कह देने भर से ‘देश नहीं बदलता’
UK Dinmaan
देश के प्रधानमंत्री ने “मैं भी चौकीदार” की मुहिम क्या चलाई कि देश में चौकीदार बनने की बाढ़ सी आ गई। उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं रहा यहां भी भाजपा के दिग्गज नेताओं से लेकर आम कार्यकर्ताओं भी ‘चौकीदार’ बनने की लाइन में खड़े होने लगे। प्रदेश के मुखिया भी संतरी की लाइन में खड़े हो गये।
सवाल यही से शुरू होता है आखिर क्यों चुनाव आते ही प्रधान सेवक को चौकीदारों की याद आई? क्या सिर्फ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के यह कहने भर से कि ‘चौकीदार चोर है’ और प्रधान सेवक ने मान लिया की चौकीदार चोर है। या फिर कांग्रेस के इसी वार से खुद को बचाने के लिए प्रधानमंत्री नेे ‘चौकीदार’ शब्द को भुनाना शुरू कर आम जनमानस को ही चौकीदार बना दिया।
अब याद कीजिए पुलवामा में सी.आर.पी.एफ. पर आतंकवादी हमला जब हमारे 40 जवान शहीद हुऐ तब क्यों नहीं कथित देश प्रेमी ने यह मुहिम चलाई कि ‘मैं भी देश का सिपाही हूँ’। शायद इसलिए नहीं चलाई कि सैनिक राजनीति नहीं करते या फिर यूं कह सकते है कि चौकीदार बनाना ज्यादा आसान है बजाय सैनिक बनने के। वो सैनिक ही है जो देश की चौकीदारी करते हुए देश सेवा में अपनी जान देता है, चौकीदार नहीं।
बड़ा सवाल यही है कि आज सोशल मीडिया में खुद को चौकीदार बनने की होड़ क्यों लगी है। सवाल ये है कि आखिर ये कौन लोग है और क्यों ये आज देश के चौकीदार बनने को आतूर है? क्या ये देश प्रेमी है? जी नहीं। ये सिर्फ पाॅवर पाॅलटिक्स का गेम है, सत्ता का सुख और नेम फेम का गेम है। क्या कभी आपने चौकीदार को खुद के घर की चौकीदारी करते देखा है? नहीं न। फिर क्यूं आज अपने ही घर चौकीदारी करने की जरूरी आन पड़ी। जिस देश में प्रधान सेवक चाय बेचते-बेचते पांच सालों में चौकीदार बन जाय तो सोच जा सकता देश कहा खड़ा है। लेकिन फिर वही ‘मोदी है तो मुमकिन है’।
सोचिये यह मुहिम पांच साल पहले क्यों नहीं छेड़ी गई? यदि छेड़ी गई होती तो तो आज नीरव मोदी, मेहूल चौकसी, विजय माल्या चोरी कर फुर नहीं होते और ना ही चौकीदार के खुद के घर (राफेल की फाइल रक्षा मंत्रालय से) में चोरी होती और न ही जेएनयू से लापता हुए छात्र नजीब अहमद की मां ट्वीट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछती, अगर आप चौकीदार हैं तो मेरा बेटा कहां है।
यह ही सवाल है कि आज देश में जवाबदेही क्यूं नहीं? क्यों आखिर कोई जवाब देना नहीं चाहता। क्यों कोई देश प्रेमी यह कहता कि यह मेरी जिम्मेदारी है इसके लिए ‘मैं भी जिम्मेदार हूं।’
आज देश में कोई किसानों की, गरीबों को बात क्यूं नहीं करता। आखिर क्यों आज युवा अपने हाथ में ‘मैं भी बेराजगार हूं’ लिखकर जवाब मांग रहा है। क्यूं आज देश को राजशाही चौकीदार व बिना काम के पार्टी के चौकीदार की आवश्यकता आन पड़ी है।
बहरहाल चौकीदारों की पहरेदारी की क्षमता पर सवाल खड़े करने का यह सिलसिला लोकसभा चुनाव तक राजनैतिक पार्टियों की सिरदर्दी ही बढ़ायेगा और कुछ नहीं।
सोचिए विचार कीजिए क्योंकि वोट की ताकत सिर्फ और सिर्फ 11 अप्रैल (उत्तराखण्ड में) तक आपके पास है क्योंकि यह कह देने भर से कि ‘देश बदल रहा है’ देश नहीं बदलता। देश इन भाजपा, कांग्रेस के चौकीदारों से नहीं आपसे बदलेगा, आप बदलेंगे, मैं बदलूंगा तो देश बदलेगा।