माता-शैलपुत्री
हिन्दू धर्म में माता दुर्गा को आदिशक्ति कहा जाता है। शक्तिदायिनी मां दुर्गा की आराधना के लिए साल में दो बार की जाती है जो कि चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र है। चैत्र नवरात्र चैत्र माह में मनाया जाता है। जबकि शारदीय नवरात्र आश्विन माह में मनाया जाता है।
प्रथम नवदुर्गा : माता शैलपुत्री, द्वितीय नवदुर्गा: माता ब्रह्मचारिणी, तृतीय नवदुर्गा: माता चंद्रघंटा, चतुर्थी नवदुर्गा: माता कूष्मांडा, पंचम नवदुर्गा: माता स्कंदमाता, षष्ठी नवदुर्गा: देवी कात्यायनी, सप्तम नवदुर्गा: माता कालरात्रि, अष्टम नवदुर्गा: माता महागौरी, नवम नवदुगार्ः माता सिद्धिदात्री के रूप में पूजी जाती है।
प्रथम नवदुर्गा : माता शैलपुत्री
देवी मां दुर्गा के नौ रूप है मां दुर्गा का पहला स्वरूप ‘‘माता शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। ये ही नवदुर्गाओ मे प्रथम दुर्गा है। शैलराज हिमालय के घर पुत्री रूप मे उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। नवरात्र पूजन मे प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा ओर उपासना की जाती है।
माता का स्वरूप
वृषभदृस्थिता माता शैलपुत्री खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, भुशुंडि, कपाल तथा शंख को धारण करने वाली संपूर्ण आभूषणों से विभूषित नीलमणि के समान कांतियुक्त , दस मुख ओर दसचरण वाली है। इन के दाहिने हाथ मे त्रिशूल ओर बाए हाथ मे कमल पुष्प शुशोभित है ।
आराधना महत्व
महाकाली की आराधना करने से साधक को कुसंस्कारो , दूर्वासनाओ तथा असुरी व्रतियो के साथ संग्राम कर उन्हे खत्म करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। ये देवी शक्ति, आधार व स्थिरता की प्रतीकहै द्य इसके अतिरिक्त उपरोक्त मंत्र का नित्य एक माला जाप करने पर सभी मनोरथ पूर्ण होते है। इस देवी की उपासना जीवन मे स्थिरता देती है।
शैलपुत्री माता की आरती
शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी।आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के।गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिवमुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।