सिद्धपीठ श्री सिद्धेश्वर महादेव
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श्री सिद्धेश्वर महादेव
भारत देश परंपराओं, धर्म अध्यात्म साधना और भक्ति का देश है।
भगवान शिव को ‘संहारक’ और ‘नव का निर्माण’ कारक माना गया है। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को स्वयंभू माना गया है। पुराणों के अनुसार शिव जी की आराधना से मनुष्य की सारी मनोकामना पूरी होती है। शिवलिंग पर मात्र जल चढ़ाने से भगवान शंकर प्रसन्न हो जाते है।
भारत देश में प्राचीन समय से ही श्रद्धा स्थल के रूप में मंदिर बहुत ही महत्व रखते है।
ऐसे ही देहरादून के केदारपूर में स्थित है सिद्धपीठ श्री सिद्धेश्वर महादेव जी का मन्दिर। सिद्धेश्वर मंदिर की स्थापना सन् 1976 में जनवरी माह हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि मन्दिर की स्थापना भगवन शंकर के आदेश से हुई थी
सिद्धेश्वर महादेव के सम्बन्ध में प्रचलित कथा :
मन्दिर के सम्बन्ध में जो किदवंती प्रचलित है के अनुसार भगत लक्ष्मण दास जीवन की जब आर्थिक तंगी से जूझ रहे तो उनके परम मित्र करन बहादूर ने (वर्तमान में जहां सिद्धेश्वर मन्दिर स्थित है) उन्हें जीवन यापन करने हेतु जमीन खेती करने को दी। दोेनों मित्र एक दिन खेती से गुजर रहे थे तो अचानक एक सांप दिखाई दिया। करण बहादूर ने लक्ष्मण सिंह जी से कहा आप पूजा पाठ वाले व्यक्ति है, हो सकता है कि इसलिए सांप आपको दिखाई दिया हो। तब दोनों मित्रों ने इस स्थान पर पूजा करने का संकल्प किया, किन्तु पारिवारिक व्यवस्था के कारण दोनोें इस स्थान पर पूजन करना भूल गये। तत् पश्चात एक दिन लक्ष्मण दास जी को स्वप्न में दिखाई दिया कि एक पेड़ के नीचे झाड़ियों और पत्तों का ढेर लगा है। लक्ष्मण जी ने वहां सफाई कर खुदाई शुरू कर दी खुदाई के दौरान कुदाल के पत्थर से टकरा मिट्टी हटा कर देखा तो एक शिवलिंग दिखाई दिया। लक्ष्मण दास जी का अहसास हुआ कि इस शिवलिंग पर तो मेरी कुदान लग गई है तो उन्होंने शिव लिंग को हाथ से सहलाया देखते ही देखते शिवलिंग का आकार बढ़ने लगा और एक महात्मा प्रकट हुये और बोले मेरी पूजा करो तुम्हारा कल्याण होगा, इतना कहकर महात्मा विलीन हो गये। आंख खुलने पर लक्ष्मण दास जी सोच में पड़ गये कि यह कैसा स्वप्न था। तभी अपना संकल्प तो याद आया किन्तु पूजा का स्थान याद नहीं जा रहा था। रात्रि सोेते समय भगवान से प्रार्थना कि हे प्रभु अज्ञातवश मेरे से अपराध हुआ मुझे माफ करो, मैं पूजन अवश्य करुंगा किन्तु कृप्या स्थान के विषय में जानकारी दें। प्रभु का आदेश प्राप्त होते ही दोनों मित्र केदारपुर पहुंचे वहां झाड़ियों के बीच एक लगभग सात फीट की ऊँची बाम्बी में जुड़वा शिवलिंग के दर्शन हुये। दोनों मित्रों ने आस-पास के लोगों को शिवलिंग के प्राप्त होने की सूचना दी।
दोनों मित्रों ने गौरी शंकर शिवलिंग में पण्डित श्री दयाराम पैन्यूली जी से प्राण प्रतिष्ठा कर पूजन कर स्थापित किया। कहते है कि उस समय यहां सर्पों का हमेशा भय बना रहता था किन्तु तब से आज तक यहां सर्पों का कोई भय नहीं हैं। सिद्धेश्वर महादेव मन्दिर में सन् 1977 से 1980 लगातार चार सालों तक शिवलिंग से ऊँ की ध्वनि निकलती थी।
अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित
भगवान शिव की प्रेरणा और इच्छानुसार दिनांक 28 जून 1982 कृष्णापक्ष को भगत जी व श्री महात्मा श्री आत्म चैतन्य जी के मार्गदर्शन में अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित की गई। अखण्ड ज्योति विधिपूर्वक गर्भगुफा में स्थापित की गई जो आज भी गर्भगृह में प्रकाशमान है।
श्री आत्म चैतन्य जी महाराज ने सन् 1983 में शिवरात्रि के दिन मन्दिर के मुख्य द्वार पर बड़ और पीपल के पौधे मंत्र उच्चारण और विधिपूर्वक भक्तों की उपस्थिति में रोपित किये। बड़ और पीपल हिन्दू धार्मिक परम्परानुसार शुभ माना जाता है। स्वामी आत्म चैतन्य जी ने तन, मन अपर्ण कर सिद्धेश्वर महादेव मन्दिर की सेवा की जिसका प्रमाण आज का भव्य मन्दिर है, उनके इस योगदान को भुलाया नहीं जा सकता ।
सिद्धपीठ सिद्धेश्वर महादेव
स्वप्न में भगवान शिव शंकर के आदेशानुसार शिव भक्त लक्ष्मण दास जी ने 21 दिन तक एक पैर पर खडे़ होकर तप किया और 40 दिन तक नीराहार गुफा के अन्दर घोर तप कर भगवान शिव की तपस्या कर सिद्धी प्राप्त की। इसी शक्ति के कारण आज भी 21 दिन तक लगातार सिद्धेश्वर महादेव मन्दिर में शिवलिंग पर जल चढ़ाने से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है।