हां मैं भी आरक्षण वाला हूँ
UK Dinmaan
चुनाव से पहले आर्थिक रूप से पिछड़ी सर्वण जाति को 10 प्रतिशत आरक्षण का लैलीपॉप देकर मोदी सरकार ने अन्तिम ओवर में छक्का मारने की कोशिश तो जरूर की लेकिन बाउड्री लाइन पर लपके लिए गये। जी हां याद कीजिए पिछला चुनाव 2014 मोदी जी ने अपने चुनावी भाषण में क्या कहा था?
मोदी जी ने कहा था कि चुनाव के समय राजनैतिक पार्टियां 2 प्रतिशत, 5 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा चुनाव जीतने के लिए करती है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अब 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण बढ़ाने पर रोक लगा दी है जिस के आगे कोई सरकार जा नहीं सकती। विभिन्न दलों के नाम लेकर मोदी जी ने कहा था कि ये लोगों एस.सी., एस.टी., व पिछड़ी जाति से 5 प्रतिशत काट कर सवर्णों को आरक्षण देने की पाप की योजना बना रहे है।
यही वह सवाल है मोदी जी जब सुप्रीम कोर्ट ने अब 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण पर रोक लगा दी तो ठीक चुनाव से पहले आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्ण जाति को 10 प्रतिशत आरक्षण कहाँ से और क्यों? आपने एस.सी., एस.टी., पिछड़ी जाति किसी का आरक्षण तो काटा नहीं, फिर पिछडे़ सवर्ण को 10 प्रतिशत आखिर आया कहाँ से। मोदी जी क्या ये पाप कि योजना नहीं है। क्या ये सवर्ण जातियों के साथ धोखा नहीं? क्या वोट बैंक की योजना नहीं है?
जी हां यह वोट बैंक की ही योजना ही है। जिस देश में जहां योजना आयोग (अब नीति आयोग) भी अब तक भारत में गरीबी की परिभाषा तय नहीं कर पाया है। मोदी सरकार ने गरीब की नई परिभाषा गढ़ दी। मोदी सरकार ने देश की 95 प्रतिशत सर्वणों को गरीब बना दिया। मोदी सरकार के अनुसार जो व्यक्ति इनकम टैक्स में 8 लाख या कम आमदनी दिखाए या जिसके पास 5 एकड़ या कम जमीन हो या बड़ा मकान न हो, उन सबको गरीब माना जाएगा। जी हां मोदी सरकार ने देश की 95 प्रतिशत सर्वणों को गरीब बना डाला।
यहां विडम्बना देखिए कि सालाना 2.5 लाख रुपए कमाने वाले देश के नागरिकों को आयकर देना पड़ता है। लेकिन आठ लाख रुपए की आमदनी वाला ‘गरीब’ नागरिक।
बड़ा सवाल यह कि हर महीने एक लाख से अधिक तनख्वाह पाने वाले या बहुत बड़े किसानों और व्यापारियों को छोड़कर सामान्य वर्ग के लगभग 95 प्रतिशत लोग 10 प्रतिशत आरक्षण के दायरे में आ गये। अब एक गरीब के बेटे को बनाये गये गरीब (आठ लाख रुपए की आमदनी वाले) नागरिकों के बच्चों के साथ इस 10 प्रतिशत आरक्षण के लिए मुकाबला करना पड़ेगा।
वहीं यह आरक्षण जाति और धर्म की परिधियां लांघ कर सभी के लिए होगा। आरक्षण हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी समुदायों के गरीबों को उपलब्ध होगा। नतीजतन ‘सबका साथ’ संभव होगा यह घोषणा सिर्फ सवर्ण समाज के लिए नहीं है, मुसलमान, ईसाई और सिख जो भी आरक्षण के तहत नहीं आते, उन सब सामान्य वर्गों के गरीब इसके दायरे में आ जायेंगे।
सवाल यही है कि क्या सामान्य जाति ने कभी आरक्षण की मांग की थी? सर्वण जातियों हमेशा आरक्षण के खिलाफ रही है फिर सर्वणों को आरक्षण क्यों? यह वोट बैंक की राजनीति नहीं तो और क्या है? उत्तराखण्ड का जन्म 27 प्रतिशत आरक्षण की मांग में झुलसने से ही हुआ।
सोचिए और विचार कीजिए कि क्या आज युवाओं को आरक्षण की आवश्यकता है। युवाओं का जवाब न में ही होगा। यहां समस्या आरक्षण की नहीं, रोजगार की है। जो सरकारें दे नहीं पा रही है। यदि नौकरी ही नहीं होगी तो आरक्षण देने या न देने से क्या फर्क पड़ेगा। कल तक दूसरों पर अँगुली उठाने वालों आज मुस्काराइये और कहिए कि जनाब! हां मैं भी 10 प्रतिशत आरक्षण वाला हूँ।