भी ठंड के कारण मंदिर के कपाट बंद थे। नतीजा यह हुआ कि मनुजेंद्र शाह चुनाव हार गये।

बद्रीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने बताया, इसमें कोई संदेह नहीं है कि शाही परिवार को भगवान बद्रीनाथ का विशेष आशीर्वाद प्राप्त है, जो उनके राजनीतिक जीवन में भी लागू होता है। राजनीतिक विशेषज्ञ ने कहा कि लोगों का यह मिथक 2007, 2012 और 2014 के चुनावों के बाद और मजबूत हो गया। जबकि 2007 में जब मंदिर बंद हुआ था तब मनुजेंद्र शाह उपचुनाव हार गये थे, यह सीट 2012 में मनजेंद्र शाह की पत्नी माला राज्य लक्ष्मी शाह जीतीं जब यहां 10 अक्तूबर को मतदान हुआ था. वहीं 2014 के चुनाव 7 मई को हुए इन दोनों ही चुनावी तारीखों में मंदिर के पट खुले थे।

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