ऐतिहासिक झण्डा मेला
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भारत मेलों, त्यौहारों, उत्सवों और उत्सवों का देश है। ये मेल और उत्सव धार्मिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय और कई तरह के हैं। अधिकांश मेले धर्म पर आधारित होते हैं। भारत के प्रसिद्ध मेलों में से एक है देहरादून के झांडा मेले।
वर्ष 1675 में चैत्र कृष्ण पंचमी के दिन गुरु रामराय महाराज के कदम दून की धरती पर पड़े। उनकी प्रतिष्ठा में एक बड़ा उत्सव मनाया गया। यही से झंडा मेला की शुरुआत हुई, जो कालांतर में दूनघाटी का वार्षिक समारोह बन गया।
उस समय देहरादून एक छोटा गांव हुआ करता था। मेले में पहुंचने वाले लोगों के लिए भोजन का इंतजाम करना आसान नहीं था। इसी को देखते हुए श्री गुरु रामराय महाराज ने ऐसी व्यवस्था बनाई कि दरबार की चैखट में कदम रखने वाला कोई भी व्यक्ति भूखा न लौटे।
देहरादून में इस साझा चूल्हे की नींव दरबार साहिब श्री गुरु रामराय के आंगन में वर्ष 1675 में चैत्र पंचमी के दिन पड़ी। यही देहरादून में ऐतिहासिक झंडा मेला की शुरुआत हुई। इसके बाद बीते लगभग 340 साल से दरबार साहिब में चूल्हे की आंच ठंडी नहीं पड़ी। इस चूल्हे ने अपनी चैखट पर आए किसी भी व्यक्ति से कभी यह सवाल नहीं किया कि उसका मजहब क्या है। यह भेद करना नहीं, भेद मिटाना जानता है, इसीलिए इंसानियत का ‘सांझा चूल्हा’ बन गया।
आज भी यहां हर दिन हजारों लोग एक ही छत के नीचे भोजन ग्रहण करते हैं। झंडा मेले के दौरान यह तादाद हजारों में पहुंच जाती है, इसलिए अलग-अलग स्थानों पर लंगर चलाने पड़ते हैं। लंगर पूरी व्यवस्था दरबार की ओर से ही होती है। श्री गुरु राम राय जी महाराज के भक्तों के बड़े समूह पंजाब, यूपी, हरियाणा, दिल्ली और भारत के अन्य राज्यों से और विदेश से भी आते हैं- झंडा जी की स्थापना के कुछ दिन पहले पुरुषों, महिलाओं और सभी आयु समूहों के बच्चों से मिलकर जाते हैं और उन्हें संगत कहा जाता है। एकदशी पर, श्रीगुरु राम राय दरबार साहिब के श्री महंत रियानवाला (हरियाणा) में यमुना नदी के किनारे जाते हैं जो देहरादून से 45 किलोमीटर दूर संगत का स्वागत करते हैं और उनका स्वागत करते हैं। संगत को देहरादून के लिए बहुत ही प्यार और सम्मान के साथ लाया गया है। भक्त विभिन्न राज्यों से हजारों और लाखों के समूह में पहुंचते हैं। देहरादून के अलावा, पारंपरिक हिंदू धर्म के अनुयायियों (सनातन धर्म ( सहारनपुर, रुरकी, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, मुरादाबाद, बरेली आदि और उत्तरांचल के विभिन्न स्थानों से आते हैं।
इस बार फाल्गुन मास की पंचमी तिथि (6 मार्च) को ऐतिहासिक झंडे मेले का आरोहण होगा। इसके साथ ही मेला शुरू हो जाएगा। झंडा जी पर दर्शनी गिलाफ चढ़ाने का प्रावधान है। इस बार लुधियाना के अर्जुन सिंह दर्शनी गिलाफ चढ़ाएंगे। गिलाफ चढ़ाने की बुकिंग 30 साल पहले अर्जुन सिंह के पिता ने कराई थी। वहीं वर्ष 2116 तक के लिए दर्शनी गिलाफ की बुकिंग हो चुकी है। इसके अलावा शनील गिलाफ चढ़ाने की बुकिंग वर्ष 2041 के बाद के लिए शुरू हो गई है।